(पेरोल अर्थात संचित अवकाश)
नई दिल्ली – संतानोत्पत्ति के लिए कैदी को पेरोल पर छोडा जा सकता है क्या ?, इस पर उच्चतम न्यायालय अगले सप्ताह में सुनवाई करने वाला है । यह प्रकरण राजस्थान का है। वहां के उच्च न्यायालय की जोधपुर खंडपीठ ने संबंधित कैदी को १५ दिन के पेरोल पर छोडने का निर्णय दिया था । इस निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका उच्चतम न्यायालय में प्रविष्ट की गई है ।
मुझे मां बनना है, मेरे पति को पैरोल दो! राजस्थान का ये मामला अब पहुंचा सुप्रीम कोर्ट#RajasthanNews | #Supremecourthttps://t.co/zXTLxIASkJ
— TV9 Bharatvarsh (@TV9Bharatvarsh) July 25, 2022
संबंधित कैदी ३४ वर्ष का है और उसे आजीवन कारावास का दंड मिला है । इस पर उसकी पत्नी ने ‘मुझे बच्चा चाहिए इसलिए पति को कुछ दिनों के लिए पेरोल पर छोडें’, ऐसी मांग करने वाली याचिका उच्च न्यायालय में प्रविष्ट की थी । इस पर सुनवाई करते समय न्यायालय ने कहा, ‘पत्नी निर्दोष है और उसे कोई भी दंड नहीं मिला है । उसे मातृत्व से वंचित न रखा जाए । वंश संरक्षण के उद्देश्य से विविध धार्मिक ग्रंथ, साथ ही न्यायिक निर्णयों में भी संतानोत्पत्ति को महत्व दिया गया है । विवाहित महिला को मां बनने की इच्छा होगी, तो यह इच्छा पूर्ण करना, यह राज्यव्यवस्था का दायित्व बनता है । ‘संतान के कारण कैदी पर सकारात्मक परिणाम होने से दंड पूर्ण कर बाहर आने पर वह मुख्य धारा में आसानी से सहभागी हो सकेगा’, ऐसा भी न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा ।