प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) – अलाहाबाद उच्च न्यायालय ने महत्त्वपूर्ण सूत्र प्रस्तुत किया कि, ‘सप्तपदी’ तथा अन्य विधियां न हो, तो हिन्दू विवाह अवैध है । एक पारिवारिक समस्या की सुनवाई के समय उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने यह सूत्र प्रस्तुत किया । एक घटना में पती ने आरोप लगाया था कि ‘विवाहविच्छेद के बिना ही उसकी पत्नी ने पुनर्विवाह किया है ।’ इस प्रकरण की पूरी प्रक्रिया ही उच्च न्यायालय ने निरस्त की ।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की दो टूक: हिंदू विवाह में अग्नि के 7 फेरे जरूरी, इसके बिना मान्य नहीं होगी शादी #AllahabadHighCourt #Hindu https://t.co/5Yyvkzy0PQ
— Times Now Navbharat (@TNNavbharat) October 5, 2023
१. याचिकाकर्त्री स्मृती सिंह का वर्ष २०१७ में सत्यम सिंह से विवाह हुआ । विवाह के पश्चात कुछ ही समय में स्मृती ने यह आरोप करते हुए पुलिस में परिवाद लिखवाया कि ‘दहेज को लेकर मेरा उत्पीडन किया गया’ और उसने पती का घर छोड दिया । पूछताछ के उपरांत पुलिस ने पती और ससुराल के लोगों के विरुद्ध आरोपपत्र प्रविष्ट किया ।
२. जनवरी २०२१ में मिर्जापुर पारिवारिक न्यायालय ने सत्यम को पत्नी के निर्वाह-व्यय के लिए प्रतिमाह ४ सहस्र रुपये देने का आदेश दिया । पत्नी के दूसरे विवाह तक यह व्यय देने के लिए न्यायालय ने कहा ।
३. सत्यम ने वाराणसी जिला न्यायालय के द्वार खटखटाए और आरोप लगाया कि स्मृती ने दूसरा विवाह किया है ।
४. सितंबर २०२१ में कनिष्ठ न्यायालय ने स्मृती को समन्स भेजकर न्यायालय में उपस्थित रहने को कहा । इस कार्यवाही के विरुद्ध स्मृती सिंह ने उच्च न्यायालय के द्वार खटखटाए ।
५. स्मृती सिंह की इस याचिका की सुनवाई के समय न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कहा कि विवाह के संदर्भ में ‘समारोह’ शब्द का अर्थ है, ‘उचित समारोह के साथ तथा उचित पद्धति से विवाह संपन्न करना ।’ जब तक विवाह उचित समारोह तथा उचित पद्धति से संपन्न नहीं होता अथवा मनाया नहीं जाता, तब तक उसे ‘संपन्न’ हुआ कहना संभव नहीं है । यदि विवाह वैध नहीं होगा, तो कानून की दृष्टि से भी वह विवाह नहीं है ।
‘सप्तपदी का सातवां पग उठाने के पश्चात ही विवाह संपन्न होता है’, यह कहते हुए न्यायालय ने पती के आरोप तथ्यहीन हैं, ऐसा स्पष्ट किया ।