मणिपुर की हिंसा का मूल कारण है हिन्दुओं के साथ भेदभाव !

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में अशांति और जातीय संघर्ष एक निरंतर घटनेवाली घटना हो गई है । मणिपुर में एक बार फिर जातीय संघर्ष की काली छाया लौट आई है । कुछ कारणों से इस वर्ष के प्रारंभ से ही राज्य में अशांति फैल रही है। इन कारणों का हम आगे विस्तृत विश्लेषण करेंगे । सर्व प्रथम यह जान लें कि वर्तमान स्थिति में यह चिनगारी कहां से उठी ? ३ मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) द्वारा ‘आदिवासी एकजुटता फेरी’ के दौरान विभिन्न स्थानों पर हिंसाचार की घटनाएं घटीं । सेना और असम राइफल्स ने हिंसा को नियंत्रित करने के लिए फ्लैग मार्च किया, तथा सरकार ने पांच दिनों के लिए इंटरनेट सेवा बंद कर दी ।

१. हिंसा और संघर्ष के कारण:

इस संघर्ष के प्रमुख् पांच कारण हैं – 

१ अ. मणीपुर उच्च न्यायालय का आदेश – अनुसूचित जातिजनजातियों की सूची में ‘मैतेई’ लोगों का समावेश करने की अनुशंसा : पहला कारण मणिपुर उच्च न्यायालय का वह आदेश है, जिसमें राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर अनुसूचित जातिजनजातियों (एसटी) की राज्य सूची में “मैतेई” (मुख्यतः वैष्णव हिन्दू) वंश के लोगों का समावेश करने की सिफारिश केंद्र को की गई थी । १४ अप्रैल को जारी न्यायालय के आदेश के कारण घाटी में रहने वाले मैतेई समुदाय और राज्य के पहाड़ी क्षेत्र में रहनेवाले मुख्य रूप से नागा और कुकी (जो नव-ईसाई है), के बीच जो संघर्ष पहले से था, वह पुनः सुलग उठा ।

१ अ १. मैतेई हिन्दुओं को ११ प्रतिशत भूमि के बाहर रहने का अधिकार न होना :

मेजर सरस त्रिपाठी

दूसरा कारण जानने से पहले मणिपुर की भौगोलिक स्थिति, जनसंख्या और जातीय एवं पंथीय संरचना समझना आवश्यक है । भौगोलिक दृष्टि से, मणिपुर को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – इंफाल घाटी और पहाडी क्षेत्र । मणिपुर के ६० विधानसभा क्षेत्रों में से ४० इंफाल घाटी के हैं, जिनमें छः जिलों का समावेश है इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, थौबल, बिष्णुपुर, काकचिंग और कांगपोकपी । शेष २० स्थान अन्य १० जिलों में हैं। मैतेई समुदाय के वर्चस्व वाले घाटी के जिले, जो मुख्य रूप से हिन्दू हैं, भौगोलिक क्षेत्र का ११ प्रतिशत है । परंतु प्रदेश की कुल जनसंख्या के ५७ प्रतिशत लोग यहीं निवास करते हैं। नागा और कुकी जनजातियों के वर्चस्व वाले पहाडी जिलों में ईसाई अधिक मात्रा में हैं तथा वहां की जनसंख्या ४३प्रतिशत है । इस प्रकार मैतेई के पास मात्र ११ प्रतिशत और पहाडी ट्राइबल्स (नागा और कूकी) के पास ८९ प्रतिशत भूमि है। वर्तमान कानून के अनुसार मैतेई(हिन्दू) पहाडों में भूमि नहीं खरीद सकते । अर्थात उन्हें ११ प्रतिशत भाग से बाहर बसने का अधिकार नहीं है। इसके विपरीत ८९ प्रतिशत पर रहनेवाले नागा और कूकी कहीं भी भूमि खरीद सकते हैं और बस सकते हैं ।

१ अ २. नागा एवं कुकी ने मैतेई लोगों को भूमि विहीन करना : तीन समुदायों के बीच जातीय संघर्ष का पूर्व इतिहास है । पहाडी क्षेत्र में रहनेवालों का दावा है कि घाटी के लोगों ने राज्य में सभी विकास कार्यों पर कब्जा कर लिया है क्योंकि उनका राजनीतिक प्रभुत्व हैं; परंतु मैतेई समाज के लोगों का कहना है कि वे अपनी आधिकारिक भूमि पर तीव्र गति से उपेक्षित हो रहे हैं । १९५१ में उनकी जनसंख्या ५९ प्रतिशत थी, २०११ की जनगणना के अनुसार घटकर ४४ प्रतिशत रह गई है । मैतेई लोगों का आरोप है कि नागा और कूकी इम्फाल घाटी में तेजी से बसकर मैतेई लोगों को भूमिहीन बना रहे हैं।

१ अ ३. मैतेई समाज द्वारा ‘एक जाति’ पहचान बनाए रखने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट करना : यही कारण है कि मैतेई लोगों के कुछ संगठन मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने की मांग कर रहे हैं । मैतेई जनजाति संघ द्वारा मणिपुर उच्च न्यायालय प्रविष्ट याचिका में तर्क दिया गया था कि मैतेई समुदाय को १९४९ में भारत संघ के साथ मणिपुर की रियासत के विलय से पहले एक जनजाति के रूप में मान्यता दी गई थी, लेकिन विलय के पश्चात एक जनजाति के रूप में अपनी पहचान खो दी । समुदाय को “संरक्षित” करने के लिए, और मैतेई लोगों के पूर्वजों की भूमि, परंपरा, संस्कृति और भाषा को बचाने” के लिए, उनकरजातीय पहचान वे बनाना चाहते हैं ताकि वह भी कुकी और नागा क्षेत्रों में भूमि खरीद कर बस सकें।

१ आ. नशीले पदार्थ एवं अफीम की खेती के विरुद्ध सरकार द्वारा चलाई गई मुहीम, संघर्ष का दूसरा कारण : संघर्ष का दूसरा कारण मणिपुर की एन बीरेन सिंह सरकार द्वारा मादक पदार्थ और अफीम की खेती के विरुद्ध अभियान चलाना है । मणिपुर के कई पहाड़ी क्षेत्रों में, जहां नागा और कूकी रहते हैं और जो अधिकांश ईसाई हैं, अतिरिक्त आय के लिए अफीम की अवैध खेती करते हैं। गत वर्ष बीरेन सिंह सरकार ने अफीम की खेती नष्ट करने और राज्य को मादक पदार्थों के दुरुपयोग से बचाने के लिए बडा अभियान चलाया है। इस अभियान से प्रभावित अधिकांश गाँवों में कुकी समुदाय का निवास है।

मणिपुर अगेंस्ट पॉपी कल्टिवेशन (एमएपीसी), विद्वानों, सामाजिक और राजनीतिक विचारकों, परिवर्तन के इच्छुक लोग, युवाओं और कानून विशेषज्ञों द्वारा प्रारंभ किया गया एक अभियान है तथा इस अभियान को बीरेन सिंह का समर्थन प्राप्त है; किन्तु जिसे नागा और कूकी जातीय और धार्मिक चश्मे से देखकर प्रश्न उपस्थित कर रहे हैं; क्योंकि बीरेन सिंह मैतेई समाज से हैं । जनवरी में, संगठन ने चेतावनी दी थी कि यदि अफीम की खेती के सूत्र को ठीक से नहीं संभाला गया, तो यह नियंत्रण से बाहर चला जाएगा तथा पहाडी क्षेत्र एवं घाटी में फूट पड सकती है ।

१ इ. म्यानमार से नागा एवं कुकी जनजाति के लोगों का अवैध प्रवेश : इस संघर्ष का तीसरा कारण म्यांमार से नागा और कूकी जनजाति के लोगों का हो रहा अवैध प्रवेश । मार्च में, मैतेई समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले कई छात्र संगठनों के नेताओं ने बीरेन सिंह के घर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि “म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश आदि पडोसी देशों से मणिपुर में अवैध रूप से आए लोगों के कारण राज्य के स्वदेशी लोगों की उपेक्षा हो रही है । उन्होंने नागरिकों के राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण (एनआरसी) के कार्यान्वयन और जनसंख्या आयोग स्थापित करने की मांग की है ।

विद्यार्थी संगठनों का आरोप है कि पहाडी क्षेत्र में बडी मात्रा में जनसंख्या बढी है । वे २०११ की जनगणना एवं इंफालघाटी और पहाडी क्षेत्र की जनसंख्या में दस वर्ष के अंतर को देख रहे हैं । घाटी में यह मात्रा १६ प्रतिशत जबकि पहाडी क्षेत्र में ४० प्रतिशत है । कुकी लोगों को अनेक बार “प्रवासी” अथवा “विदेशी” कहा जाता है । मैतेई समाज का आरोप है कि मणिपुर के कूकी और नागा म्यांमार के कूकी और नागा को पहाड़ों में अवैध रूप से बसाकर जनसंख्या में सकंटदायी परिवर्तन कर रहे हैं।

कुकी-चिन-ज़ोमी-मिज़ो जनजातियों से संबंधित म्यांमार के अनेक शरणार्थी, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड की पहाड़ियों में रहने वाली अपनी जनजातियों से मिल रहे थे, तब म्यांमार की सेना ने आतंकवादी अभियान चलाया । इसिलए वे पलायन कर मणिपुर क्षेत्र में आकर रहने लगे । परिणाम स्वरूप कुकी लोगों की विरोधी भावनाएं तीव्र हो गई । , मैतेई विद्यार्थी संगठनों का दावा है कि आरक्षित वन भूमि में अब नए गांव बसने लगे हैं एवं इस जनसंख्या वृद्धि के कारण नए क्षेत्रों में अफीम की खेती फैल रही है । मुख्य मंत्री बीरेन सिंह ने भी यह कहा है कि म्यांमार से अवैध रूप से आए ये लोग राज्य के वन तोडने, अफीम की खेती और मादक पदार्थों के संकय के लिए उत्तरदायी हैं उन्होंने अवैध रूप से आए यात्रियों को पहचानने और अस्थायी आश्रय देकर उन्हें उनके देश में लौटाने के लिए मंत्रिमंडल में एक उपसमिति स्थापित की है ।

१ ई. विघटनकारी संगठन का प्रमुख मार्क टी हाओकिप को बंदी बनाया जाना : चौथा कारण है मैतेई और कुकी के संघर्ष को प्रोत्साहित करनेवाला मार्क टी हाओकिप । जिसे २४ मई २०२३ को बंदी बनाया गया । मार्क टी. हाओकिप पर कुकी के लिए एक मातृभूमि स्थापित करने के लिए राज्य के विरुद्ध युद्ध छेडने का आरोप था । ३७ वर्षीय मार्क एक अलगाववादी संगठन कुकीलैंड पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक नामक अलगाववादी संगठन का प्रमुख है और मणिपुर और म्यांमार में स्थित अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संघ के राज्य अध्यक्ष भी है । अधिकांश मैतेई इस संगठन को राष्ट्र विरोधी संगठन मानते हैं।

१ उ. संरक्षित वनक्षेत्र चुराचंदपूर खौपुम में स्थित अवैध बस्तियां हटाना पांचवां कारण :  पांचवां कारण जिससे विशेष रूप से कुकी अप्रसन्न हुए वह अगस्त २०२२ में जारी राज्य सरकार की अधिसूचना है, जिसमें आदेशित किया गया है कि चुराचंदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र (चुराचंदपुर और नोनी जिलों में) में ३८ गांव अवैध बस्तियां हैं । १९७० के दशक में वन संरक्षक अधिकारियों ने इन ३८ गांवों को संरक्षित वनों से बाहर कर दिया गया था। पिछले नवंबर में, मुख्यमंत्री ने उस आदेश को निरस्त कर दिया। बीरेन सिंह ने कहा, “मणिपुर का लगभग १९ प्रतिशत क्षेत्र आरक्षित वन है और इन वन भूमि और आरक्षित क्षेत्रों में अवैध बस्तियां हैं। हम ये अवैध अतिक्रमण हटा रहे हैं।”

२. मणिपुर में अशांति फैलाने में चीन का हाथ होने की संभावना

इस सम्पूर्ण अशांति का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पक्ष बाहरी शक्तियों का हस्तक्षेप लगता है। क्या मणिपुर में अशांति फैलाने में विदेशी हाथ है ? गुप्तचर विभाग का उत्तर हां है । सेना एवं गुप्तचर विभाग ने विदेशी शक्तियों का दृढ संबंध बताया है । और पूर्वोत्तर में संकट को बढावा देने में चीन की बढ़ती भूमिका के संबंध में चेतावनी दी है । सूत्रों ने पुष्टि की है कि “ऑपरेशन सनराइज” की सफलता के पश्चात चीन भारत एवं-म्यांमार के बीच का संबंध तोडने एवं इस क्षेत्र में विद्रोहियों का जाल फैलाने हेतु अधीर हो गया है । वर्ष २०१९ में भारत और म्यांमार की सेनाओं ने उत्तर पूर्व में सक्रिय विद्रोही समूहों के शिविरों को लक्ष्य बनाकर म्यांमार सीमा पर संयुक्त रूप से अभियान प्रारंभ किया था । इस रणनीति का उद्देश्य उग्रवादी समूहों को नष्ट करना था जो भारत और म्यांमार दोनों को प्रभावित कर रहे हैं। चीनी रणनीति पूर्वोत्तर को अस्थिर करने की है ताकि लद्दाख में नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी चुनौती का सामना करने के स्थान पर भारतीय सेना वहीं उलझी रहेगी । चीन भारत को बाहर रखते हुए म्यांमार और बांग्लादेश के रास्ते बंगाल की खाडी तक एक व्यापार मार्ग विकसित करने का भी इच्छुक है ।

कुख्यात गोल्डन ट्रैंगल से (वह क्षेत्र जहां थाईलैंड, लाओस और म्यांमार की सीमाएं रुआक और मेकांग नदियों के संगम पर मिलती हैं) से पूर्वोत्तर में मादक पदार्थ और अवैध शराब भेजने के पीछे चीन का हाथ बताया जाता है और वह म्यांमार की सेना को आपूर्ति करता रहा है । साथ ही विद्रोही क्षेत्र को अस्थिर रखने में भी चीन सक्रिय है । म्यांमार के काचिन राज्य में म्यांमार की सेनाकाचिन इंटीग्रेटेड फोर्स (केआईएफ) के विरुद्ध लड़ रही है, चीन दोनों  को ही आर्थिक सहायता कर रहा है । चीन ने कथित तौर पर पूर्वोत्तर भारत में काचिन आदिवासियों को घुसपैठ करने में सहायता की है । उनमें से अधिकांश लोग मादक पदार्थ और अन्य कंट्राबेंड (निषिद्ध शस्त्र) लेकर भारत में घुसे हैं। भारतीय सेना के सूत्रों ने कहा है कि चीन भारत में गडबडी मचाने के लिए म्यांमार में पीडीएफ संगठन को आर्थिक सहायता कर रहा है । ” चुराचांदपुर में घात स्थल से चीनी हथियार जप्त किए गए हैं ।

एक प्रमुख अमेरिकी दैनिक की रिपोर्ट के अनुसार चीन म्यांमार में अस्थिरता स्थापित कर उसे भारत विरोधी कार्यवाहियों के केंद्र के स्वरूप में परिवर्तित करना चाहता है । पाकिस्तान में चीन ने यह किया है । म्यांमार में सत्तापरिवर्तन में चीन का हाथ है यह स्पष्ट हो चुका है । इसमें कहा गया है, “लोकतांत्रिक सरकार के पतन के पश्चात चीन जो कर रहा है, वह देखने पर यह संभावना अधिक है “

इसलिए भारत में हो रहा सशस्त्र विद्रोह देश की सीमा के बाहर से भडकाया जा रहा है, ऐसा कह सकते हैं ।

३. मैतेई जाति के लोगों में असुरक्षा की भावना

वर्ष २०२१ में म्यांमार में सत्ता परिवतर्तन के पश्चात सांगैग क्षेत्र में शरण आए शरणार्थियों का कुकी लोगों से संबंध होने के कारण भारत के मैतेर्इ जाति के लोगों में असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो गई है । इस संघर्ष में जो बंदूक, मादक पदार्थ और राजनीति को नियंत्रित करेंगे, वे लोग निर्णय ले सकते हैं; परंतु इनदोनों जनजातियों के संघर्ष का दोनों जनजातियों की महिलाओं एवं बच्चों पर परिणाम हो रहा हा । वर्तमान संघर्षमय स्थिति में कुछ लोगों के उद्देश्य के अनुसार विभिन्न जातीय समुदायों की पहचान को हथियार बनाया गया है।

४. मणिपुर में चल रही हिंसा की वर्तमान स्थिति तथा अबतक हुई हानि

३ मई २०२३ से, मणिपुर में मुख्य रूप से दो स्थानीय जति मैतेई और कुकी के बीच बार-बार जातीय संघर्ष हो रहे हैं। राज्य का तीसरा प्रमुख समुदाय, नागा, इस समय तटस्थ है । हिंसा में ८० से अधिक लोगों की मृत्यु हुई हैं एवं घरों एवं धार्मिक स्थलों सहित लगभग एक हजार सात सौ भवन जलाए गए हैं । वर्तमान में ३५,००० से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं, जिनमें से कुछ लोग राज्य के ३१५ स्थानों पर स्थापित शिविरों में निवास कर रहे हैं। जैसे-जैसे संघर्ष बढेगा वैसे वैसे यह संख्या बढने की संभावना है । इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा संचार बंदी का आदेश देना, इंटरनेट सेवाएं बंद करना आदि पारंपरिक उपाययोजनाएं की जा रही हैं । इसके अतिरिक्त लगभग १७,००० सैनिकों और अर्धसैनिक बलों को कुछ कठिन प्रसंगों में देखते ही गोली मारने के आदेश भी दिए गए हैं ।

५. मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश के उपरांत मैतेई समुदाय को मिलनेवाले लाभ

मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश के पश्चात मैतेई समाज के लोगों को अनुसूचित जनजाति में समाविष्ट करने के संबंध में राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी की । तत्पश्चात यह हिंसाचार प्रारंभ हुआ इस निर्णय के कारण मैतेई समाज के लोगों को अनुसूचित जनजाति को नागा और कुकी का पहले से समावेश किया गया है मिलनेवाले लाभ देने की अनुमति दी गई है । इसलिए मैतेई जनजाति के लोगों को सरकार में आरक्षित स्थान एवं सर्वाधिक महत्त्पूर्ण राज्य में कहीं भी भूमि खरीदना और बसना संभव होगा । राज्य में मैतेई समाज की जनसंख्या सर्वाधिक है, तब भी राज्य के क्षेत्र की ९० प्रतिशत आदिवासी क्षेत्र की भूमि मैतेई नहीं खरीद सकते थे । बहुत समय से मैतेई समाज के लोग इसकी मांग कर रहे थे ।

६. मणिपुर उच्च न्यायालय का आदेश हिंसा भडकने का कारण

३ मई २०२३ को न्यायालय के निर्णय के पश्चात तुरंत हिंसा प्रारंभ हो गई और कुकी लोगों ने मैतेई समाज की संपत्ति जलाना, दंगे और तोडफोड प्रारंभ कर दी परिवार की निजी संपत्तियों को जलाना, दंगा करना और तोड -फोड करना शुरू कर दिया । उच्च न्यायालय का आदेश एवं कुकी लोगों के दंगे मणिपुर में हिंसा होने के मुख्य कारण बताए जा रहे हैं । राज्य में यह जातिगत तनाव अनेक वर्षों से बढ़ रहा था। उदाहरण के लिए, वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा स्थानीय भूमि अधिकारों के सूत्रों को संभालने के लिए मुख्य रूप से राजधानी इम्फाल घाटी के आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले कुकी समाज को लक्ष्य किया जा रहा है, एेसा कहा जा रहा है । पहाडी वनक्षेत्रों का सर्वेक्षण करने के निमित्त अफीम की खेती घटाने का प्रयत्न किया गया; परंतु इसके परिणामस्वरूप कुकी गांवों के लोगों के अधिकार छीन लिए गए । । विवाद का एक अन्य सूत्र है भूमि से संबंधित संतुलित अधिकार न होना । मैतेई समाज के लोग पहाडी क्षेत्र में भूमि नहीं खरीद सकते; परंतु कुकी एवं अन्य आदिवासी इंफाल घाटी में भूमि खरीद सकते हैं ।

७. ‘४६ आसाम राईफल्स’के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल विप्लव त्रिपाठी की हत्या का कारण

सेना की एक आंतरिक रिपोर्ट से पता चला है कि ४६ असम राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल विप्लव त्रिपाठी की हत्या मिजोरम में मादक पदार्थो पर प्रतिबंध लगाने से ही हुई थी । वर्ष २०१९-२० में उनकी नियुक्ति मीजोरम में की गई थी । मीजोरम के आइजोल में उनकी बटालियन ने एक महीने में ८० करोड मूल्य के चीनी मादक पदार्थ जप्त किए थे । मणिपुर के चुराचांदपुर में उनकी नियुक्ति हुई एवं उन्होंने स्थानीय लोगों से कहा कि वे मादक पदार्थो का व्यवसाय करनेवालों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करेंगे । उसका मूल्य उन्हें चुकाना पडा । क्योंकि रैकेट में सम्मिलित ग्रामीणों ने पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के पोषित स्लीपर सेल को षड्यंत्र रचकर उनकी हत्या करने के संबंध में आवश्यक सब जानकारी दी थी ।

८.चीन के द्वारा म्यांमार में हुए सत्तापरिवर्तन का अनुचित लाभ उठाकर भारतविरोधी गतिविधियां चलाई जाना

म्यांमार में सत्ता परिवर्तन के पश्चात चीन को अब भारत में शस्त्रास्त्र, गोला-बारूद और प्रशिक्षित आतंकवादियों को घुसाना सरल हो गया है । मोरेह सीमा के पास रहने वाले लोगों को अज्ञान के कारण चीन का दुष्ट उद्देश्य ध्यान में नहीं आता एवं चीन के कारण उन पर संकट आ सकता है, ऐसा उन्हें नहीं लगता । , स्थानीय लोगों के समर्थन के कारण म्यांमार के लोगों को मणिपुर/मिजोरम में आकर व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया है। म्यांमार की सेना की प्रताडना से दूर जाकर आश्रय मिलने के निमित्त एवं म्यांमार के “फ्री मूवमेंट रेजीम” (FMR) का लाभ उठाने के निमित्त (फ्री रिजिम अर्थात सीमा पर स्थित गांवों में रहने वाली जनजातियां स्वतंत्र रूप से सीमा पार कर सकती हैं और दोनों ओर १६ किमी की यात्रा कर सकती हैं, वीजा प्रतिबंधों के बिना) मादक पदार्थो का व्यापार करनेवाले एवं चीन द्वारा प्रशिक्षित आतंकवादी म्यांमार के रास्ते भारत में प्रवेश कर रहे हैं।

९. भारत को रणनीति बनाकर चीन की कूटनीति का उत्तर देना आवश्यक !

अनेक स्थानों की इन समस्याओं को सुलझाने पर उसकी समाधान योजनाएं निर्भर हैं । इसके लिए नागरिकों से संवाद कर दशकों से अधिक समय से उत्पन्न अविश्वास और ऐतिहासिक घाव भरना महत्वपूर्ण है । इतिहास में स्थानीय समुदायों का ध्रुवीकरण हुआ है। बातचीत के माध्यम से मैतेई और कुकी दोनों की चिंताओं को दूर करना पहला कदम है। क्योंकि चीन की कूटनीति सेना एवं प्रशासन की दष्टि से उत्तर देने के लिए देश में एवं भारत के बाहर की रणनीति का सामना करना आवश्यक है । मणिपुर में सत्ता परिवर्तन से भी हिंसा रुक सकती है, क्योंकि एन वीरेन सिंह को अहंकारी व्यक्ति माना जा रहा है। राज्य में अफ्सपा (Armed Forces Special Power Act) हटाने के पश्चात राज्य सरकार सेना से जिस प्रकार व्यवहार कर रही है, उससे सेना भी संतुष्ट नहीं है।

समस्या के समाधान के लिए यह आवश्यक है कि मैतेई समाज की समस्या का उचित समाधान हो। बाहर से अवैध रूप से आए लोगों के कारण मणिपुर दूसरा आसाम न बने । आसाम में मूल भारतीय लोगों से अधिक संख्या में अवैध रूप से आए शरणार्थी हैं।

– मेजर सरस त्रिपाठी, पूर्व सेनाधिकारी और राजनैतिक विश्लेषक, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश (१९.६.२०२३)