स्वरसम्राज्ञी भारतरत्न लता मंगेशकर पंचतत्त्व में विलीन !

  •  २ दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित !

  • अनेक गायकों और मान्यवरों ने दी लतादीदी को श्रद्धांजली


मुंबई – विगत ८ दशकों से भारत के स्वरविश्व में आशयघन और अमृतस्वरों का सिंचन कर श्रोताओं को मंत्रमुघ्न करनेवाली और श्रोताओं के अंतर्मनतक पहुंचनेवाली स्वरसम्राज्ञी तथा भारतरत्न लता मंगेशकर का ६ फरवरी को सवेरे ८.१२ बजे मुंबई के ब्रीच कैन्डी चिकित्सालय में देहांत हुआ । वे ९३ वर्ष की थीं । कोरोनासंक्रमित होने से और उसके उपरांत न्यूमोनिया से ग्रस्त होने से वे पिछले २८ दिनों से चिकित्सालय में उपचार ले रही थीं । उनके कई अंगों ने काम करना बंद करने के कारण (मल्टीपल ऑर्गन फेल्युयर) उपचार के समय उनका निधन हुआ । ‘भारत की कोयल’ के रूप में विख्यात लतादीदी अपने मधुर गीतों के कारण विश्व के कोने-कोनेतक पहुंच गई थीं । कई मान्यवरों ने उनके निधन के कारण भारत के संगीत क्षेत्र के एक स्वरयुग की समाप्ति हुई’, ऐसे उद्गार व्यक्त किए ।

दादर स्थित शिवाजी पार्क पर सरकारी सम्मान के साथ उनका अंतिमसंस्कार किया गया । अंतिमसंस्कार के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीसहित कई मान्यवर उपस्थित थे । उनके निधन के कारण केंद्र सरकार ने २ दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है । उसके कारण संसद, राष्ट्रपति भवन, मुंबई के मंत्रालयसहित सभी सरकारी कार्यालयों पर राष्ट्रध्वज आधेतक उतारे गए । लतादीदी का पार्थिव ब्रीच कैन्डी चिकित्सालय से कुछ समयतक प्रभूकुंज आवास पर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था ।

लता मंगेशकर पर शिवाजी पार्क पर अंतिमसंस्कार !

लता मंगेशकर का आवास ‘प्रभुकुंज’ से उनका पार्थिव शरीर पेडर रोड, वरली नाका, श्री सिद्धिविनायक मंदिर से शिवाजी पार्क लाया गया । इस समय उनका अभिवादन करने के लिए सडक की दोनों बाजुओं पर सहस्रों लोगों की भीड उमड गई थी, साथ ही उनकी अंतिमयात्रा में उत्स्फूर्तता से सहस्रों लोग सम्मिलित थे । उससे पूर्व उनके घर के पास पुलिस विभाग और सेना की ओर से उन्हें मानवंदना दी गई । जिन पुरोहितों ने हिन्दूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे का अंत्यविधि किया, उन्हीं पुरोहितों ने लतादीदी के पार्थिव शरीर पर अंतिमसंस्कार किए । इस समय भगवद्गीता का १४वां अध्याय बोला गया ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवाजी पार्क जाकर लतादीदी के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन किए । उनके साथ ही राज्य के उपमुख्यमंत्री अजित पवार, गृहमंत्री दिलीप वळसे-पाटिल, मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे, भारतरत्न सचिन तेंडुलकर, गायक शंकर महादेवन्, अभिनेता शाहरूख खान, आमिरखान, निर्देशक अशोक पंडित इत्यादि अनेक मान्यवरों ने उनके अंतिम दर्शन कर उन्हें श्रद्धांजली दी । इस अवसर पर संपूर्ण मंगेशकर परिवार के सदस्य उपस्थित थे । इस अवसर भारत के तीनों सेनाबलों से लता मंगेशकर को मानवंदना दी गई ।

संक्षेप में लता मंगेशकर की जीवनयात्रा 

लता मंगेशकर का जन्म २८ दिसंबर १९२९ को इंदौर (मध्य प्रदेश) में हुआ । उन्होंने आयु के ५वें वर्ष से पिता दीनानाथ मंगेशकर से संगीत की शिक्षा ली । लतादीदी जब १३ वर्ष की थीं, तब उनके पिता का देहांत हुआ । परिवार में वे ही बडी होने से उन पर परिवार का दायित्व आया । इसके फलस्वरूप वर्ष १९४२ से उन्होंने पार्श्वगायन का आरंभ किया । उसके उपरांत ६ दशकोंतक उन्होंने मराठी और हिन्दी फिल्मविश्व में अपना परचम लहराया । उन्होंने २२ भाषाओं में ५० सहस्र से अधिक गाने गाए हैं । वर्ष १९७४ से १९९१ की अवधि में सर्वाधिक गानों का ध्वनिमुद्रण करने का विश्व कीर्तिमान उनके नाम रहा । उन्होंने ‘आनंदघन’ नाम से फिल्मों को संगीत दिया । उन्हें पद्मभूषण, पद्मविभूषण, दादासाहेब फाळके जैसे कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं । वर्ष १९९१ में उन्हें भारत के सर्वाेच्च नागरी पुरस्कार भारतरत्न से सम्मानित किया गया था । दादरा नगरहवेली मुक्ति संग्राम के लिए चंदा इकट्ठा करने के लिए उन्होंने अपने गीतों का कार्यक्रम किया । एक भेंटवार्ता में उन्होंने स्वयं को शास्त्रीय गायन करना संभव न होने के लिए खेद व्यक्त किया था ।

लता मंगेशकर पर स्वतंत्रतावीर सावरकर का प्रभाव !

देश की स्वतंत्रता के लिए अपने संपूर्ण जीवन को यज्ञ बनानेवाले वीर सावरकर का लता मंगेशकर पर बहुत प्रभाव था । उन्होंने इस बात को समय-समय पर व्यक्त भी किया था । वीर लतादीदी ने सावरकर की आलोचना करनेवालों को आडेहाथों लिया था । एक ट्वीट में उन्होंने कहा था कि जो लोग स्वतंत्रतावीर सावरकर के विरोध में बोल रहे हैं, उन्हें वीर सावरकर की देशभक्ति और स्वाभिमान के विषय में जानकारी नहीं है ।स्वतंत्रतावीर सावरकर की जयंती के उपलक्ष्य में ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा था, ‘मैं उनके वक्तव्यों और देशभक्ति को प्रणाम करती हूं । वीर सावरकर और मंगेशकर परिवार के घनिष्ट संबंध थे, उसके कारण ही वीर सावरकर ने मेरे पिता के लिए ‘संन्यस्तखड्ग’ नाटक लिखा था ।’

गायकों द्वारा लता मंगेशकर को दी गई मानवंदना !

श्री. श्रीधर फडके :  उन्होंने अपने सूरों से विश्व पर अधिराज्य किया । जब जब मुझे उनका सान्निध्य मिला, तब तब मुझे उनमें विलक्षण शक्ति और ऊर्जा प्रतीत होती थी । हमारे लिए वे एक चलता-बोलता हुआ विद्यालय ही थीं । वे राष्ट्रभक्त थीं । वे हमारे लिए बहुत बडी विरासत छोड गई हैं ।

श्रीमती आरती अंकलीकर-टिकेकर : वे गानसरस्वती ही थीं । वसंत पंचमी के दिन मुझे उनके स्थान पर सरस्वतीदेवी की प्रतिमा दिखाई दी । उनके गाने में जीवंतपन था । उनका गाना अंतर से होता था, उसके कारण वह आबालवृद्धों के अंतर्मनतक पहुंचता था । प्रत्येक व्यक्ति को उनसे प्रेरणा मिलती थी । उन्हें हम स्वरमाता ही कह सकते हैं ।

श्री. राहुल देशपांडे : लतादीदी हमारे लिए मार्गदर्शक थीं । वे स्वरों की माता अर्थात स्वरमाता थीं । मराठी गीत ‘मोगरा फुलला’ की भांति उनका प्रत्येक गीत अच्छा ही है ।

श्रीमती पद्मजा फेणाणी-जोगळेकर : लतादीदी के चले जाने के कारण प्रत्येक व्यक्ति में उसके घर का कोई व्यक्ति चला गया है, यही भावना है । मुझे ‘मेरे संगीत की माता ही चली गईं हैं’, ऐसा मुझे लगता है । वे मेरे लिए देवता ही थीं ।

श्री. सुदेश भोसले : मैने लतादीदी के साथ देश-विदेशों में सैकडों कार्यक्रम किए; परंतु तब भी प्रत्येक कार्यक्रम से पूर्व वे बहुत अभ्यास करती थीं । साथ ही अभ्यास के समय वे मुझे ‘मैने ऐसा गाया, तो चलेगा न ?’, ऐसा पूछती थीं । मुझे उनमें विद्यमान विनम्रता और किसी भी काम को परिपूर्ण पद्धति से करने का गुण बहुत भाता है । उनका प्रत्येक गीत परिपूर्ण है । वे किसी भी निर्देशक के मन को पढकर गाना गाती थीं, उससे उन्हें कुछ बताने की आवश्यकता नहीं पडती थी । वे उनके साथ काम करनेवाले नए और छोटे कलाकारों को भी प्रोत्साहन देती थीं ।

संगीतकार ए.आर्. रहमान : वे केवल गायिका नहीं, अपितु भारतीय संगीतविश्व का आत्मा थीं । उनके चले जाने से भारतीय संगीतविश्व की बहुत बडी हानि हुई है ।

मान्यवरों की प्रतिक्रियाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी : जिनके कंठ से सभी को माता सरस्वती के आशीर्वाद मिलते थे, वे लतादीदी ब्रह्मलोक की यात्रा के लिए निकल पडी हैं । लतादीदी के कई लोगों से घनिष्ठ संबंध थे । आप विश्व के किसी भी कोने में जाईए, वहां आपको लतादीदी के स्वर सुनाई देंगे और उनके चाहनेवाले भी मिलेंगे ।

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे : लतादीदी के चले जाने से एक स्वरयुग का अंत हुआ है और एक महान पर्व की समाप्ति हुई है । स्वरसम्राजी लतादीदी आज हमसे शरीर से चली गई हैं, यह अत्यंत दुखद है; परंतु वे अपने अमृतस्वरों से अजरामर हुई हैं और विश्व को व्यापी हुई हैं । उस परिप्रेक्ष्य में वे हम में ही रहेंगी । वे ‘अनादि आनंदघन के रूप में उस स्वरअंबर से हम पर स्वरों का अमृत बरसाती रहेंगी ।

श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति : चाहे वे वीर सावरकर हों अथवा बालासाहेब ठाकरे, भारतरत्न गानसम्राज्ञी लतादीदी मंगेशकर ने स्वयं को सेक्युलर न दिखाकर खुलेआम हिन्दुत्व के व्यासपीठ पर अपनी उपस्थिति दिखाई ! स्व. लतादीदी के चरणों में विनम्र अभिवादन ! यही वह लतादीदी की स्पष्टतापूर्ण भूमिका ! ‘जो लोग सावरकर के विरोध में बोल रहे हैं, उन्हें सावरकर की देशभक्ति और स्वाभिमान के विषय में जानकारी नहीं है’, ऐसा लतादीदी कहती थीं ।

पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्री की ओर से लतादीदी को श्रद्धांजली !

बीजिंग (चीन) – आज के समय में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ चीन की यात्रा पर गए पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्री फवाद हुसैन ने ट्वीट कर लता मंगेशकर के निधन पर शोक व्यक्त कर उन्हें श्रद्धांजली दी है । उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी इन भाषाओं में ट्वीट कर लिखा है, ‘लता मंगेशकर ने विश्व को संगीत का दीवाना बनाया । अनेक दशकोंतक श्रोताओं के मन पर राज करनेवाली इस संगीतसम्राज्ञी की आवाज लोगों के हृदयों पर सदैव राज करती रहेगी ।’

भारतीय क्रिकेट संघ की ओर से काली फिती बांधकर लतादीदी को श्रद्धांजली

कर्णावती (गुजरात) – भारतीय क्रिकेट संघ के खिलाडियों ने अपनी भुजाओं पर काली फीती बांधकर लता मंगेशकर को श्रद्धांजली दी है । कर्णावती में वेस्ट इंडिज के संघ के विरुद्ध के एक दिवसीय मैच के आरंभ में मौन रखकर भारतीय संघ की ओर से उन्हें श्रद्धांजली दी गई ।

सुर स्वर्गीय हो गए !

भारत में ईश्वर ने जिन अलौकिक व्यक्तित्वों को भेजा हैं, उनमें से ही एक है, दैवी स्वर लेकर आई भारतरत्न लता (दीदी) दीनानाथ मंगेशकर । विगत आठ दशकों से सर्व स्तरों एवं आयु के श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देने वाला यह स्वर-वृक्ष, संगीत की रचयिता महा सरस्वती देवी की जयंती के पश्चात गिर गया ! जैसे १४ वीं शताब्दी में महाराष्ट्र में कुलकर्णी परिवार के सभी चार ( पांच गलत लग रहा है) भाई-बहन अध्यात्म के क्षेत्र में सर्वोच्च अधिकारी बने तथा उनमें से सभी भाई-बहनों का ध्यान रखने वाले ज्ञानेश्वर सर्वश्रेष्ठ बने ; उसके समान ही, २० वीं शताब्दी में गोवा के मंगेशकर परिवार से पांच भाई-बहनों का ध्यान रख कर संगीत साधना करने वाली लता दीदी, स्वर के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ बन गईं ! ‘जिनके द्वारा गाए गीत अंतिम करने के पश्चात, गीत में संशोधन की कोई संभावना नहीं है’, ऐसी पूर्णता की अनुभूति प्रदान करने वाले एक अद्वितीय ध्रुवीय स्वर को ईश्वर ने मराठी मिट्टी में जन्म दिया तथा इसे अमर कर दिया । उनके दिव्य स्वर ने विश्व के साथ संवाद किया ! ईश्वर एवं देश की भक्ति सगुण रूप में होने के कारण ही निगुर्ण की अनुभूति की ओर ले जाने वाला यह स्वर्गीय स्वर, अब वास्तव में स्वर्गीय हो गया है !

दैवी स्वर युग का अंत !

यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि, भारत की ८ पीढियां इस गानसम्राज्ञी के स्वरों के आभूषण दर्शाते हुए गर्व से पली-बढी हैं ; ऐसा इसलिए है, क्योंकि, ‘रीमिक्स’ ( भारतीय एवं  पाश्चात्य संगीत का मिश्रण कर बनाया गया संगीत) सुनने वाली वर्तमान युवा पीढी भी कोई अपवाद नहीं है । १९६० से १९९० के दशक तक, आकाशवाणी ने जो घर-घर सुरों का संगीत निर्माण किया, उसमें लता दीदी की मधुर तथा समान रूप से ऊर्जावान एवं इसीलिए पूर्णता की भावना निर्माण करने वाला स्वर संस्कार, भारतीय तथा विशेष रूप से मराठी मन पर अंकित हुआ था । तदुपरांत टेलीविजन, टेप रिकॉर्डर, ऑडियो, वीडियो, सीडी जैसे माध्यम आए ; संगीतकार, गायक परिवर्तित हुए ; पश्चिमी वाद्य यंत्रों एवं संगीत का प्रभाव बढा ; परंतु, दशकों के पश्चात भी ‘लता मंगेशकर’ नाम के स्वर की महानता थोडी भी न्यून नहीं हुई है, यही इसकी विश्वव्यापी श्रेष्ठता को रेखांकित करती है !

एक स्वर जो विरह गीतों की आर्तता हृदय तक पहुंचा देता है !

संत ज्ञानेश्वर के विरह गीत (विराणी), अर्थात् भगवान के विरह से व्याकुल होकर उनके द्वारा की गई काव्य रचनाएं, लता दीदी ने उतनी ही समर्थता के साथ गाकर मराठी लोगों को एक कालातीत आध्यात्मिक अनुभव दिया है । ‘घनु वाजे घुनघुना’, यह रचना हो अथवा ‘रंगा येई वो ये’ हो, उनके स्वर की तीव्र आर्तता के कारण ही परमेश्वर विरह की यह पुकार हृदय में अत्यंत गहराई तक जाती है तथा श्रोता को उस निर्गुण भगवान का शोध करने के लिए प्रेरित करती है । पं. हृदयनाथ मंगेशकर द्वारा संगीत बद्ध किए गए ‘आजी सोनियाचा दिनु’ अथवा ‘अरे अरे ज्ञाना झालासी पावन’ इन संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर की साधनावस्था के विभिन्न अनुभवों की भावावस्था उजागर करने की क्षमता केवल और केवल लता दीदी के धैर्यवान, आर्त एवं आत्मनिरीक्षण करने वाले स्वर में ही है । प्रभु के वियोग से लेकर, प्रभु के मिलन की अद्वैत अवस्था तक, अर्थात ‘मोगरा फुले’ तक सभी आध्यात्मिक स्थितियों का वर्णन करने वाली लता दीदी के स्वर का चरमोत्कर्ष है, संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर का पसायदान (प्रसाद के रूप में ईश्वर से मांगा हुआ दान) ! वे मराठी संतों के अनमोल भाव-विश्व को अपने स्वरों के माध्यम से संपूर्ण संसार में पहुंचाने का सबसे अच्छा माध्यम बनी । लता दीदी के स्वरों ने इन संतों की अनुभूतियों को अमर कर दिया । लता दीदी की आवाज सुनते समय अपनी आंखें बंद कर लेने पर अनेक बार प्रकृति की महान वस्तुएं, जैसे आकाश, समुद्र, पर्वत आपकी आंखों के सामने आ जाते हैं । ‘ने मजसी ने…’ को सुनते समय समुद्र एवं उसकी लहरों का चित्र आंखों के सामने उतना ही दिखाई देता है, जितना स्वतंत्रता वीर (सावरकर) के मन की आर्त तडप पूरी क्षमता के साथ प्रतीत होती है । इन सबके आगे की निर्गुण की अनुभूति की ओर ले जाने की क्षमता लता दीदी की आवाज रखती है । ‘विश्वाचे आर्त माझ्या मनी प्रकाशले’ सुनते समय श्रोता अंतर्मुखी हो जाते हैं एवं किसी अवकाश में प्रवेश करने की उन्हें अनुभूति होती है । ‘वेडात मराठे वीर दौडले सात’ हो अथवा ‘ए मेरे वतन के लोगों’, जैसे गीत लता दीदी की क्षमता के साथ कदाचित ही कोई गा सकता है ; क्योंकि, उनके मन में छत्रपति शिवाजी एवं सेना के लिए उतना ही सम्मान एवं क्षात्रवृत्ति थी । इसलिए, उसकी अभिव्यक्ति ने सभी को प्रभावित किया है !

भाव एवं भक्ति के स्वरों ने जीवन के अनुभव को समृद्ध किया !

लता दीदी की आवाज में भक्ति एवं भावात्मक गीतों ने मराठी लोगों की ८ पीढियों का भाव-विश्व समृद्ध किया है एवं आगे भी करते रहेंगे । विगत अनेक वर्षों से लता दीदी की आवाज में ‘गजानना तू गणराया’ के भक्ति स्वर सुने बिना मराठी व्यक्ति का गणेशोत्सव पूर्ण नहीं हुआ है । २२ भाषाओं में गीत गाने वाली लता दीदी को एक अर्थ से ‘पृथ्वी की आवाज’ होने का सम्मान मिला है । लता दीदी की आवाज उन ध्वनियों अथवा बातों में से एक है, जिसे ‘नासा’ ने पृथ्वी के परिचय के तौर पर अन्य जीवन-शोध प्रणालियों के साथ भेजा है ! जिस प्रकार अभिनेता, लेखक, चित्रकार, जीवन के अनुभवों से जितना अधिक समृद्ध होता है, उतना वह अधिक संवेदनशील होता है ; उसी प्रकार, लता दीदी की आवाज भी सभी प्रकार के संबंधों के भाव एवं भावनाओं का संसार समृद्ध करती है । इतना ही नहीं, उनमें भारतीय संस्कृति के त्याग, पवित्रता, क्षात्रवृत्ती आदि विशेषताएं व्यक्त करने वाले पहलू भी हैं । वास्तविक रूप में, इसके लिए उन्होंने जितने परिश्रम लिए थे, वे भी उतने ही सहायक थे । अब गीत के छंद एवं अन्य संगीत को मिलाकर कुछ मिनट का गीत पूर्ण किया जाता है । लता दीदी के आरंभिक दिनों में ऑर्केस्ट्रा के साथ पूर्वाभ्यास करके संपूर्ण गाने को रिकॉर्ड करने की प्रथा थी । संगीतकार की अपेक्षा के अनुसार गीत होने तक, अनेक गीत प्रातःकाल तक अनेक घंटे गाए । ‘जीवनात ही घडी ‘ अथवा ‘लेक लाडकी या घरची’ जैसे हलके-फुलके मधुर गीत हो, ‘श्रावणात घन निळा’ अथवा ‘मेंदीच्या पानावर’ जैसे कोमल संवेदना व्यक्त करने वाले गानों से लेकर ‘मी रात टाकली’ अथवा ‘सख्या रे घायाळ मी हरणी’ जैसे काम भावना व्यक्त करने वाले हुए गीत हो, उनके द्वारा गाए प्रत्येक गीत में उनका स्वर यथोचित पाया गया । ‘नववधू प्रिया मी बावरते’ जैसे प्रेम गीतों से लेकर ‘चिंब पावसानं रान झालं आबादानी’ जैसे प्रणय गीतों तक लता दीदी की आवाज ने श्रोताओं के हृदय को छू लिया है । शांता शेळके, ना धो महानोर, सुरेश भट जैसे गीतकार तथा पं. हृदयनाथ मंगेशकर, सुधीर फडके, श्रीनिवास खळे, आदि संगीतकारों की प्रतिभा को न्याय देते हुए, वो मराठी गान विश्व को एक नई ऊंचाई पर ले गई है । यह निश्चित रूप से उनके मन की पवित्रता, सरलता एवं चरित्र की समृद्धि के कारण था । उन्होंने बाल गीतों से लेकर कोठे के गानों तक, सैकडों स्वर रचनाओं के माध्यम से, सर्व प्रकार के संबंधों को जिवंत किया है ।

हिन्दी चलचित्र सृष्टि के ‘हृदय’ की आवाज !

वे संगीतकारों को गुरु मानती थी ; चाहे वे मराठी हो अथवा हिन्दी चलचित्र सृष्टि के सचिन देव बर्मन, नौशाद, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल हो । उस समय की प्रसिद्ध नूरजहां, शमशाद बेगम, सुरैया, अमीरबाई इन सबको पीछे छोडते हुए लता दीदी आगे चली गई । ‘आएगा आने वाला’ से जो सफल दौड आरंभ हुई, वह ‘चुडिया खनकेगी’ तक शुरू रही । मधुबाला, वहीदा रहमान, वैजयंती माला, आशा पारेख से लेकर मध्य-काल की रेखा, श्रीदेवी तथा हाल ही की माधुरी दीक्षित एवं काजोल तक, सभी अभिनेत्रियों पर उनकी आवाज उपयुक्त पाई गई, यह उनकी बडी विशेषता थी । ‘रैना बीत जाए’, ‘इस मोड से जाते हैं’, ‘देखा एक ख्वाब’ जैसे सैकडों गानों ने कई पीढियों के भाव-विश्व पर अधिराज्य किया । अंत में, उन्होंने अपनी संगीत उपासना के अनुरूप ‘आता विसाव्याचे क्षण’ गीत गाया । एक संगीत संस्थान अब अनंत में विलीन हो गया है, संगीत का स्वर्ण युग समाप्त हो गया है । इसलिए, अब स्वर-पुरुष कहेंगे, ‘तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं, शिकवा नहीं, तेरे बिना जिंदगी भी लेकिन जिंदगी तो नहीं ।’ जो स्वरों का अनुभव उन्होंने दिया है, उसके लिए यह संसार उनके प्रति कृतज्ञ रहेगा !

मराठी संतों का भाव-विश्व अपने स्वरों के माध्यम से संसार तक पहुंचाने का कार्य लता दीदी ने किया है !

कई दशक बीत चुके हैं, उसके उपरांत भी, लता दीदी के स्वरों की महिमा अंश मात्र भी न्यून नहीं हुई है !