सनातन धर्म के अमेरिका स्थित अध्येता आनंद मैथ्यूज द्वारा लिखित पुस्तक ‘इन क्वेस्ट ऑफ गुरु’ का मुंबई में लोकार्पण !
मुंबई (महाराष्ट्र) – आज के समय व्यक्तिगत, सामाजिक एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अशांति है; परंतु सनातन धर्म की ‘वसुधैव कुटुम्बकम ।’ की व्यापक सीख में मानवता के सामने की सभी समस्याओं का समाधान निकालने की क्षमता है । सनातन धर्म की इस सीख का शास्त्रशुद्ध विवेचन कर उसे युवापीढी को बताने का कार्य कर रहे अमेरिकी लेखन आनंद मैथ्यूज का कार्य महत्त्वपूर्ण है, ऐसा प्रतिपादन महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस ने किया । अमेरिकी सिनेमैटोग्राफर तथा सनातन धर्म के अध्येता आनंद मैथ्यूज द्वारा लिखित पुस्तक ‘इन क्वेस्ट ऑफ गुरु (In Quest of Guru)’ (‘गुरु की खोज में !’) का लोकार्पण १६ दिसंबर को राज्यपाल रमेश बैस के हस्तों मुंबई के राजभवन में किया गया, उसमें वे ऐसा बोल रहे थे ।
(सौजन्य : Rajbhavan Maharashtra)
‘भारतीय तत्त्वज्ञान में गुरु का बडा महत्त्व हैै । गुरु को ईश्वर से भी अधिक महत्त्व दिया गया है; क्येांकि गुरु ही ईश्वरप्राप्ति का मार्ग दिखाते हैं । गुरु की खोज वास्तव में देखा जाए, तो स्वयं की ही खशेज होती है । आनंद मैथ्यूज ने गुरु के शोध का चिंतन करते समय युवकों को सनातन धर्म का अनुभवसिद्ध तत्त्वज्ञान सरल भाषा में विशद किया है’, ऐसा बोलकर राज्यपाल ने लेखक का अभिनंदन किया । विश्व संवाद केंद्र की ओर से आयोजित इस लोकार्पण समारोह में सेवानिवृत्त सेनाधिकारी मेजर जनरल जी.डी. बक्षी, सेवानिवृत्त कर्नल अशोक किणी, ‘इन क्वेस्ट ऑफ गुरु’ पुस्तक के लेखक आनंद मैथ्यूज, आध्यात्मिक गुरु मोहनजी, विश्व संवाद केंद्र के मुख्य संवाद अधिकारी डॉ. निशिथ भांडारकर तथा निमंत्रित मान्यवर उपस्थित थे ।
राज्यपाल रमेश बैस ने आगे कहा, ‘‘आज छात्रों को विद्यालयों में भौतिक ज्ञान-विज्ञान सिखाया जाता है । उससे बच्चों का बुद्धि संकेतांक बढ रहा है; परंतु उन्हें जीवन जीने की कला सिखाई नहीं जाती । उसके कारण छोटे बच्चों से लेकर बडोंतक सभी लोग व्यक्तिगत, सामाजिक, साथ ही राष्ट्र के स्तर पर अशांत एवं अस्वस्थ हैं; परंतु सनातन धर्म के माध्यम से व्यक्तिगत, सामाजिक एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर की समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है ।’’
युद्ध क्षेत्र में काम करते समय अध्यात्म की ओर मुडा ! – जी.डी. बक्षी, सेवानिवृत्त मेजर जनरल
भारतीय सेनादल में ४१ वर्ष के मेरे कार्यकाल में वर्ष १९७१ चे युद्ध, करगिल का युद्ध, साथ ही कश्मीर में मुठभेडों के चलते मैं वहां था । उस समय मैंने मेरे आसपास सैनिकों की मृत्यु देखी । मैंने अनेक सैनिकों को उनकी मृत्यु के समय पानी पिलाया । यह सब देखने पर अपनेआप ही अध्यात्म का मेरे जीवन में प्रवेश हुआ । पाश्चात्त्य ज्ञान तो केवल सैद्धांतिक ज्ञान (थियरी) पर आधारित है; परंतु भारतीय तत्त्वज्ञान अनुभवों एवं अनुभूतियों पर आधारित है । आनंद मैथ्यूज द्वारा लिखी गई पुस्तक ऐसे ही अनुभवों एवं अनुभूतियों पर आधारित है ।
गुरुकृपा के बिना मोक्ष संभव नहीं ! – सेवानिवृत्त कर्नल अशोक किणी
जब करगील का युद्ध चल रहा था, उस समय वीरगति प्राप्त हमारे सैनिकों के शवों को उनके परिजनों को सौंपने का दायित्व मुझ पर था । उसका निर्वहन करते समय ही मैं अंतर्मुख बन गया तथा तब से अध्यात्म की ओर मेरी यात्रा आरंभ हुई । जीवन में गुरुकृपा के बिना मोक्ष नहीं है; परंतु उसके लिए हम में भाव होना चाहिए । जब आनंद मैथ्यूज मेरे पास आए, उस समय उनमें बहुत नकारात्मकता थी । वे जब छोटे थे, उस समय उन पर अनेक संकट आए । मैंने जब उनका दिशादर्शन किया, तब उन्होंने भी उतनी ही लगन के साथ लगन से प्रयास किए । उसके कारण ही आज उनकी आत्मा जागृत हुई है ।
सनातन धर्म जीवन में आनंदित कैसे रहना है, यह सिखाता है ! – आनंद मैथ्यूज
बचपन में मेरा जीवन चुनौतियों एवं संकटों से भरा हुआ था । उसके उपरांत मैंने सिनेमैटोग्राफर के रूप में संपूर्ण विश्व का भ्रमण आरंभ किया । जब मैं भारत आया, उस समय मुझे अध्यात्म तथा जीवन का उद्देश्य समझ में आया; परंतु भारत के युवक इससे दूर जा रहे हैं, ऐसा मैंने देखा । सनातन धर्म ‘जीवन में आनंदित कैसे रहना चाहिए’, यह सिखाता है । स्वयं की खोज करते-करते मुझे गुरु के रूप में श्री. अशोक किणी मिल गए । उन्होंने मेरा दिशादर्शन किया । यह पुस्तक केवल मेरा अध्यात्म का मार्ग नहीं बताती, अपितु प्रत्येक व्यक्ति के अध्यात्म की यात्रा विशद करती है ।