जब-जब अधर्म बलवान होता है, तब-तब मैं अवतार लेता हूं और धर्म की पुनर्स्थापना करता हूं’, ऐसा श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है । भगवान श्रीकृष्ण का संपूर्ण चरित्र देखें, तो उसमें विविध बातें अंतर्भूत हैं । उसमें नवविधा भक्ति है; इसके साथ ही क्षात्रधर्म है । इसलिए जब धर्म एवं राष्ट्र की रक्षा का विषय आता है, तब अन्य किसी भी अवतार की तुलना में भगवान श्रीकृष्ण का ही अधिक स्मरण होता है । उनका ही आदर्श लेकर प्रत्येक को कार्य करने की इच्छा होती है । भगवान श्रीकृष्ण इसके प्रेरणास्रोत एवं विचारप्रवर्तक हैं । आर्य चाणक्य नंदकुल का विनाश कर, भारत को एक छत्र के नीचे लाए । इस कार्य के लिए उन्होंने कृष्ण नीति का ही अधिक उपयोग किया । छत्रपति शिवाजी महाराजजी ने छापामार युद्ध द्वारा उनके ५ समकालीन मुगल बादशाहों पर विजय प्राप्त कर हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना की । इसके पीछे श्रीकृष्ण नीति ही थी । इसी से प्रेरणा लेकर आगे वीर सावरकर ने क्रांति की मशाल जलाई । इन सभी ने कृष्ण नीति का ही आदर्श अपने समक्ष रखा । अब यदि मान लें कि वर्तमान परिस्थिति में प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण ही कार्य कर रहे हैं, तो वह कार्य कैसा होगा ?, इसकी कोई कल्पना कर सकता है ? तो इसका उत्तर बहुतांश ‘नहीं’ में होगा । ‘ऐसा कुछ हो सकता है’, ऐसा विश्वास साधु-संत, उन्नत पुरुष एवं साधकों के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता । ‘सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी श्रीविष्णु के अवतार हैं’, ऐसा नाडीपट्टिका में महर्षि बता रहे हैं । सनातन संस्था के साधकों की इस पर श्रद्धा होने के साथ-साथ उनका गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के प्रति भाव भी है ।
सूक्ष्म स्तर पर युद्ध का परिणाम !
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी आध्यात्मिक स्तर पर (सूक्ष्म स्तर पर) अधर्म पर विजय प्राप्त कर धर्म की स्थापना करने का कार्य गत २३ वर्षों से कर रहे हैं । परात्पर डॉ. आठवलेजी ने वर्ष १९९८ में ही कहा था कि ‘वर्ष २०२५ में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी ।’ उन्होंने यह भी कहा था कि इसका बहुतांश कार्य आध्यात्मिक स्तर पर होगा । इससे पहले ऐसा किसी ने नहीं कहा था । आज देश में जो हिन्दुत्व की लहर आई है, उसके पीछे ईश्वरीय नियोजन ही है । २५ से ३० वर्ष पूर्व विदेश के ही नहीं; अपितु भारत के हिन्दुओं को भी स्वयं को ‘हिन्दू’ कहलवाने में लज्जा अनुभव होती थी । आज की स्थिति में बहुत परिवर्तन हुआ है, यह ध्यान में रखना चाहिए । अब तक ‘हिन्दू धर्म के नाम पर चुनाव जीत सकते हैं’, ऐसा विचार ही नहीं किया जा सकता था । हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव संपूर्ण रूप से हिन्दुत्व के सूत्र पर लडे गए और जीते भी गए । अयोध्या, मथुरा एवं काशी की मुक्ति की घोषणा गत अनेक शताब्दियों एवं दशकों से चल रही थी । उनमें से अयोध्या मुक्त हो गई । मथुरा एवं काशी भी कुछ समय में मुक्त होने की अवस्था में हैं । ऐसा कहा जा रहा है कि अब सत्ताधारी भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करने का विचार कर रहे हैं । ‘यह इतने वर्षाें में एकाएक कैसे क्या हो गया ?’ ऐसा प्रश्न निर्माण होता है । इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए आध्यात्मिक स्तर पर विचार करना आवश्यक है । केवल विचार ही नहीं, अपितु वैसा भाव होना भी महत्त्वपूर्ण है । आध्यात्मिक स्तर पर कार्य करते समय संत, गुरु की संकल्पशक्ति एवं सूक्ष्म स्तर पर कार्य करने की शक्ति महत्त्वपूर्ण होती है । पहले एक क्रांतिकारी और फिर स्वयं साधना कर ‘योगी’ बन गए योगी अरविंदजी ने दूसरे विश्वयुद्ध में हिटलर की पराजय होने हेतु सूक्ष्म स्तर पर युद्ध किया था । अर्थात हिटलर को सूक्ष्म रूप से सहायता करनेवाली शक्तियों के साथ योगी अरविंदजी ने सूक्ष्म स्तर पर युद्ध कर, उन शक्तियों को क्षीण कर दिया । उसका परिणाम हिटलर की पराजय में हुआ । इसकी जानकारी उनकी (योगी अरविंदजी की) पुस्तक में दी गई है । भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन को गीता बताते हुए कहा, ‘‘मैंने कौरवों को (अधर्मियों को) मार दिया है, तुम केवल निमित्त हो ।’’ इसका अर्थ ‘सूक्ष्म स्तर पर कौरवों को मिलनेवाली शक्ति नष्ट करने से अब वे शक्तिहीन हो गए हैं । अब उन्हें केवल स्थूल रूप से ही नष्ट करना शेष रह गया है और यह कार्य तुम करो ।’’ उसी प्रकार समाज में जो कुछ भी अधर्म फैला है, उसके पीछे सूक्ष्म शक्तियों के विरोध में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी सूक्ष्म स्तर पर युद्ध कर रहे हैं । इसलिए सूक्ष्म शक्तियों की भारी मात्रा में पराजय होने लगी है । अत: स्थूल स्तर पर अर्थात भारत एवं जगभर में हिन्दू धर्म को कुछ मात्रा में अच्छे दिन आने के संकेत मिल रहे हैं । जैसे-जैसे इन शक्तियों का पराजय होता जाएगा, वैसे-वैसे हिन्दू धर्म की पताका जगभर में अधिक ऊंची फहरेगी और अंत में भारत पुन: एक बार विश्वगुरु पद पर आरूढ होगा ।
साधना द्वारा ही हिन्दू धर्म का कार्य करना संभव !
योगी अरविंद के सूक्ष्म स्तर के कार्य को कोई भी प्रसिद्धि नहीं मिली अथवा ‘ऐसा कुछ हो सकता है’, यह भी कोई मान्य नहीं करेगा । इसका कारण यह है कि ऐसा कुछ शास्त्र होता है और उसके द्वारा स्थूल स्तर पर परिवर्तन कर सकते हैं, इसका किसी को भी अनहीं अथवा इस विषय का ज्ञान वर्तमान में प्रचलित भी नहीं है । यह तो केवल आध्यात्मिक स्तर पर जो उन्नत हैं, उन्हें ही यह बात पता है और वे ईश्वरीय इच्छानुसार कार्य करते रहते हैं । परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी के संपूर्ण कार्य में से बहुतांश भाग आध्यात्मिक स्तर पर ही है । उर्वरित भागों में ग्रंथलेखन, मार्गदर्शन आदि का समावेश है । जो ग्रंथलेखन किया गया है, उसमें भी काफी भाग सूक्ष्म स्तर का है । मन, बुद्धि, पंचज्ञानेंद्रियों, पंचकर्मेद्रियाेंं के परे की बात समझना, अर्थात सूक्ष्म समझना ! भावी पीढी इसका अध्ययन कर, यह समझ सके, इसके लिए उन्होंने उसका लेखन वैज्ञानिक परिभाषा में किया है । यहां विशेष बात यह है कि ऐसा लेखन किसी ने भी आज तक नहीं किया है । इस सूक्ष्म ज्ञान का अध्ययन करना और उसके लिए आवश्यक साधना कर संपूर्ण जगत के साथ-साथ हिन्दू धर्म के कल्याण के लिए प्रत्येक जीव द्वारा कार्य हो, यही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव निमित्त उनके श्रीचरणों में प्रार्थना है !