वर्तमान में भारत में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून ही कार्यरत हैं, जो कि भौतिकता पर आधारित हैं । इसके विपरीत हिन्दू धर्मशास्त्र में वाद-विवाद से निष्कर्ष निकालकर, अंतिम सत्य तक पहुंचने का प्रयत्न किया जाता है । इसीलिए अपनी न्यायव्यवस्था का घोषवाक्य ‘सत्यमेव जयते’ है, ऐसा मैं मानता हूं । इस वाक्य से सत्य की खोज करने के लिए नैतिक लडाई की प्रेरणा मिलती है । रामजन्मभूमि की लडाई, यह केवल भूमि की लडाई नहीं थी अपितु वह श्रीरामजन्म के सत्य की खोज की लडाई थी ।
स्वतंत्रता से पूर्व भारत में न्यायालयीन कामकाज में वेद-शास्त्र का संदर्भ दिया जाता था; परंतु अब कानून के पाश्चात्त्यीकरण के कारण उनके संदर्भों का उपयोग नहीं किया जाता है । स्वतंत्रताप्राप्ति के उपरांत साम्यवादियों की बौद्धिक विकृति ने भारत में मजबूत जाल बनाया है । वर्तमान में एक नई विकृति अपने पैर जमाने के लिए प्रयत्नशील है और वह है समलैंगिक विवाह ! जो कि हिन्दुओं की कौटुंबिक, सामाजिक एवं विवाह संस्था पर आक्रमण है । ऐसे आक्रमणों का विरोध करने के लिए अधिवक्ता अपने धर्मग्रंथों का आधार लें और उनका अध्ययन करें, ऐसा वक्तव्य सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्रीधर पोतराजू ने किया ।