भारत में संख्या में सर्वाधिक युवावर्ग को दिशा देना राष्ट्रीय दायित्व ही है !

वैश्विक आंकडों के अनुसार विश्व के सभी देशों में सर्वाधिक युवावर्ग भारत में है । उसमें भी महाविद्यालयीन शिक्षा ग्रहण करनेवाला वर्ग बडा है । भारत जैसे विभिन्न संस्कृति, भाषाएं एवं प्रथा-परंपरावाले देश में इतनी बडी मात्रा में युवाशक्ति का होना देश के लिए अत्यंत लाभकारी है । आज के समय में भारत में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, महिलाओं पर अत्याचार, हिन्दुओं पर हो रहे आक्रमण, लव जिहाद जैसी अनेक गंभीर समस्याएं हैं । इन गंभीर समस्याओं के समाधान के लिए युवा पीढी बडा योगदान दे सकती है । उस दृष्टि से उन्हें तैयार करना राष्ट्रीय दायित्व है; परंतु युवावर्ग का दिशादर्शन करने के लिए प्रस्थापित शिक्षाव्यवस्था अधूरी है । प्रस्थापित शिक्षाव्यवस्था में बडे स्तर पर परिवर्तन लाकर उसमें आदर्श आचार एवं विचार सिखानेवाली धर्मशिक्षा अंतर्भूत करने की आवश्यकता है । इसके लिए शासनकर्ताओं ने इच्छाशक्ति दिखाई, तो केवल शिक्षाव्यवस्था ही नहीं, अपितु देश में ही आमूलचूल परिवर्तन आ सकता है । सर्वाधिक युवावर्गवाले देश के शासनकर्ताओं को इसके लिए इच्छाशक्ति दिखाना आवश्यक है !

माता-पिता के संदर्भ में ‘उपयोग करो और फेंक दो’ तत्त्व का प्रयोग करनेवाली युवा पीढी !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेे

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेे ‘उपयोग करो और फेंक दो’ (Use and Throw)’ यह जो पश्चिमियों की आधुनिक संस्कृति है, उसे अब अनेक युवकों ने भी अपना लिया है । उसके कारण जिन माता-पिता ने जन्म दिया, जन्म से लेकर आत्मनिर्भर होने तक सभी बातों का ध्यान रखा, उदा. बीमारी के समय में सबकुछ किया, शिक्षा का प्रबंध किया; ऐसे माता-पिता के प्रति कृतज्ञता का भाव न रखकर आज के पश्चिमी संस्कृति को अपनाए हुए युवक माता-पिता की वृद्धावस्था में ‘उपयोग करो और फेंक दो’ की आधुनिक पश्चिमी संस्कृति के अनुसार उन्हें वृद्धाश्रम भेजते हैं अथवा उनकी उपेक्षा करते हैं । उसका पाप उन्हें अनेक जन्मों तक भोगना ही पडेगा ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेे 

भारत के युवकों की भयावह दु:स्थिति !

आज के अधिकांश युवकों के सामने अपना करियर छोडकर कोई विशिष्ट ध्येय अथवा आदर्श ही नहीं है । जिस प्रकार जहाज का पाल, बादबान, मस्तूल के बिना जहाज समुद्र में कहीं भी भटक जाता है, वैसे ही आज का युवक है । चरित्रहीन एवं ध्येयशून्य व्यक्तित्व, साथ ही भ्रष्ट राजनीति में आकंठ डूबकर जनता एवं राष्ट्र को प्रधानता न देकर अपने स्वार्थ के लिए परिश्रम उठानेवाले राजनेता गण आज के युवकों के आदर्श होने से आज का युवक भौंचक्का रह गया है । वह हिन्दी फिल्मों के घिनौने एवं अश्लील गाने गाते हुए अधिकाधिक व्यसनों के अधीन हो रहा है । वह मादक पदार्थाें के भी अधीन हो चुका है । युवकों में विकृतियां बढ रही हैं । ‘इसे समय रहते रोका नहीं गया, तो विकास नहीं, अपिुत विनाश ही होनेवाला है’, यह बताने के लिए किसी भविष्यवेत्ता की आवश्यकता नहीं है ।

विकृत पद्धति से जन्मदिवस मनाना !

पिछले कुछ वर्षाें से युवकों में विकृत पद्धति से जन्मदिवस मनाने की प्रथा प्रचलित हुई है । जिसका जन्मदिवस होता है, उसके मुंह पर केक लीपा जाता है अथवा मारा जाता है । उसके उपरांत जन्मदिवस के लिए लाया हुआ दूसरा केक काटा जाता है । अब ये पद्धतियां दूरदर्शन के विज्ञापनों में भी दिखने लगी हैं । जिसका जन्मदिवस होता है, उसे शुभकामनाएं देने के स्थान पर उसके लिए अपशब्द कहे जाते हैं । कहीं-कहीं तो सार्वजनिक रूप से तलवार से केक काटा जाता है । तलवार से केक काटने के कारण महाराष्ट्र राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में युवकों पर अपराध पंजीकृत हो रहे हैं; परंतु तब भी युवकों को उसका कुछ नहीं लगता तथा अन्य स्थानों पर ऐसी घटनाएं बार-बार हो रही हैं ।

तुच्छ कारणों से आत्महत्या करना !

अभिभावकों ने चल दूरभाष संच छीन लिया, चल दूरभाष संच का उपयोग अल्प करने के लिए कहा, तो किसी पर मां क्रोधित हुई; ऐसे कारणों से आत्महत्या करने की घटनाएं हो रही हैं । कोई परीक्षा का तनाव लेकर, तो कोई परीक्षा में अल्प अंक मिले; इन कारणों से आत्महत्या करते हैं । कोई प्रेमभंग होने के कारण आत्महत्या करता है । इसमें दुर्लभ मनुष्यजीवन का मूल्य समझ लेने के लिए कोई तैयार नहीं है, ऐसी स्थिति है ।

युवकों में सामान्य ज्ञान न होना !

एक निजी समाचार वाहिनी के प्रतिनिधियों ने युवक-युवतियों के सामान्य ज्ञान की पडताल करने के लिए उन्हें कुछ प्रश्न पूछे तथा उसका चित्रीकरण किया । उसमें ‘महाभारत क्या है ?’, ‘भीष्म कौन थे ?’ ‘द्रौपदी कौन थीं ?’ ‘भारत के वर्तमान राष्ट्रपति कौन हैं ?’ जैसे सरल प्रश्न पूछे गए थे । अनेक युवक-युवतियां इन सरल प्रश्नों के भी उत्तर नहीं दे सके, जिससे प्रश्न पूछनेवाले प्रतिनिधि एवं दर्शक आश्चर्यचकित रह गए ।

पूर्व छात्रों के कार्यक्रम में मदिरा के लिए युवक अडे रहे !

एक गांव के विद्यालय के दसवीं कक्षा के पूर्व छात्रों ने स्नेहसम्मेलन का कार्यक्रम सुनिश्चित किया । इसमें लडके मदिरा की पार्टी करने पर अडे रहे । इसके फलस्वरूप लडकियों ने उस कार्यक्रम में आना अस्वीकार किया । अंत में लडकियों के अनुरोध पर युवकों ने किसी प्रकार यह पार्टी रद्द की । इससे आज के युवकों को मदिरा की कितनी लत लगी है, यह ध्यान में आता है । क्या ऐसे युवक राष्ट्र का तो छोडिए; परंतु अपने परिवार का भी कुछ भला कर सकेंगे ?

– श्रीमती नम्रता दिवेकर, सनातन आश्रम, पनवेल. (१६.६.२०२२) 

श्रीमती नम्रता दिवेकर

भारत देश की संस्कृति सबसे प्राचीन एवं समृद्ध है । काल के प्रवाह में विश्व की अनेक संस्कृतियां विलुप्त हो गईं । सनातन हिन्दू संस्कृति इतने सारे आघात सहन कर भले ही अभी टिकी हुई है; परंतु आज के समय पाश्‍चात्त्य संस्कृति का अंधानुकरण तथा हिन्दुओं में धर्म के प्रति की अनास्था के कारण भारत में देवता, देश एवं धर्म की उपेक्षा चल रही है । इसके फलस्वरूप भारत में ‘डे संस्कृति’ बढने लगी । आज के समय में भारत में विभिन्न ‘डे’ मनाए जाते हैं, जिनका कोई शास्त्राधार नहीं है । पाश्चात्त्यों की इस ‘डे’ संस्कृति के साथ विकृति भी आई तथा आज की युवा पीढी उसका शिकार हो रही है । इससे हमें बाहर निकलना हो, तो हमें इस विषय में युवा पीढी का उद्बोधन करना पडेगा तथा समाज में बढ रही दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध संगठित होकर खडा होना पडेगा ।
– श्रीमती नम्रता दिवेकर, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल (६.६.२०२२)