हास्यास्पद बुद्धिप्रमाणवादी !

‘जितना हास्यास्पद एक अशिक्षित का यह कहना है कि ‘सूक्ष्म जंतु नहीं होते’; उतना ही हास्यास्पद बुद्धिप्रमाणवादियों का यह कहना है कि ‘ईश्वर नहीं होता !’

साधना के संदर्भ में भारत का महत्त्व समझ लें !

‘ईश्वरप्राप्ति हेतु साधना करनी हो, तो भारत को छोडकर संसार के किसी भी देश में मत रहो; क्योंकि भारतीयों की स्थिति भले ही बुरी हो, तब भी भारत जैसा सात्त्विक देश संसार में कहीं नहीं है ।

राष्ट्र की दयनीय स्थिति होने का कारण !

‘स्वतंत्रता से पूर्व के काल में राष्ट्र एवं धर्म का विचार करनेवाले जनप्रतिनिधि हुआ करते थे । स्वतंत्रता के उपरांत अपने उत्तरदायित्व का नहीं, केवल स्वार्थ का विचार करने वाले जनप्रतिनिधियों की संख्या बढती गई । इस कारण राष्ट्र की स्थिति दयनीय हो गई है !’

हिन्दुओं, हिन्दुओं की वर्तमान स्थिति का विचार मानसिक और बौद्धिक स्तर पर न कर, आध्यात्मिक स्तर पर करें !

‘मानसिक एवं बौद्धिक स्तर पर विचार करनेवालों को चिंता होती है कि आगे हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे । इसके विपरीत आध्यात्मिक स्तर पर विचार करनेवालों को समझ में आता है कि कालचक्र के अनुसार आगे हिन्दू धर्म रहेगा !’

भारत का वास्तविक महत्त्व !

‘भारत के हिन्दुओं को ही नहीं, अपितु पूरे संसार की मानव जाति को हिन्दू धर्म का आधार है ! इसलिए पूरे विश्व से जिज्ञासु अध्यात्म सीखने के लिए भारत आते हैं ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘कठिन समय में कौन काम आता है ?’, इस प्रश्न का उत्तर है, ‘कठिन समय में ईश्वर ही काम आते हैं !’ संत एवं बुद्धिप्रमाणवादी में भेद !

व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थकों, मानव को मानव देहधारी प्राणी मत बनाओ !

‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर उसके समर्थक आसमान सिर पर उठा लेते हैं । वे भूल जाते हैं कि प्राणी और मानव इनमें महत्त्वपूर्ण भेद यही है कि प्राणी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अनुसार अर्थात स्वेच्छा से आचरण करते हैं; इसके विपरीत मानव व्यक्तिगत स्वतंत्रता को भूलकर, क्रमशः परिवार, समाज राष्ट्र एवं धर्म के हित का विचार कर आचरण करता है ।

धर्मद्रोही बुद्धिप्रमाणवादियों की दोहरी नीति !

‘विज्ञान ने सिगरेट, शराब इत्यादि के दुष्परिणाम सिद्ध किए हैं, तब भी धर्मद्रोही बुद्धिप्रमाणवादी उसके विषय में अभियान नहीं चलाते ।

संसार का एकमात्र धर्म जिसका क्रूरता का इतिहास नहीं, वह है हिन्दू धर्म !

‘धर्म एक ही है और वह है, हिन्दू धर्म । अन्य सभी पंथ हैं । हिन्दू धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों का (पन्थों का) इतिहास देखें, तो उसमें विविध काल में लाखों हत्याओं का, क्रूरता का, बलात्कारों का, जीते हुए प्रदेश के स्त्री-पुरुषों को गुलाम के रूप में बेचने का सहस्रों बार उल्लेख है।

दिशाहीन बुद्धिप्रमाणवादी एवं आधुनिकतावादी !

‘जिस प्रकार दृष्टिहीन की ‘मेरे पीछे चलो’ यह बात माननेवाले उसी के पीछे गड्ढे में गिरते हैं, उसी प्रकार बुद्धिप्रमाणवादियों एवं आधुनिकतावादियों के साथ है ।