ठाणे के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पं. निषाद बाक्रे ने अवलोकन किया महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का कार्य !

ठाणे के पं. निषाद बाक्रे शास्त्रीय संगीत के जाने-माने गायकों में से एक हैं । उन्होंने डॉ. राम देशपांडे, पं. उल्हास कशाळकर, पं. दिनकर कैकिणी, डॉ. अरुण द्रविड एवं पं. मधुकर जोशी, इन गुरुओं से संगीत की शिक्षा ली है । ग्वालियर, आगरा एवं जयपुर, इन तीनों घरानों की गायकी आत्मसात कर इन घरानों का एकत्रिकरण किया और उसमें कल्पकता एवं कलात्मकता लाने का सुविद्य प्रयास किया है । पं. निषाद बाक्रे ने २२ अगस्त २०२२ को महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संगीत विभाग के साधकों से भेंट की । उनके साथ उनके शिष्य श्री. श्रीरंग दातार एवं श्री. साहिल भोगले भी उपस्थित थे । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की संगीत विभाग की समन्वयक सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद, आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत) ने पं. निषाद बाक्रे को विश्वविद्यालय की ओर से किए गए शोधकार्य की जानकारी दी । पं. बाक्रे और उनके शिष्यों से इस शोधकार्य को जिज्ञासापूर्वक समझ लिया । २५ अगस्त तक के उनके यहां के निवास की अवधि में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से पं. बाक्रे के गायन का प्रस्तुतीकरण इत्यादि विभिन्न प्रकार के शोधकार्य से संबंधित प्रयोग आयोजित किए गए ।

पं. निषाद बाक्रे ने किया रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम का अवलोकन !

(बाएं से) श्री. श्रीरंग दातार, श्री. साहिल भोगले एवं पं. निषाद बाक्रे को सात्त्विक कलाकृतियों के विषय में जानकारी देते अधिवक्ता योगेश जलतारे

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का कार्य समझ लेने के लिए आए पं. निषाद बाक्रे ने रामनाथी (गोवा) के सनातन के आश्रम का भी अवलोकन कर वहां का कार्य समझ लिया । आश्रम का अवलोकन करते समय पं. निषाद बाक्रे को अनुभव हुए विशेषतापूर्ण सूत्रों और प्राप्त अनुभूतियों के विषय में यहां देखेंगे ।

१. पं. बाक्रे बहुत जिज्ञासु हैं तथा उन्होंने बहुत ही आत्मीयता के साथ संपूर्ण आश्रम देखा । उन्होंने साधना के विषय में भी अपनी शंकाएं पूछीं ।

२. आश्रम में चैतन्य के कारण आए विभिन्न परिवर्तन देखते समय वे और उनके शिष्यों ने उनसे संबंधित सूक्ष्म प्रयोगों के उत्तर अचूकता से पहचाने, उदा. वायुतत्त्व प्रयोग, फर्श का मुलायम लगना, कष्टदायक तथा अच्छे स्पंदन प्रतीत होना इत्यादि ।

३. पं. बाक्रे को यहां के ध्यानमंदिर में बहुत सकारात्मक ऊर्जा प्रतीत हुई और उन्हें ‘मंदिर में आने जैसा और वहां से न जाएं’, ऐसा लगा ।

४. पं. बाक्रे ने उन्हें प्राप्त अनुभव भी बताए, साथ ही विभिन्न स्थानों पर गायन करते समय वहां के स्पंदन अलग-अलग होते हैं, इसका भी अनुभव किया है, इस विषय में भी उन्होंने बताया ।

– सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत, संगीत विशारद), संगीत समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, फोंडा, गोवा. (२३.८.२०२२)

‘मैं यहां (आश्रम में) आया, यह बहुत अच्छा हुआ, अन्यथा मैं एक बहुत ही अच्छे विषय से वंचित रह जाता ।’ – श्री. श्रीरंग दातार (पं. निषाद बाक्रे इनके शिष्य)