समान नागरिक कानून एवं ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ की द्वेषपूर्ण भूमिका !

१. ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ का समान नागरिक कानून को विरोध !

सभी जानते हैं, ‘समान नागरिक कानून के माध्यम से देश के लगभग १० करोड मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, आर्थिक एवं अन्य परिस्थिति का सक्षमीकरण हो सकता है ।’ समान नागरिक कानून लागू होने से मुस्लिम महिलाएं, बहुपत्नीत्व, तीन तलाक, हलाला (हलाला अर्थात प्रथम पति के तलाक देने के उपरांत पुनः यदि उसी के साथ विवाह करना हो, तो महिला को अन्य किसी से विवाह कर उसके साथ शारीरिक संबंध प्रस्थापित करने तथा उसके तलाक देने के उपरांत पुनः प्रथम पति से विवाह करने की प्रथा), इद्दत (इद्दत अर्थात मुस्लिम धर्म के अनुसार पति की मृत्यु के उपरांत विधवा तुरंत दूसरा विवाह नहीं कर सकती । एक विशिष्ट कालावधि के उपरांत ही विवाह कर सकती है; इसे इद्दत कहते हैं ।), उत्तराधिकार का अधिकार (हक), बालविवाह, हिजाब (मुस्लिम महिलाओं के सर एवं गरदन ढंकने का वस्त्र), महिलाओं का खतना सुंता करना ऐसी अनेक नारकीय स्थिति से बाहर आएगी । इस कारण उन्हें बहुत आनंद हुआ है ।

इसके विपरीत ‘इस कानून के विरुद्ध मुस्लिमों को मत प्रदर्शित करना चाहिए’, ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ के महासचिव मौलाना (इस्लामी अध्ययनकर्ता) फजल ने ऐसा आदेश दिया है । बोर्ड की इस उलटी कार्रवाई से मुस्लिम महिलाएं अत्यंत परेशान हैं । इससे स्पष्ट दिखाई देता है कि बोर्ड एवं अन्य कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन मुस्लिम महिलाओं की अनदेखी कर रहे हैं ।

बोर्ड के महासचिव ने आदेश दिया है कि देश के मुस्लिम व्यक्तिगत कानून की रक्षा करें एवं उस पर प्रभाव डालनेवाले किसी भी कानून को रोकना ही उनका मुख्य उद्देश्य है । अपने विस्तृत उत्तर में  बोर्ड ने ‘समान नागरिक कानून देश की एकता एवं लोकतंत्र के लिए संकटकारी’ कहा है, साथ ही विधि आयोग के जालस्थल (वेबसाइट) पर समान नागरिक कानून के विरुद्ध भूमिका प्रदर्शित करने के लिए अपना विचार भी दिया है । ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ ने कहा है, ‘देश के मुस्लिम अपनी स्थानीय भाषा में विधि आयोग को यह पत्र भेजें ।’

श्री. प्रवीण गुगनानी

२. हिन्दू एवं संविधान विरोधी ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ !

मांग की जा रही है कि ‘संविधान के मार्गदर्शक तत्त्वों की धारा ४४ रद्द करना उचित है ।’ इस कानून के विरुद्ध मुस्लिम समाज की ५ लाख आपत्तियां प्रविष्ट करने का उद्देश्य रखा गया है । ऐसा लग रहा है मानो ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ ने मुस्लिम समुदाय को देश की मुख्य धारा से दूर रखने का निर्णय ही ले लिया है । इस कारण इन बोर्डाें एवं अन्य कट्टरपंथी संगठनों की मानसिकता तथा हार्माेनल संरचना समझना भारतीय मुस्लिम समुदाय एवं पूरे देश के सामने बडी चुनौती है । इन संस्थाओं की ‘केमेस्ट्री’ एवं हार्मोनल रचना संविधान तथा हिन्दू विरोधी है ।

अ. अयोध्या प्रकरण के सामाजिक समझौते में यही बोर्ड सबसे बडा विघ्न था । जब-जब न्यायालय ने अयोध्या का सूत्र परिश्रमपूर्वक चर्चा के स्तर पर लाया एवं न्यायालय के बाहर ‘शांति से समझौता होगा’, ऐसी चर्चा हुई, तब-तब ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ ने, ‘एक इंच भी भूमि नहीं छोडेंगे’, ऐसी कट्टर भूमिका अपनाकर शांति के अवसर को गंवा दिया । कल्पना करें, यदि मुस्लिम समुदाय अगुवाई कर श्रीराम जन्मभूमि हिन्दुओं के नियंत्रण में देता, तो आज भारत की समाज-रचना एवं देश में परस्पर समझौते का स्तर हिमालय जितना ऊंचा होता !

आ. यह बोर्ड यहीं पर रुका नहीं । श्रीराम जन्मभूमि के निर्णय के उपरांत उन्होंने पूरे मुस्लिम समाज को कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से एवं मस्जिद की भूमि पर मंदिर निर्माण करने से मुस्लिम समुदाय हतोत्साहित न हो । हमें ध्यान में लेना चाहिए कि खाना-ए-काबा (हज की मस्जिद) कितने समय तक ‘शिर्क’ (मूर्तिपूजा) एवं ‘बिदअत परस्ती’ का (अपारंपरिक पूजा का) केंद्र रहा है ।

इ. इस प्रकरण में अधिक विष-वमन (जहर उगलने) के लिए ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ ने तुर्कस्तान के हागिया सोफिया मस्जिद का उदाहरण दिया एवं हिन्दू तथा मुस्लिम समुदाय को उकसाने का पूरा प्रयास किया । सच बात तो यह है कि शाहबानो प्रकरण में राजीव गांधी ने बोर्ड के आगे शरणागति स्वीकार कर ली, जिससे ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ की बुद्धि सातवें आसमान को छूने लगी और वे स्वयं को संविधान की चौखट से आगे मानने लगे । देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष संगठन एवं कट्टरवादी धर्मांधों की सहायता से समय रहते यह मंडल देश का सामाजिक वातावरण दूषित करने में सफल हुआ ।

ई. यदि ‘समान नागरिक संहिता लागू होती है, तो इस बोर्ड का उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा, जिससे उसका महत्त्व शेष नहीं रहेगा’, यह ध्यान में आने से ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ ने बार-बार ईशनिंदा कानून लागू करने की मांग की है । तीन तलाक कानून, ‘सीएए’ (नागरिक सुधार कानून), एन.आर.सी. (राष्ट्रीय नागरिकता प्रविष्टि), हिजाब सुधार, मस्जिदों पर लगे अवैध भोंपू (ध्वनिक्षेपक) ऐसे सभी विवादों में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने विषैले बाणों से देश के कानून एवं सुव्यवस्था, परस्पर सौहार्द एवं देश की वैश्विक प्रतिमा आहत कर रहा है ।

३. देश में शरीयत कानून लागू करने के लिए ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ प्रयत्नशील !

‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ की स्थापना एक सामाजिक संस्था के रूप में हुई थी । उसके उद्देश्य एवं नियम पढने से स्पष्ट होगा कि यह बोर्ड देश में इस्लामिक शासन स्थापित करने के लिए कार्यरत एक तंत्र है । देश में शरीयत कानून लागू करने के लिए सभी दृष्टि से प्रयास कर संविधान के विरुद्ध वातावरण निर्माण करता है । अफगानिस्तान को तालिबान ने अपने नियंत्रण में लिया । इस कारण भारत के साथ ही पूरे विश्व के नेता चिंता में पड गए हैं; परंतु इस ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने इस घटना का स्वागत किया एवं भारत की ओर से तालिबान को ‘सलाम’ किया था ।’

– श्री. प्रवीण गुगनानी, राजभाषा परामर्शदाता, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार. (सामाजिक प्रसारमाध्यम के सौजन्य से)