इजराइल के ‘आयर्न डोम’ (परमाणुअस्त्रविरोधी तंत्र) ने किया हुआ कार्य तथा सरकार के द्वारा किए हुए उपाय !

‘इजराइल के दक्षिण-पश्मिी क्षेत्र में गाजा पट्टी एक संघर्षमय प्रदेश है । पैलेस्टाईन के २ विभक्त क्षेत्रों की तुलना में यह एक बहुत ही छोटा क्षेत्र है । यह प्रदेश इस्लामी आतंकी संगठन ‘हमास’ के नियंत्रण में है । ७ अक्टूबर २०२३ को सवेरे लगभग ६ बजे हमास के सैकडों आतंकी गाजा पट्टी से सटे इजराइल के कुछ क्षेत्रों में इजराइली सीमाकवच तोडकर घुस गए । कुछ आतंकी सीमा पर स्थित मजबूत घेरे को बुलडोजर से तोडकर कुछ ‘पैराग्लाइडर’ ने हवा से, तो कुछ समुद्र के मार्ग से इजराइल की सीमा में घुस गए । उसी समय हमास ने गाजा से सीमावर्ती क्षेत्रसहित इजराइल के रेहोवोत, तेल अविव तथा जेरुसलेम इन शहरों पर रॉकेट्स डागे । इस प्रकार सीमावर्ती क्षेत्रों में आतंकियों की इजराइल में घुसपैठ तथा शेष इजराइल शहरों पर गाजा से रॉकेट्स दागना, इन २ मोर्चाें पर हमास ने इजराइल पर आक्रमकण किया ।

‘आयर्न डोम’ तंत्र

१. ‘आयर्न डोम’ तंत्र ने ९० प्रतिशत रॉकेटस् को हवा में ही नष्ट किया ! :

‘हमास ने सवेरे ७ बजे से कुल ५ सहस्र रॉकेट्स दागे’, ऐसा समाचार भले ही प्रसारित हुआ हो; परंतु इतने रॉकेट्स एक ही समय पर दागे नहीं गए हैं, यह वास्तविकता है । उन्हें सवेरे ७ से ११ की अवधि में चरणबद्ध पद्धति से दागे गए । भले ही ऐसा हो; परंतु विश्व में अकेले इजराइल के पास स्थित ‘आयर्न डोम’ने इन ५ सहस्र रॉकेट्स में से ९० प्रतिशत रॉकेट्स को हवा में ही रोककर नष्ट किया । जैसे रामायण एवं महाभारत इन धारावाहियों में यह दिखाया जाता था कि रावण अथवा कौरवों द्वारा छोडे गए बाण का श्रीराम ने अथवा पांडवों द्वारा मारे गए बाण ने हवा में ही अचूक निशाना साधा । इसी प्रकार से यह ‘आयर्न डोम’ प्रणाली कार्य करती है । संपूर्ण इजराइल में यह तंत्र कार्यरत है । शेष १० प्रतिशत रॉकेट्स कुछ इमारतों एवं गाडियों पर पडे ।

यह तंत्र प्रौद्योगिकी की दृष्टि से इतनी समृद्ध है कि वीरान क्षेत्र में जनसंख्यारहित क्षेत्र में कोई रॉकेटस् गिर रहे हों, तो यह प्रणाली इन रॉकेट्स को निशाना नहीं बनाती । केवल कुछ ही सेकंड में गाजा से आनेवाले रॉकेट्स की दिशा को भांपकर उस दिशा में ‘आयर्न डोम’ के द्वारा प्रतिक्षेपणास्त्र छोडकर उस रॉकेट को हवा में ही निष्क्रिय किया जाता है । इसके साथ ही जिस क्षेत्र की ओर रॉकेट जा रहा होता है, उस क्षेत्र में स्थित ‘साइरन’ (संकट के समय बजनेवाली घंटी) बजता है, जिससे कि उस क्षेत्र के लोग निकटतम ‘शेल्टर’में (शेल्टर का अर्थ है रॉकेट से बचानेवाला स्थान) सुरक्षित शरण ले सकते हैं । ‘आयर्न डोम’ की कार्यप्रणाली में अज्ञातवश कोई खराबी आती है, तो लोगों को रॉकेट से क्षति न पहुंचे, इस प्रकार से यह दो स्तरीय मजबूत व्यवस्था बनाई गई है ।

२. इजराइल की सरकार के द्वारा किए गए उपाय :

अ. ७ अक्टूबर को सवेरे जब सीमा पर आक्रमण आरंभ हुए, उस समय असतर्क इजराइली सेना को परिस्थिति का अनुमान लगाने में समय लगा । उसमें भी अनेक सैनिक छुट्टियों पर थे । दक्षिणी क्षेत्र में तो सैनिकों की संख्या बहुत अल्प थी । २२ गांवों के पीडित लोगों ने सैनिकों को चलितभाष कर ‘हमारे घर के बाहर आतंकी खुलेआम घूमकर गोलाबारी कर रहे हैं’, यह जानकारी दी । वास्तव में स्थिति को समझ लेकर तथा सुरक्षा के उपाय अपनाकर देश के अन्य क्षेत्रों से दक्षिण में सैनिकों को ले जाने में इजराइली सरकार तथा सेना को न्यूनतम ७ घंटे का समय लगा । इतने समय में दक्षिणी इजराइल में बडे स्तर पर हानि हो चुकी थी ।

आ. उसके उपरांत सरकार ने घुसपैठी आतंकियों को मारकर फंसे हुए नागरिकों को छुडाना, साथ ही गाजा में स्थित हमास के आतंकी शिविरों पर हवाई दल के द्वारा प्रतिआक्रमण आरंभ किया ।

इ. इजराइल के प्रत्येक नागरिक को सैनिकी प्रशिक्षण दिया जाता है, उसके कारण इस कार्यवाही के समय सहस्रों नागरिकों को भी सम्मिलित कर लिया गया ।

ई. सत्ताधारी तथा विरोधी दलों ने एकत्र होकर इस स्थिति का प्रभावीरूप से सामना करने के लिए एक ‘आपातकालीन सरकार’ का गठन किया है । (क्या भारत में ऐसा होने की बात आपने कभी सुनी है ? इसके विपरीत विरोधी दलों के नेता सरकार की आलोचना करने में लग जाते हैं, तो कुछ धर्मांधों को कानून-व्यवस्था बिगाडने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ! – संपादक)

उ. इजराइल गाजा को अन्न, पानी तथा बिजली की आपूर्ति करता है । उसने आज के समय यह आपूर्ति संपूर्णरूप से बंद की है । इजराइल के द्वारा किए जा रहे हवाई आक्रमणों के कारण इजराइल के प्रधानमंत्री ने गाजा छोडकर अन्य देशों में शरण लेने के लिए कहा है ।

३. इजराइली तंत्र की असफलता क्या है ? :

इजराइली सेना के द्वारा समय-समय पर इस प्रकार के संकट का भान कराकर ही इजराइली सरकार ने इतने गंभीर विषय में असतर्क रहना, विश्वविख्यात गुप्तचर संगठन ‘मोसाद’ को भी इस आक्रमण का राईभर भी पूर्वानुमान न होना, सीमा पर लगे ‘सेन्सर्स’ तथा ‘इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजंस सिस्टम’ का निष्क्रिय हो जाना, गाजा जैसी घातक सीमा पर टैंकों के होते हुए भी उस पर पर्याप्त सैनिकों की तैनाती न होना, साथ ही घर में आतंकियों के घुसने के उपरांत लोगों द्वारा चलितभाष पर सूचित करने के उपरांत भी राहतकार्य के लिए पहुंचने में ७ घंटे का लंबा समय लगना, ये सभी बातें इजराइल जैसे देश के लिए लज्जाप्रद हैं । इजराइल की सरकार, सेना तथा जनता इस पर यथावकाश कार्यवाही करेगी, इसमें कोई संदेह नहीं है; परंतु इस क्षण इनमें से कोई भी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए बिना एकत्र होकर आगे की कार्यवाही करने पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, यह भारतीय लोगों के लिए सिखनेयोग्य है ।’

– समता गोखले-दांडेकर, इजराइल (८.१०.२०२३)

इजराइल पर आक्रमण करने के लिए ७ अक्टूबर का दिन ही क्यों चुना ?

विशेषज्ञों ने बताया, ‘५० वर्ष पूर्व अर्थात ही ६ अक्टूबर १९७३ को इजिप्त एवं सीरिया इन दोनों देशों ने समन्वय कर जब इजराइल सतर्क नहीं था, तब भी इसी प्रकार का आक्रमण किया था । उस समय इजराइल ने एक ही समय पर सीरिया के साथ उत्तरी सीमा पर, जबकि इजिप्त के साथ दक्षिणी सीमा पर युद्ध लडा था । वह युद्ध लगभग ढाई सप्ताहतक चला । उस समय गोल्डा माइर इजराइल की प्रधानमंत्री थी । इस युद्ध में अंततः इजराइल ने ही विजय प्राप्त की थी, यह इतिहास है । इस युद्ध को ‘योम किप्पूर युद्ध’ के रूप में इजराइल में जाना जाता है । उसी दिन की स्मृति के रूप में तथा जब इजराइल सतर्क नहीं था, इस अवसर को साधकर ७ अक्टूबर के दिन ही पुनः यह आक्रमण किया गया ।’

– समता गोखले-दांडेकर