हल्द्वानी (उत्तराखंड) यहां सरकारी भूमि पर स्थित ४ सहस्र घर गिराने के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थगन(स्टे ऑर्डर)

अतिक्रमण की कार्रवाई को स्थगन नहीं; अपितु प्रथम पुनर्वसन आवश्यक ! – सर्वोच्च न्यायालय

नई  देहली – उत्तराखंड के हल्द्वानी गांव के रेल की २९ एकड भूमि पर अवैध पद्धति से निवास कर रहे ४ सहस्र परिवारों को (लगभग ५० सहस्र लोगों को) हटाने का उत्तराखंड उच्च न्यायालय का दिया आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगित कर दिया है । सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘इतनी बडी संख्या में तथा इतनी लंबीअवधि से लोग यहां रह रहे हैं । उनका पुनर्वसन करना आवश्यक है, उनका पुनर्वसन करना ही पडेगा । केवल ७ दिनों में ये लोग स्थान कैसे खाली कर पाएंगे ? सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि अब यहां पर कोई भी भवन का निर्माण एवं विकास नहीं होना चाहिए । न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि इस संदर्भ में प्रक्रिया को नहीं, अपितु केवल उच्च न्यायालय के आदेश को स्थगित किया गया है ।

१. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ‘यहां के लोगों के पास यह भूमि स्वतंत्रतापूर्व से है । उनके पास सरकार की ‘लीज’ (निश्चित अवधि के लिए भाडे (पट्टे) पर ली गई अनुमति) है । इसके पश्चात भी सरकार यह भूमि स्वयं की होने का दावा कर रही है । रेल भी यह भूमि अपनी होने का दावा कर रही है ।

२. उत्तराखंड सरकार एवं रेल प्रशासन का दावा है कि इस भूमि पर रहनेवाले लोगों ने किसी भी प्रकार के पुनर्वसन की मांग नहीं की है । यह भूमि रेल के विकास एवं सुविधा के लिए आवश्यक है ।

३. उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश के उपरांत यहां निर्माणकार्यों पर कार्रवाई करने आने से पूर्व नागरिकों ने धरना आंदोलन आरंभ किया था, फेरियां निकाली गई थीं । इस क्षेत्र की एक मस्जिद में सैकडों नागरिकों ने सामूहिक नमाजपठन कर प्रार्थना की ।

९५ प्रतिशत मुस्लिम लोगों का समावेश !

हल्द्वानी के बनभूलपुर के रेल की भूमि पर अतिक्रमण करके निवास कर रहे ४ सहस्र परिवारों में ९५ प्रतिशत लोग मुस्लिम परिवारों से हैं । स्वतंत्रता के पूर्व इस क्षेत्र में उद्यान, लकडी के भंडार एवं कारखाने थे । उसमें उत्तर प्रदेश के रामपुर, मुरादाबाद एवं बरेली के मुसलमान लोग रहते थे । धीमे धीमे उन्होंने रेल की २९ एकड भूमि अपने नियंत्रण में कर ली । यह क्षेत्र लगभग २ किमी की दूरी से अधिक क्षेत्र में विस्तारित है । इस क्षेत्र को गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती एवं इंदिरा नगर नामों से पहचाना जाता है । यहां ४ सरकारी पाठशालाएं, ११ निजी पाठशालाएं, २ ओवरहेड पानी की टंकियां, १० मस्जिद एवं ४ मंदिर हैं । (सरकारी भूमि पर इतनी बडी मात्रा में अनेक वर्षों तक अतिक्रमण हो रहा था एवं वहां सरकारी पाठशालाओं का निर्माण किया गया, तबतक क्या प्रशासन सो रहा था ? देश में अधिकतर स्थानों पर इसी प्रकार अतिक्रमण हुए हैं, अब उनको हटाना अर्थात युद्ध जैसी स्थिति निर्माण करना ! यह भारतीयों के लिए लज्जाजनक है ! – संपादक)