हिन्दू राष्ट्र के प्रेरणास्रोत सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में तैयार सनातन के आश्रमों में अनेक साधकों को चैतन्य, आनंद एवं शांति की अनुभूतियां होती हैं । आश्रम में स्थित स्व-अनुशासन, योजनाबद्धता, प्रेमभाव आदि के कारण ये आश्रम आनेवाले हिन्दू राष्ट्र की (रामराज्य की) प्रतिकृति प्रतीत होते हैं ।
साधकों को साधना के लिए अनुकूल वातावरण मिले; इस हेतु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने गुरुकुल के समान आश्रमों का निर्माण किया है । उनकी प्रेरणा से रामनाथी (गोवा), देवद (मुंबई), मिरज (सांगली) आदि स्थानों पर स्थित आश्रमों के माध्यम से लगभग ८०० साधक पूर्णकालिक साधना कर रहे हैं । इन आश्रमों की विशेषता यह है कि आश्रमों में रहनेवाले साधक विभिन्न योगमार्गाें के अनुसार साधना करनेवाले तथा विभिन्न जाति-पंथों के होते हुए भी वे आनंदमय एवं प्रेमपूर्वक सहजीवन व्यतीत करते हैं । आज भारत में पहले कभी नहीं था, इतना जातिविद्वेष फैला है; परंतु तब भी सनातन के आश्रमों में स्थित जातिनिरपेक्षता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है । यहां प्रत्येक साधक अन्य साधकों को ‘गुरुबंधु’ अथवा ‘गुरुबहन’ के भाव से देखता है । अतः सनातन आश्रम सैकडों सदस्यों का एक परिवार ही बन चुका है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी ने सनातन के आश्रमों के माध्यम से यह दिखा दिया है कि ईश्वरप्राप्ति के ध्येय के कारण एकतापूर्ण समाज बनाया जा सकता है तथा रामराज्य की अनुभूति की जा सकती है । साधकों को साधना हेतु पूर्णकालिक अनुकूल वातावरण उपलब्ध हो; इस हेतु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने रामनाथी, गोवा में सनातन आश्रम का निर्माण किया है । साधक यहां आनंदमय आश्रमजीवन का लाभ उठा रहे हैं ।
१. सनातन के विभिन्न आश्रमों में राष्ट्र एवं धर्म से संबंधित चल रहा कार्य
‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों का कार्यालय
इसी आश्रम में ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों का कार्यालय है । यहां के संपादक, संवाददाता, दैनिकों के पृष्ठों की संगणकीय संरचना करनेवाले, विज्ञापन लानेवाले, मुद्रणालय में गट्ठे बांधनेवाले अथवा विज्ञापनों एवं दैनिक के देयकों की वसूली का कार्य करनेवाले साधक राष्ट्र एवं धर्म की वैचारिक सुरक्षा हेतु समर्पित भाव से सेवारत हैं ।
सनातन कलामंदिर
इस विभाग में ध्वनिचित्रीकरण हेतु अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित २ ‘स्टूडियो’ तथा ध्वनिचित्र संकलन (वीडियो एडिटिंग) करने हेतु १० कक्ष हैं । इस ‘स्टूडियो’ में धार्मिक अनुष्ठानों के तथा आध्यात्मिक शोधकार्य केंद्र की ओर से किए जानेवाले शोधकार्याें का चित्रीकरण किया जाता है ।
ग्रंथ-निर्मिति विभाग
इस विभाग में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी द्वारा संकलित किए जानेवाले ग्रंथों के मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी, कन्नड, गुजराती एवं बांग्ला भाषाओं के संस्करणों की निर्मिति होती है । इसी विभाग में साधक-कलाकार कला से संबंधित सेवाएं करते हैं । ‘मात्र कला हेतु कला’ नहीं, अपितु ‘ईश्वरप्राप्ति हेतु कला’ का दृष्टिकोण रखकर वे यहां ग्रंथों के मुखपृष्ठ, देवताओं के सात्त्विक चित्र एवं मूर्तियां, सात्त्विक रंगोलियां एवं सात्त्विक देवनागरी अक्षरों की निर्मिति कर रहे हैं ।
जालस्थल (वेबसाइट) विभाग
सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आई.टी.) क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त किए, साथ ही विभिन्न महत्त्वपूर्ण पदों पर बडे वेतन की नौकरियां त्यागकर आए युवा साधक स्वयंप्रेरणा से हिन्दू धर्म का प्रसार करनेवाले सनातन के जालस्थलों को संचालित कर रहे हैं । धर्म के प्रति श्रद्धा के चलते उन्होंने इन जालस्थलों को अंतरराष्ट्रीय गुणवत्तापूर्ण बनाया है ।
आध्यात्मिक संग्रहालय
सूक्ष्म जगत की प्रतीति करानेवाला तथा आध्यात्मिक मूल्य प्राप्त वस्तुओं का संरक्षण करनेवाला विश्व का यह एकमात्र संग्रहालय है । योग वेदांत सेवा समिति के सचिव श्री. मानव बुद्धदेव जैसे मान्यवरों ने सनातन के आश्रम के अवलोकन के समय इस संग्रहालय को देखकर कहा है, ‘यदि बुद्धिजीवियों ने सूक्ष्म जगत से संबंधित यह प्रदर्शनी देखी, तो उनमें अध्यात्म के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हो सकती है तथा जो साधक हैं, उनमें श्रद्धा एवं साधना की तत्परता बढ सकती है ।’
सनातन पुरोहित पाठशाला
इस पाठशाला में अध्येता छात्र-पुरोहित साधना के रूप में धर्मरक्षा हेतु धार्मिक अनुष्ठान एवं यज्ञयाग संपन्न करा रहे हैं । आश्रम में यज्ञशाला है, जहां धर्मरक्षा हेतु निरंतर यज्ञयाग किए जाते हैं । यहां छात्र-पुरोहितों को पौरोहित्य का ज्ञान देने के साथ-साथ साधना के रूप में पौरोहित्य कैसे करना चाहिए ?, इसकी शिक्षा दी जाती है ।
सनातन आश्रम, देवद, पनवेल, जिला रायगड, महाराष्ट्र.
यहां निम्न कार्यालय एवं विभाग कार्यरत हैं ।
१. दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के मुंबई एवं पश्चिम महाराष्ट्र संस्करणों का कार्यालय
२. सनातन के ग्रंथों का संग्रह, मांग एवं आपूर्ति केंद्र
३. सनातन के पूजनोपयोगी एवं नित्योपयोगी सात्त्विक उत्पादों के वितरण का केंद्र
भविष्यकालीन नियोजन – वृद्ध साधकों के लिए सर्वत्र वानप्रस्थाश्रमों की स्थापना करना
जिन साधकों ने सर्वस्व त्यागकर साधना की, ऐसे लोगों का मन घर रहकर नातियों से खेलना, घर में दूरदर्शन के कार्यक्रम देखना, माया से संबंधित गपशप करना आदि में नहीं लगता । उन्हें अध्यात्म एवं साधना से संबंधित बातेंतथा साधना करने के अतिरिक्त अन्य कुछ अच्छा नहीं लगता । ऐसे साधकों की सुविधा हेतु पहले भारत के प्रत्येक राज्य में तथा आगे जाकर प्रत्येक जिले में ‘वानप्रस्थाश्रमों’ की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है । जिन साधकों ने जीवनभर साधना की, उनकी अंतिम सांस तक उनका ध्यान रखना तथा साधना में उनका मार्गदर्शन करना ही इसका उद्देश्य है ।
२. आश्रमों में स्थित स्व-अनुशासन एवं योजनाबद्धता
अ. सनातन के किसी भी आश्रम में प्रवेश करने पर स्वयं के चप्पल व्यवस्थित रूप से रचना में रखना, ध्यानमंदिर में नामजप हेतु बैठना, भोजन के पश्चात बरतन में अन्न न छोडना आदि सभी कृतियां अनुशासित पद्धति से की जाती हैं ।
आ. आश्रम के साधक नित्य सेवाएं, व्यष्टि साधना, प्रासंगिक कार्यक्रम इत्यादि निर्धारित नियोजन के अनुसार संपन्न कराते हैं ।
३. स्वच्छता एवं व्यवस्थितता
अ. आश्रम के युवा साधक प्रतिदिन न्यूनतम १ घंटा मन लगाकर आश्रमस्वच्छता (प्रसाधनगृह की स्वच्छता करता, परिसर स्वच्छ करना, फर्श पोंछना आदि सेवाएं) करते हैं । उसी प्रकार महिने में एक बार विभाग में उपयोग किए जानेवाले संगणक तथा अन्य सभी सामग्रीकी, साथ ही आश्रम की मार्गिका (पैसेज) एवं भोजनकक्ष की सामूहिक स्वच्छता करते हैं । साधक अपने-अपने निवास की नियमित तथा महिने में एक बार संपूर्ण स्वच्छता हो, इस पर गंभीरता से ध्यान देते हैं ।
आ. आश्रम में कुछ दिनों के लिए कोई अतिथि आनेवाले हों, तो उन्हें रहने के लिए कक्ष का प्रबंध करते समय कक्ष में आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं, उसी प्रकार उनके लिए बिछाने-ओढने आदि की व्यवस्था की जाती है ।
इ. अन्य आश्रमों से अथवा जिलों से साधक कुछ अवधि के लिए रहने के लिए आश्रम आते हैं । उनका पथ्य जानकर उसके अनुसार उन्हें आहार दिया जाता है, साथ ही उनके बिछाने-ओढने की व्यवस्था की जाती है । साधक आश्रम से कुछ दिनों के लिए घर जाने से पूर्व उनका बिछोना-ओढना धोकर पुनः व्यवस्थापन में जमा करते हैं ।
ई. प्रत्येक वस्तु (उदा. अलमारी में स्थित ग्रंथ, धोए हुए बरतन-कटोरे) संबंधित स्थानों पर व्यवस्थित रखे जाते हैं ।
४. छोटी-छोटी बातों से मितव्ययिता
आश्रम की प्रत्येक वस्तु गुरुदेवजी की है, साथ ही बिजली, पानी आदि बातें राष्ट्रीय संपत्ति हैं, इस भाव से सभी वस्तुओं का मितव्ययिता से उपयोग किया जाता है । संगणकीय प्रतियों के लिए एक ओर से कोरे कागदों का उपयोग करना, लेखन हेतु कागद के टुकडों का उपयोग करना, इसके कुछ उदाहरण हैं ।
५. परिवारभाव से एक-दूसरे के सुख-दुख में सहभाग
अ. साधकों के जन्मदिवस, विवाह, अमृत महोत्सव आदि कार्यक्रम आश्रम में धर्मशास्त्र के अनुसार हर्षाेल्लास से मनाए जाते हैं ।
आ. पारिवारिक समस्याओं, दुःखद प्रसंगों आदि में भी साधक एक-दूसरे की तत्परता से सहायता करते हैं ।
६. बीमार साधकों की मनःपूर्वक सेवा
अ. जिन साधकों के लिए पथ्यपूर्ण भोजन की आवश्यकता होती है, उनके लिए उनकी आवश्यकता के अनुसार रसोई बनाई जाती है ।
आ. कोई साधक जब बीमार होता है, उस समय आश्रम के साधक-डॉक्टर एवं अन्य साधक उसकी सेवा करते हैं । बीमार साधक को घर नहीं जाना पडता ।
७. साधना की लगन एवं सर्वस्व का त्याग
अ. साधना की लगन एवं सेवा की लगन के कारण भारत के विभिन्न प्रांतों से आए तथा विभिन्न आयुसमूह के साधक आश्रमजीवन का स्वीकार करते हैं ।
आ. नौकरी-व्यवसाय, पारिवारिक सुख आदि त्यागकर आए ये सभी साधक आश्रम की सभी सेवाएं निःशुल्क करते हैं ।
८. जीवन की प्रत्येक कृति से साधना का उद्देश्य साधा जाना !
पूजा के लिए डाली में रखे जानेवाले फूलों की सात्त्विक रचना करने से उससे भाव के स्पंदन उत्पन्न होकर पूजा भावपूर्ण होती है । माथे पर कुमकुम लगाने से आचारधर्म का पालन होता है । सब्जी काटने जैसी प्रत्येक कृति करने के पीछे भी कुछ शास्त्र है, उसे समझकरउचित कृति करने सेसाधना होती है । कोई भी कलाकृति सात्त्विक बनाई जाए, तो उससे स्वयं को, साथ ही अन्यों को भी सात्त्विकता मिलती है । इस प्रकार प्रत्येक कृति से साधना हो; इसके लिए संबंधित कृति परिपूर्ण, भावपूर्ण तथा सात्त्विकता का विचार रखकर कैसे करनी चाहिए, यह परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधकों को सिखाया है ।
८. आश्रम में बढती हुई सात्त्विकता की साक्ष्य देनेवाले दैवीय परिवर्तन !
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का चैतन्यदायी निवास, साधकों का भक्तिभाव, राष्ट्र एवं धर्म का निरंतर चल रहा कार्य एवं साधनामय वातावरण के कारण इन आश्रमों की सात्त्विकता प्रतिदिन बढती ही जा रही है । साधक प्रतिदिन इसकी अनुभूति कर रहे हैं । आश्रम की सात्त्विकता की साक्ष्य देनेवाले दैवीय परिवर्तनों के आगे दिए कुछ उदाहरणों को देखा जाए, तो ईश्वर सनातन पर कितनी कृपा कर हे हैं, इसकी प्रतीति होती है । आश्रम में मानो ईश्वरीय राज्य ही अवतरित होने का यह दर्शक है ।
अ. अनेक स्थानों पर फर्श पर अंकित ॐ का चिन्ह तथा फर्श में भी दिखाई देनेवाला उसका प्रतिबिंब
आ. दत्तमाला मंत्र के पाठ के कारण अपनेआप उगे गूलर के पौधे
इ. द्वार की कांच में मूल रेलिंग की अपेक्षा अधिक सुस्पष्ट दिखाई देनेवाले रेलिंग का प्रतिबिंब
ई. साधकों की कृष्णभक्ति के कारण सजीव हुआ श्रीकृष्ण का चित्र
उ. आश्रम के प्रवेशद्वार के निकट के आम के वृक्ष में आश्रम की दिशा में अधिक आम आना
– संग्रहित लेख
प्रत्येक कृति सत्यं शिवं सुंदरम् (सात्त्विक) की पद्धति से करना
प्रत्येक कृति से अच्छे स्पंदन आए, इस उद्देश्य से साधक प्रत्येक कृति को सात्त्विक पद्धति से करने का प्रयास करते हैं । सात्त्विक वेशभूषा करना, अपनी अलमारी में वस्तुओं की रचना अच्छी दिखे, इस पद्धति से रचना करना, अनाज व्यवस्थित रूप से सुखाना, इसके कुछ उदाहरण हैं ।
सनातन के आश्रम के प्रति अभिमत!
आश्रम में भारतीय संस्कृति की सुगंध का अनुभव हुआ ! – श्रीमती रश्मी भाटिया
आश्रम का वातावरण अत्यंत प्रेम से भरा हुआ था । सर्वत्र शांति प्रतीत हो रही थी । यहां सभी में आदर-सम्मान की भावना दिखाई दी । यहां मुझे हमारी भारतीय संस्कृति की सुगंध का अनुभव हुआ । आश्रम देखकर ऐसा लगा कि समाज को इन सभी बातों का ज्ञान दिया जाना चाहिए ।