‘मोरबी पुल का धराशायी होना यह दैवी घटना थी !’

आरोपी का न्यायालय में वक्तव्य !

मोरबी (गुजरात) – गुजरात के मोरबी में धराशायी हुए झूलते पुल के रखरखाव के लिए जिम्मेदार ´ओरेवा प्रतिष्ठान´ के प्रबंधक दीपक पारेख ने न्यायालय में कहा कि ‘इस पुल का गिरना ईश्वर इच्छा से हुआ है’ । उस समय सरकारी वकील ने न्यायालय को सूचित किया कि ‘पुल के तार क्षतिग्रस्त हो गए थे और नवीनीकरण के समय उन्हें नहीं बदला गया । मोरबी और राजकोट बार एसोसिएशन ने घटना के लिए जिम्मेदार लोगों के प्रकरण में वकील  न लेने का निर्णय किया है ।

१. पुल के रखरखाव के लिए मोरबी नगर निगम और ‘अंजता ओरवा प्रतिष्ठान´ के बीच १५ वर्ष का अनुबंध किया गया था । इस अनुबंध पर मार्च २०२२ में हस्ताक्षर किए गए थे । इस अनुबंध की अवधि वर्ष २०३७  तक है । इस दुर्घटना के संबंध में दीपक पारेख, दिनेश दवे, मनसुख टोपिया, महादेव सोलंकी, प्रकाश परमार, देवांग, अल्पेश गोहिल, दिलीप गोहिल और मुकेश चौहान को बंदी बनाया गया है ।

२. पुल के जीर्णोद्धार के नाम पर पुल के लकड़ी के आधार को एल्युमिनियम की चादर की ४ परतों से बदल गया था । इससे पुल का वजन अधिक बढ़ गया। पुल पर भीड़ अधिक बढ़ने के कारण पुल ढह गया क्योंकि पुराने तार उतना भार सहन नहीं कर सके । गुजरात पुलिस ने शपथ पत्र प्रविष्ट कर यह जानकारी न्यायालय  में प्रस्तुत की है ।

३. सरकारी अधिवक्ता पांचाल ने कहा कि ‘फोरेंसिक साइंस लैब’ द्वारा की गई जांच में पाया गया कि जिन तारों पर पुल बनाया गया था, उन्हें रखरखाव के ७ महीनों में नहीं बदला गया । रखरखाव करने वाले ठेकेदारों को झूलते पुल की तकनीक और संरचनात्मक तथ्यों का आवश्यक ज्ञान नहीं था, इसलिए उन्होंने पुल की केवल ऊपरी सजावट पर ध्यान केंद्रित किया । जिसके फलस्वरूप जो पुल बाह्यतः सशक्त लग रहा था वास्तव में वह आंतरिक दृष्टि से अक्षम था।

संपादकीय भूमिका

जो लोग अपनी लापरवाही और आलस्य के कारण दुर्घटना के लिए भगवान को दोषी ठहराते हैं, उन्हें मृत्युदंड मिलना चाहिए !