एक प्लस्टिक के बर्तन में ३०० मि.ली. (अनुमान से १ गिलास) पानी, देशी गाय का ३० ग्राम (अनुमान से आधी कटोरी) ताजा गोबर, देशी गाय का ३० मि.ली. (अनुमान से आधी कटोरी) मूत्र (यह कितना भी पुराना हो सकता है), १ चम्मच बेसन, १ चम्मच गुड एवं चुटकीभर मिट्टी का मिश्रण बनाकर सूती कपडे से ढककर रखें । यह मिश्रण ३ दिन सवेरे-शाम लकडी से घडी के कांटे की दिशा में आधा मिनट हिलाएं । चौथे दिन इसमें १० गुना (३ लोटे) पानी मिलाएं । यह पानी में पतला किया हुआ जीवामृत प्रत्येक गमले में लगे पौधों को १ – १ कटोरी, उनकी जडों में डालें । यह पानी मिला हुआ जीवामृत कपडे से छानकर तुषार की बोतलों में (स्प्रेयर में) भरकर इसका पौधों पर छिडकाव भी करें । प्रत्येक पूर्णिमा एवं अमावस्या, इन तिथियों पर फव्वारा करें । एक बार बनाया हुआ जीवामृत २-३ दिनों में उपयोग कर समाप्त करें ।
देशी गाय के केवल ३० ग्राम गोबर से ३ दिनों में ३० गमलों के लिए पर्याप्त प्राकृतिक खाद बनती है । इससे अधिक सस्ती एवं शीघ्र बननेवाली दूसरी कौन-सी खाद होगी ? १५ दिनों में एक बार ऐसी खाद बनाएं एवं घर के घर में ही भरपूर हरा शाक उगाएं ।’
प्राकृतिक खेती के विषय में अपप्रचार का खंडन
अपप्रचार : आप रासायनिक खेती करते हों, तो एकाएक प्राकृतिक खेती की ओर न मुडें । वैसा करने से आपकी उपज (पैदावार) घटेगी ।
खंडन : गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत पहले कुरुक्षेत्र, हरियाणा में उनके गुरुकुल के ९० एकड भूमि पर रासायनिक खेती करते थे । खेती में हानिकारक रसायन छिडकते समय रसायनों के दुष्प्रभाव से एक बार एक मजदूर बेसुध हो गया । उसे रुग्णालय में भरती करना पडा । तब आचार्य देवव्रत ने विषैली खेती के पर्याय के रूप में प्राकृतिक खेती कर देखने का निश्चय किया । प्रयोग के तौर पर प्रथम वर्ष ९० में से १० एकड क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की । पहले ही वर्ष में रासायनिक खेती समान ही उनकी उपज हुई । उपज में घटौती नहीं हुई । तदुपरांत उन्होंने पूरे ९० एकड क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की । उस समय उन्हें रासायनिक खेती की अपेक्षा भी अधिक उपज मिली । प्राकृतिक खेती का अध्ययन उचित ढंग से करने पर उपज में रत्तीभर भी घटौती नहीं होती ।’
– श्रीमती राघवी मयूरेश कोनेकर, ढवळी, फोंडा, गोवा. (३०.७.२०२२)