कारवार (कर्नाटक) – अनासक्त, देहभान भूलकर मूर्तियां बनाने की सेवा करनेवाले, तथा कर्नाटक सरकार द्वारा ‘जकणाचार्य पुरस्कार’ प्राप्त करनेवाले कारवार के प्रसिद्ध शिल्पकार पू. नंदा आचारीजी ने (गुरुजी) ने ११ दिसंबर को दोपहर १२.३० बजे देहत्याग किया । वे ८२ वर्ष के थे । उनके पश्चात पत्नी, १ बेटी और ४ बेटे हैं । ३ नवंबर २०२२ को उन्हें सनातन संस्था के गोवा स्थित रामनाथी आश्रम में संत के रूप में घोषित किया गया था । सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति उनके मन में अपार भाव था । आश्रम में स्थित श्री सिद्धिविनायक की मूर्ति पू. नंदा आचारीजी ने ही बनाई थी ।
दशकलाओं के अधिकारी पू. आचारी गुरुजी !
पू. आचारी गुरुजी को दशकलाएं ज्ञात थीं । गुरुजी कहते थे ‘अब तक हमने पंचकलाएं ज्ञात व्यक्तियों के बारे में सुना था; परंतु ‘भगवान ने मुझे दशकलाएं प्रदान की हैं ।’ उन्हें पत्थर, माटी, सीमेंट, फाइबर, लकडी, सोना, चांदी, पितल, तांबा एवं एल्यूमिनियम इत्यादि वस्तुओं से मूर्ति बनाने की कला ज्ञात थी । तथा पुराने ‘टाइप राइटर’ की दुरुस्ती करना; पेट्रोल और डिजल इंजिन, चारपहिया वाहन, दोपहिया वाहनों की दुरुस्ती करना; सिलाईयंत्र बनाना और उसकी दुरुस्ती करना; एल्युमिनियम का उपयोग कर पहसुल (सब्जी काटने का एक यंत्र) बनाना इत्यादी कलाएं ज्ञात थीं । इतना ही नहीं; अपितु मूर्ति तैयार करने के लिए लगनेवाले यंत्र अथवा औजार वे स्वयं ही बनाते थे । सूक्ष्म का समझने की क्षमता भी उनमें थी । सूक्ष्म का समझने की क्षमता और उस प्रकार मूर्ति बनानेवाले पू. आचारी गुरुजी !
‘कौनसे देवी-देवता की मूर्ति कौनसे पत्थर से बनानी चाहिए ?’, यह बात गुरुजी को उस पत्थर को छूते ही ज्ञात होता था । उस पत्थर को स्पर्श करने पर उस पत्थर से आनेवाले स्पंदन, जो मूर्ति बनानी है, उस देवता के स्पदनों से मिलते-जुलते होने चाहिए । उन स्पंदनों के द्वारा उन्हें ‘क्या उस मूर्ति के लिए वह पत्थर उचित है ?’, उसका अंतर से भान होता था ।’
– श्री. रामानंद परब (आध्यात्मिक स्तर ६८ प्रतिशत) और श्री. राजू सुतार, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा ।