पुनर्निर्माण के पश्चात कश्मीर के प्राचीन श्री शारदादेवी मंदिर का उद्घाटन !

कश्मीर का प्राचीन श्री शारदादेवी मंदिर

श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) – केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने २२ मार्च को कश्मीर में कुपवाडा से ३० किलोमीटर दूरी पर भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा के निकट करनाह सेक्टर के तीतवाल में पुनर्निर्माण के उपरांत प्राचीन श्री शारदादेवी मंदिर (शारदा पीठ) ऑनलाईन उद्घाटन किया । विगत अनेक दशकों से यह मंदिर जीर्णावस्था में था ।

इस समय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, हमारी सरकार करतारपुर कॉरिडोर की भांति श्री शारदादेवी मंदिर तक जाने के लिए मार्ग का निर्माण कर रही है । धारा ३७० हटाने के उपरांत कश्मीर की प्राचीन परंपरा एवं संस्कृति पुनर्स्थापित हो रही है । शारदा पीठ भारत के सांस्कृतिक, धार्मिक एवं शैक्षिक धरोहर का ऐतिहासिक केंद्र है । एक समय शारदापीठ उपमहाद्वीप के ज्ञान का केंद्र था । आध्यात्मिक ज्ञान के लिए संपूर्ण देश से विद्वान यहां आते थे । चैत्र नवरात्रि के पूर्व यहां माताजी की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की गई है । यह केवल मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं, अपितु शारदा संस्कृति के अनुसंधान का आरंभ है । यह शक्तिपीठों में से एक है । यहां माता सती का बायां हाथ गिरा था तथा क्षीरसागर के अमृतमंथन से प्राप्त अमृत यहां लाया गया था । उसकी दो बूंदें यहां गिरीं तथा यहां मूर्ति के रूप में स्थापित हुईं । यहां आदि शंकराचार्य ने श्री सरस्वती माताजी की स्तुति की थी ।

दिसंबर २०२१ में इस मंदिर का पुनर्निर्माण आरंभ किया गया था । ‘सेव शारदा समिति’ द्वारा मंदिर निर्माण समिति की स्थापना की गई । उसमें ३ स्थानीय मुसलमान, १ सिक्ख एवं १ कश्मीरी हिन्दू समाहित हैं । मंदिर के साथ-साथ गुरुद्वारा एवं मस्जिद का भी निर्माण कार्य हो रहा है ।

शारदा पीठ के (मंदिर का) इतिहास !

शारदा पीठ में स्थित श्री सरस्वती देवीकी मूर्ती

शारदा पीठ श्री सरस्वती देवी का प्राचीन मंदिर है । वह २ सहस्र ४०० वर्षों से अधिक पुराना है । शक्ति की आराधना करनेवाले शाक्त संप्रदाय का यह प्रथम तीर्थस्थल है । कश्मीर के इसी मंदिर से सर्वप्रथम देवी की आराधना आरंभ हुई थी । तदनंतर श्री वैष्णो देवी एवं खीर भवानी मंदिर की स्थापना हुई ।

ईसा पूर्व २३७ में मगध सम्राट अशोक ने इस मंदिर का निर्माण किया था । इस पर अनेक बार आक्रमण हुए । इस मंदिर का अंतिम पुनर्निमाण डोगरा साम्राज्य के संस्थापक एवं जम्मू-कश्मीर के महाराजा गुलाब सिंह जामवाल ने १९ वीं शताब्दी में किया था । गत ७ दशकों से यह मंदिर जीर्णावस्था में था ।

स्थानीय लोगों का कहना है, ‘‘इस पीठ में शारदा देवी की ३ शक्तियों का संगम है । इसमें प्रथम शारदा  (विद्या की देवी), दूसरी सरस्वती (ज्ञान की देवी) एवं तीसरी वाग्देवी (वाणी की देवी) समाहित हैं” ।