सर्वत्र के अर्पणदाताओं को अन्नदान करने का सुअवसर !
हिन्दू संस्कृति में बताया हुआ दान का महत्त्व !भारतीय संस्कृति में दानधर्म का विशेष महत्त्व है । धनदान, अन्नदान, वस्त्रदान, ज्ञानदान आदि दान के प्रकार है । दान पापनाशक है, साथ ही वह पुण्यबल की प्राप्ति करवाता है । महाभारत में कहा गया है ‘इस पृथ्वीतल पर दानधर्म जैसी दूसरी थाती नहीं होती है ।’ |
१. अन्नदान का अनन्यसाधारण महत्त्व !
‘अन्नदान’ को श्रेष्ठ कर्म माना जाता है । हिन्दू धर्मशास्त्रानुसार जो गृहस्थ अर्थार्जन करता है और जिसके घर में प्रतिदिन भोजन पकता है, उसने अन्नदान करना, यह उसका कर्तव्य ही है । धर्मशास्त्र कहता है कि सद्भावना पूर्वक ‘सत्पात्र को अन्नदान’ करने से अन्नदाता को उसका उचित फल मिलता है तथा सभी पापों से उसका उद्धार होकर वह ईश्वर के निकट पहुंचता है । अन्नदान करने से अन्नदाता को आध्यात्मिक स्तर पर भी लाभ होता है ।
२. धर्मप्रसार का कार्य निरंतर करनेवाले सनातन के आश्रमों में अन्नदान करें !
वर्तमान काल धर्मग्लानि का काल है । इसमें धर्मप्रसार करना कालानुसार आवश्यक कार्य है । धर्मप्रसार का कार्य करनेवाले संत, संस्थाएं अथवा संगठनों को अन्नदान करना, यह सर्वश्रेष्ठ दान है । सनातन संस्था राष्ट्ररक्षा और धर्मजागृति के लिए कटिबद्ध है । सनातन संस्था के आश्रम और सेवाकेंद्रों से धर्मप्रसार का कार्य किया जाता है । वर्तमान काल में राष्ट्र और धर्म की सेवा करने का महत्त्व ध्यान में रखकर सैकडों साधक आश्रमों में रहकर पूर्णकालिक सेवा कर रहे हैं । निरंतर धर्मजागृति का कार्य करनेवाले सनातन के आश्रमों को अन्नदान के लिए धनरूप में सहायता करने का अवसर अर्पणदाताओं को मिल रहा है ।
जो अर्पणदाता अधिक मास के निमित्त साधकों के लिए अन्नदान हेतु धनरूप में सहायता कर धर्मकार्य में सम्मिलित होने के इच्छुक हैं, वे निम्नांकित क्रमांक पर संपर्क करें ।
नाम और संपर्क क्रमांक :
श्रीमती भाग्यश्री सावंत – 7058885610
संगणकीय पता : [email protected]
डाक पता : श्रीमती भाग्यश्री सावंत, द्वारा ‘सनातन आश्रम’, २४/बी, रामनाथी, बांदिवडे, फोंडा, गोवा. पिन – ४०३४०१
अन्नदान के लिए संस्था को धनादेश देना हो, तो वह ‘सनातन संस्था’ के नाम से दें ।
https://www.sanatan.org/en/donate यहां भी दान (अर्पण) करने की सुविधा उपलब्ध है ।’
– श्री. वीरेंद्र मराठे, व्यवस्थापकीय न्यासी, सनातन संस्था. (२४.६.२०२३)