Delhi High Court : कानूनी प्रकरणों में मध्यस्थता के लिए रामायण, महाभारत एवं भगवद्गीता का आधार ले सकते हैं !

  • देहली उच्च न्यायालय का निरीक्षण !

  • ‘पौक्सो’ कानून के अंतर्गत प्रविष्ट अपराधों में मध्यस्थता करना अनुचित होने का मत व्यक्त !

नई देहली – देहली उच्च न्यायालय ने निरीक्षण प्रविष्ट करते हुए कहा, ‘कोई भी कानूनी प्रकरण के समाधान में मध्यस्थता कर सकते हैं । इसके लिए रामायण, महाभारत एवं भगवद्गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों का आधार लिया जा सकता है । इन ग्रंथों के अध्यायों को विस्तार से समझना चाहिए । उनकी ओर केवल एक ‘धार्मिक ग्रंथ’ के रूप में न देखें । इसके द्वारा कानूनी प्रकरणों का समाधान भी मिल सकता है ।’

न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा ने आगे कहा, ‘मध्यस्थता केवल ब्रिटिश अथवा अन्य विदेशी न्यायशास्त्र के आधार पर नही, अपितु प्राचीन भारतीय न्यायिक (न्याय से संबंधित) एवं मध्यस्थता न्यायशास्त्र के आधार पर हो सकती है । इनमें रामायण, महाभारत, भगवद्गीता जैसे प्राचीन धर्मग्रंथों को समाहित कर सकते हैं । विवाद मिटाने के लिए मध्यस्थता का उपयोग कैसे किया जा सकता है ?, यह रेखांकित करने के लिए न्यायालय द्वारा कुरान, बाइबल की पंक्तियों का संदर्भ भी दिया गया है ।

न्यायमूर्ति ने आगे कहा, ‘ऐसा भले ही हो, तब भी यौन-शोषण अपराधों से बच्चों की रक्षा कानून, अर्थात ‘पॉक्सो’ कानून के अंतर्गत अभियोगों की मध्यस्थता नहीं कर सकते । इन अपराधों के संदर्भ में समझौता नहीं किया जा सकता ।

क्या है प्रकरण ?

वर्ष २०१५ में एक व्यक्ति की पत्नी के संबंधी ने छोटी लडकी का यौन-शोषण किया था । शिकायकर्ता व्यक्ति ने, अर्थात पति ने पहले कनिष्ठ न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की थी । तब कनिष्ठ न्यायालय ने मध्यस्थता कर प्रकरण मिटाने को कहा था । इसपर शिकायकर्ता ने उच्च न्यायालय में न्याय मांगा था ।