समलैंगिक विवाह, नगरी धनवानों की एक संकल्पना !

केंद्र सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह का विरोध !

नई देहली – समलैंगिक विवाहों को मान्यता देना, अर्थात एक नई सामाजिक संस्था को जन्म देना ! समलैंगिक विवाहों को वैध बनाने से समाज में प्रचलित व्यक्तिगत कानून एवं सामाजिक मूल्यों का संवेदनशील संतुलन पूर्णतया नष्ट हो जाएगा । समलैंगिक विवाह नगरी क्षेत्र के धनवान लोगों की संकल्पना है, केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में यह तर्क दिया । देश में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता मिले, इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं प्रविष्ट की गई हैं । इन याचिकाओं पर अगली सुनवाई १८ अप्रैल को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ के समक्ष होगी ।

केंद्र सरकार ने कहा है,

१. समलैंगिक विवाहों को वैध बनाने का निर्णय नगरी एवं ग्रामीण नागरिकों की मानसिकता, धर्म-संप्रदाय एवं व्यक्तिगत कानूनों को ध्यान में लेते हुए लिया जाना चाहिए । उसमें विवाह से संबंधित रूढि एवं परंपराओं का भी महत्त्व हैं ।

२. इस प्रकरण का निर्णय जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि लें । यह लोकतांत्रिक मार्ग है, जिसके द्वारा नई सामाजिक संस्था की कल्पना तैयार की जा सकती है अथवा पहचानी जा सकती है ।

३. ‍वर्तमान में विवाह व्यवस्था को समान अधिकार देने का प्रश्‍न है, प्रत्येक नागरिक के हित में उसका परिणाम होगा । यदि न्यायालय उसे कानूनी मान्यता देता है, तो उसका अर्थ यह होगा कि न्यायपालिका पूरी तरह से कानून को पुन: लिख रही है, जो न्यायालय का काम नहीं है ।

संपादकीय भूमिका 

केंद्र सरकार द्वारा समलैंगिक विवाहों का विरोध अभिनंदनीय है । इस पर सरकार को दृढ रहना चाहिए !