गुरु-शिष्य का अद्भुत यह बंधन ।

– कु. निधि देशमुख

गुरु-शिष्य का अद्भुत यह बंधन ।
एकरूपता का यह दुर्लभ उदाहरण ।। १ ।।

क्या मां का आंचल, क्या मंगलसूत्र के मोती ।
प्रेम से भी बढकर, दिव्यता इसमें होती ।। २ ।।

है कर्पूर-सा समर्पण, भक्तिभाव की ज्योति ।
पूजा से भी बढकर, अलौकिकता इसमें होती ।। ३ ।।

निर्गुण को पाकर सगुण-साकार ।
त्याग और सेवा कर होना एकाकार ।। ४ ।।

गुरुकृपा से पाता शिष्य देवत्व ।
यही सगुण-निर्गुण एकरूपता का तत्त्व ।। ५ ।।

– कु. निधि देशमुख, फोंडा, गोवा. (अप्रैल २०१७)

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