Afghanistan Hindu Sikh Genocide : अफगानिस्तान में केवल २० हिन्दू और ५० सिक्ख शेष !

४ दशक पूर्व ५ लाख सिक्ख थे 

काबुल (अफगानिस्तान) – १९८० के दशक में अफगानिस्तान में लगभग ५०००,००० सिक्ख थे; किंतु गत ४० वर्षों में कट्टर मुसलमानों की हिंसा ने सिक्खों को पलायन के लिए विवश कर दिया है । इसलिए अब अफगानिस्तान में केवल ५० सिक्ख ही शेष हैं, जबकि हिन्दुओं की संख्या केवल २० है ।

१. काबुल में ८ गुरुद्वारे हैं । ‘करते परवान’ को छोडकर सभी गुरुद्वारे बंद हैं । इस गुरुद्वारे के सेवक मनमुन सिंह ने बताया कि उनका परिवार देहली में रहता है । उनका परिवार चाहता है कि वे स्वयं भी देहली में ही रहें; किंतु वे इसे स्वीकार नहीं कर रहे । हम यहां नहीं रहे, तो इन पवित्र स्थानों की देखभाल कौन करेगा ? पहले यह पूरा क्षेत्र सिक्खों का था । बडे-बडे साधु यहां कीर्तन करते थे । बैसाखी (वैशाख पूर्णिमा) के दिन खडे होने का भी स्थान नहीं मिलता था; किंतु अब मात्र ३-४ परिवार ही यहां शेष हैं । लोगों को अपने घर बेचकर जाना पडा । तालिबान ने बलपूर्वक कुछ घरों का आधिपत्य ले लिया ।

२. काबुल में सबसे बडा आसामिया का प्राचीन मंदिर है । वहां प्रथम तल पर शालिग्राम ठाकुर जी की प्राचीन मूर्ति है । मंदिर में अखंड ज्योत जलती रहती है । ८वीं शताब्दी में हिन्दू शासन से लेकर वर्तमान तालिबान तक, अनेक उतार-चढाव का सामना करने के उपरांत भी ज्योत कभी बुझी नहीं । ३० वर्ष के राम सिंह ५ वर्ष से इस मंदिर के पुजारी हैं । उन्होंने कहा कि एक समय था, जब यहां बहुत बडा जनसमुदाय इकट्ठा होता था । अब भी मंगलवार एवं शुक्रवार को महाप्रसाद का आयोजन किया जाता है; किंतु अब प्रसाद ग्रहण करने वाले लोग नहीं हैं, तो भी परंपरा का पालन किया जाता है । वर्तमान समय में अफगानिस्तान में केवल २० हिन्दू ही शेष हैं । पहले वहां अनेक मूर्तियों के साथ एक शिवलिंग भी था; किंतु भयवश उसे तलघर (बेसमेंट)में रख दिया गया । पाकिस्तान से भी हिन्दू परिवार यहां दर्शन के लिए आते थे ।

३. काबुल में रतन नाथ दरगाह हिन्दुओं का एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है । रतननाथ गुरु गोरखनाथ के अनुयायी थे, जिन्होंने अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान में नाथ संप्रदाय की स्थापना की थी ।

संपादकीय भूमिका 

जब किसी देश में मुसलमान बहुसंख्यक हो जाते हैं तो क्या होता है, अफगानिस्तान इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है ! भविष्य में पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में भी हिन्दुओं की यही दुर्गति होगी । यदि भारत ने इन देशों से सीख नहीं ली, तो आगामी कुछ दशकों में यही परिस्थिति भारत की भी हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए !