‘वर्तमान में आपातकाल की तीव्रता तथा अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण बढते ही जा रहे हैं । उसके कारण साधकों के साथ बार-बार दुर्घटनाएं हो रही हैं । इसलिए साधक दोपहिया तथा चारपहिया वाहन चलाते समय निम्नानुसार आवश्यक सावधानी बरतें –
१. साधकों द्वारा बरतने योग्य आवश्यक सावधानी
अ. वाहन चलाना आरंभ करने से पूर्व नामजप एवं प्रार्थना करें । यात्रा में आध्यात्मिक स्तर के उपचारों के द्वारा सुरक्षा-कवच तैयार होने हेतु विशेष प्रयास करें ।
आ. सुरक्षित यात्रा की दृष्टि से दोपहिया वाहन चलाने की गतिसीमा (स्पीड लिमिट) ४० कि.मी., जबकि चारपहिया वाहन चलाने की गतिसीमा ६० कि.मी. होती है । शहर की अधिक यातायातवाली सडकें, महामार्ग (हाइवे), पुल आदि स्थानों पर वाहन की गतिसीमा कितनी होनी चाहिए, इस विषय में जानकारी देनेवाले फलक वहां लगे होते हैं । उसके अनुसार गतिसीमा, साथ ही अन्य नियमों का पालन कर वाहन चलाएं ।
इ. दोपहिया वाहन चलाते समय शिरस्त्राण का (हेलमेट का), जबकि चारपहिया वाहन चलाते समय ‘सीटबेल्ट’ का उपयोग करें ।
ई. वाहन चलाते समय चल-दूरभाष पर बातें न करें, साथ ही चल-दूरभाष का उपयोग न करें ।
२. यात्रा में दुर्घटना टालने हेतु आवश्यक ‘दुर्घटना निवारण यंत्र’
२ अ. यंत्र बनाने की तथा उसे तैयार करने की पद्धति : ‘यहां दिए गए यंत्र को एक श्वेत कागद पर पेन से बनाएं । उसके लिए पहले चौकोर बनाएं । यंत्र में दिए अनुसार संबंधित चौकोर में संबंधित आंकडा लिखें । आंकडे लिखते समय छोटे अंक से आरंभ कर बडे अंक तक लिखते जाएं । (उदा. पहले यंत्र के चौथे स्तंभ में तीसरी पंक्ति में ‘१’ आंकडा लिखें, उसके उपरांत तीसरे स्तंभ की पहली पंक्ति में ‘२’ आंकडा लिखें इत्यादि) प्रत्येक आंकडा लिखते समय पहले ‘ॐ ह्रीं नमः’, यह नामजप करें तथा उसके पश्चात आंकडा लिखें । इस प्रकार कागद पर यंत्र बनाने के उपरांत उस यंत्र के आसपास अगरबत्ती घुमाएं । तदुपरांत आंखें बंद कर ‘अंजनीसुत-हनुमान रक्षतु रक्षतु स्वस्ति ।’ (अर्थात ‘अंजनीपुत्र हनुमान हमारी रक्षा करें तथा हमारी यात्रा निर्विघ्न संपन्न हो ।’), यह मंत्रजप बोलते हुए दाहिने हाथ की बीच की उंगली यंत्र में स्थित एक चौकोर पर रखें । उसके उपरांत आंखें खोलकर उस चौकोर में लिखी हुई संख्या के बराबर उक्त मंत्रजप करें । अब यह ‘दुर्घटना निवारण यंत्र’ बनकर तैयार हो गया है, इसके प्रति आश्वस्त रहें ।
२ आ. यंत्र का उपयोग करने की पद्धति : यह यंत्र तैयार हो जाने पर उसे यात्रा के समय (सार्वजनिक वाहन से यात्रा करते समय भी) अपनी जेब में रखें । जिनका अपना वाहन है तथा जिन्हें बार-बार लंबी दूरी की यात्रा करनी पडती है, वे जिस कागद पर यंत्र लिखा गया है, उस कागद का ‘लैमिनेशन’ करें । उसके उपरांत इस यंत्र को चारपहिया वाहन के अंदर चालक के सामनेवाली कांच पर (‘विंडस्क्रीन’ पर) दाहिनी ओर, भीतर की ओर (चालक को दिखाई दे, इस प्रकार) लगाएं । यह यंत्र दोपहिया वाहन के आगे की ओर निर्गुण (बाहर की ओर से) लगाएं । यह यंत्र दुर्घटना से रक्षा करता है । उसे कार्यान्वित करने हेतु यात्रा तथा वाहन चलाना आरंभ करते समय प्रत्येक बार अपनी रक्षा के लिए इस यंत्र से प्रार्थना करें ।’
(संदर्भ ग्रंथ : ‘यंत्र रहस्य दर्शन’)
२ इ. महत्त्वपूर्ण सूचनाएं
१. ‘दुर्घटना निवारण यंत्र’ बनाने हेतु उसमें स्थित खाली स्तंभों के (बनाए गए चौकोर के) प्रिंट निकाल सकते हैं । उस पर ६० प्रतिशत अथवा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त अथवा आध्यात्मिक पीडाविरहित साधक के द्वारा यंत्र में स्थित सभी आंकडें हाथ से लिख लें ।
२. यंत्र बनानेवाला साधक आरंभ में भगवान श्रीकृष्ण तथा हनुमानजी से प्रार्थना करे ।
३. दोपहिया अथवा चारपहिया वाहन से यात्रा के लिए निकलने से पूर्व गोमूत्र अथवा सात्त्विक विभूतिमिश्रित जल से वाहन की शुद्धि करें । ऐसा करना संभव न हो, तो कोरे कागद पर चुटकीभर सात्त्विक विभूति लें तथा उसे अपने वाहन में तथा वाहन के आसपास फूंकें ।
४. वाहन में नामजप-पट्टियां लगाना
वाहन में नामजप-पट्टियां नहीं लगाई हों, तो पहले उन्हें लगा लें । (नामजप-पट्टियां लगाने की जानकारी आगे दी गई है ।) इन नामजप-पट्टियों के कारण हमारे वाहन के आसपास देवताओं के चैतन्य का सुरक्षा-कवच तैयार होगा तथा अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से हमारी रक्षा होगी । वाहन चलाने से पूर्व नामजप-पट्टियों को भक्तिभाव से पोछें तथा अपनी रक्षा हेतु उनसे प्रार्थना करें ।
४ अ. चारपहिया वाहन में नामजप-पट्टियों की रचना
वाहनशुद्धि हेतु वाहन में देवताओं की नामजप-पट्टियां लगाते समय छत के भीतर की ओर निम्नानुसार क्रमांक में उनकी रचना करें –
१. चालक के आसन के सामने – श्रीकृष्ण
२. चालक के पास के आसन के सामने – श्री गणेश
३. चालक की पीछे, बाईं खिडकी के ऊपर – श्रीराम
४. चालक के पीछे, दाईं खिडकी के ऊपर – दत्त
५. गाडी के पिछले भाग में, बाईं ओर – देवी (दुर्गा, अंबादेवी, भवानीदेवी, रेणुकादेवी आदि में से कोई भी)
६. गाडी के पिछले भाग में, बीच में – शिव
७. गाडी के पिछले भाग में, दाईं ओर – श्री हनुमान
४ आ. दोपहिया वाहन पर नामजप-पट्टियां लगाने की पद्धति : दोपहिया वाहन के आगे ‘श्री गणेश’ तथा पीछे ‘श्रीकृष्ण’, इन देवताओं की नामजप-पट्टियां लगाएं ।
५. ऊपर बताए अनुसार वाहनशुद्धि कर तथा अपने पास ‘दुर्घटना निवारण यंत्र’ रखकर गाडी से यात्रा करें । यात्रा निर्विघ्न संपन्न होने पर श्रीकृष्ण एवं हनुमानजी के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करें ।’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (११.३.२०२२)
आश्रमसेवकों के लिए सूचनाआश्रमसेवक आश्रम के वाहनों में वाहनशुद्धि की दृष्टि से उक्त बताए अनुसार उपचार करें । |