१. सैनिकों को गलत गुप्त जानकारी मिलने से उनके द्वारा १३ निर्दाेष नागरिकों की मृत्यु होना
४ दिसंबर २०२१ को नागालैंड में भारतीय सेना की गोलाबारी में १३ नागरिकों की मृत्यु होने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई । नागालैंड उत्तर-पूर्व का एक महत्त्वपूर्ण राज्य है । इस राज्य में विद्रोहियों के कई समूह कार्यरत हैं; परंतु वर्तमान में उन्होंने भारतीय सेना के साथ शस्त्रसंधि की हुई है । उसके कारण उनमें आक्रमण नहीं होते; परंतु ऐसी संभावना सदैव ही बनी रहती है । प्रतिबंधित ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-के’ (एन.एस.सी.एन.-के) यह समूह इस शस्त्रसंधि में अंतर्भूत नहीं हुआ है । इस समूह के प्रशिक्षण शिविर असम अथवा म्यानमार के जंगलों में होते हैं । ऐसा बोला जा रहा है कि कुछ दिन पूर्व भारतीय सेना के एक कर्नल, उनकी पत्नी और उनका ६ वर्ष का लडके की ‘एन.एस.सी.एन.-के’ समूह द्वारा किए गए, आक्रमण में मृत्यु हुई थी, ऐसा बोला जा रहा है ।
नागालैंड की घटना में क्या हुआ ? हमारे ‘२१ पैरा विशेष दल’ को ‘एन.एस.सी.एन.-के’ इस समूह के विद्रोही चारपहिया गाडी से आ रहे हैं, यह गुप्त जानकारी मिली थी । उसके कारण ये सैनिक उस सडक पर घात लगाकर बैठे थे । तब सडक से एक गाडी आई । सैनिकों ने उन्हें रुकने के लिए कहा; परंतु वे रुके नहीं । उससे सैनिकों की शंका बढ गई और उन्होंने उस गाडी पर गोलाबारी की । उसमें ६ नागरिकों की मृत्यु हुई । कुछ समय उपरांत यह ज्ञात हुआ कि वे लोग ‘एन.एस.सी.एन.- के’ के विद्रोही नहीं थे, अपितु वे उस क्षेत्र में स्थित कोयले की खान में काम करनेवाले श्रमिक थे । अर्थात ही गलत जानकारी मिलने से यह घटना हुई । सैनिकों ने ऐसा जानबूझकर नहीं किया था । वह गाडी रुक जाती, तो इस प्रकार की घटना नहीं होती ।
२. भीड द्वारा असम राइफल्स के सैनिकों पर आक्रमण करने से उन्हें गोलाबारी करने पर विवश होना पडा और उसमें और ५ लोगों का मारा जाना
उस क्षेत्र के ५-६ लोग घर नहीं लौटे थे; इसलिए लोगों ने उन्हें ढूंढने का प्रयास किया । जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि वे सभी मारे जा चुके हैं और उनके शवों को सैन्य वाहन में रखा गया है, तब वे क्षुब्ध हुए और उन्होंने ‘२१ पैरा विशेष दल’ के समूह पर भयावह आक्रमण किया । उसके कारण सैनिकों को स्वरक्षा हेतु पुनः गोलाबारी करनी पडी । उसमें कुछ लोगों की मृत्यु हुई । उसके उपरांत मोन जनपद के कई स्थानों पर हिंसा आरंभ हुई और आगजनी की गई । यह चूक ‘२१ पैरा विशेष दल’ के सैनिकों ने की थी; परंतु हिंसक भीड ने उस क्षेत्र में स्थित असम राइफल्स के शिविर पर आक्रमण किया । उसके उपरांत उन्होंने हवा में गोलाबारी की; परंतु उससे कुछ लाभ नहीं हुआ । उससे भीड और भी हिंसक बन गई । उन्हें सच्चाई बताने का प्रयास किया गया; परंतु वे सुनने की स्थिति में नहीं थे । इस हिंसा के कारण उन सैनिकों के प्राणों पर संकट था; उसके कारण पुनः गोलाबारी की गई । उसमें और ५ आंदोलनकारी मारे गए ।
३. नागरिकों पर गोलाबारी की घटना के कारण वहां के ‘ए.एफ.एस.पी.ए. एक्ट’ के (सशस्त्र सेना हेतु विशेषाधिकार कानून की) कार्यवाही पर परिणाम होने की संभावना नहीं !
इस घटना से इस क्षेत्र में अभियान चलाना सुरक्षा बलों के लिए कितना चुनौतीपूर्ण होता है, यह देखने में आता है । म्यांमार और असम की सीमाओं की रक्षा करने का दायित्व असम राइफल्स पर होता है । कुछ विशेष प्रसंगों में पैरा कमांडोज रखे गए हैं । मणिपुर पुलिस और अर्धसैनिक बल भी है । उन्हें ‘मणिपुर राइफल्स’ कहा जाता है । आजकल वहां लडाई अथवा हिंसक आक्रमण नहीं होते; परंतु ऐसी संभावना अस्वीकार नहीं की जा सकती । इसलिए सुरक्षा बलों को सदैव तैयारी में ही रहना पडता है । आपको स्मरण होता होगा कि १-२ वर्ष पूर्व डोगरा रेजिमेंट के सैनिकों पर आक्रमण हुआ था । उस क्षेत्र में घने जंगल हैं । वहां जाने के लिए एकाद सडक ही होती है । उसके कारण कभी-कभी इस प्रकार की कार्यवाही हो सकती है । सामान्यतः सैना के अधिकारी और सैनिक ऐसा न हो; इसके लिए अत्यधिक सतर्क रहते हैं; परंतु एकाध बार अवधारणा के कारण ऐसी घटना हो सकती है ।
जब कभी ऐसी घटना होती है, तब वहां के विद्रोही अथवा आतंकी उसका लाभ उठाते हैं । नागालैंड के किसी क्षेत्र में श्रमिक लौट रहे हों, तो उन वाहनों में विद्रोही भी छिपे हो सकते हैं । ऐसे में सुरक्षा बलों से अज्ञानवश गोलाबारी हुई, तो उसमें सामान्य नागरिक भी मारे जाएंगे । उसके उपरांत ‘देखिए, सैनिकों ने सामान्य नागरिकों पर गोलाबारी की’, यह आक्रोश करने का अवसर मिलने की संभावना होती है । उससे इस क्षेत्र में लागू ‘ए.एफ.एस.पी.ए. एक्ट’ (आर्म फोर्सेस स्पेशल पॉवर एक्ट – सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून) को वापस लेने की मांग उठ सकती है; परंतु अभीतक तो किसी ने भी ऐसी मांग नहीं की है । इस कानून के अनुसार कोई व्यक्ति संदिग्ध लगा, तो उसे पकडने का अधिकार सेना को दिया गया है । जिस स्थान पर सुरक्षा के लिए संकट होता है, वही यह अधिकार दिया जाता है । यदि ‘ए.एफ.एस.पी.ए. एक्ट’ को वापस लेना हो, तो सेना वहां काम नहीं करेगी; इसलिए वह काम नागालैंड की पुलिस अथवा नागालैंड राइफल्स को करना पडेगा । आज की स्थिति में इस प्रकार का काम करने में सेना सक्षम है । आज नागालैंड में विद्रोह अथवा उस प्रकार की हिंसा भले ही न होती हो; परंतु वहां तस्करी की बडी चुनौती है । वहां बडी मात्रा में अफीम, गांजा और चरस इन मादक पदार्थाें की तस्करी होती है । कभी-कभी शस्त्र भी अंदर लाए जा सकते हैं । इसलिए वहां के लोग अत्यंत त्रस्त हैं ।
४. नागालैंड के नागरिकों की स्थिति, वहां के विद्रोहियों की मांग और उनकी आपूर्ति करने पर स्थित मर्यादाएं !
इस ‘ए.एफ.एस.पी.ए. एक्ट’ को वापस लेने से क्या उन लोगों का जीवन सरल होगा ? तनिक भी नहीं ! आज वहां शांति और प्रगति की आवश्यकता है । नागालैंड के युवक बडी संख्या में भारतीय सेना में भर्ती हुए हैं । नागालैंड की जनसंख्या लगभग २०-२५ लाख है; परंतु उसके अनुपात में सेना में उनका सहभाग लक्षणीय है । वहां के कुछ युवक देश के कुछ अन्य क्षेत्रों में भी काम करते हैं । उसके कारण ‘ए.एफ.एस.पी.ए. एक्ट’ वहां महत्त्वपूर्ण सूत्र नहीं है और उसकी ओर अधिक ध्यान देने की भी आवश्यकता नहीं है ।
भारत सरकार और नागा विद्रोहियों में शस्त्रसंधि हुई है । उनमें कई वर्षाें से चर्चा चल रही हैं । अभी केवल २ मांगों पर यह चर्चा रुकी हुई है । उनमें से एक है कि वहां के विविध समूह नागालैंड के लिए अलग ध्वज की मांग कर रहे हैं; परंतु यह मांग पूरी नहीं हो सकती है । उनकी दूसरी मांग यह है कि नागालैंड के अतिरिक्त अन्य कई क्षेत्रों में (विशेषरूप से मणिपुर और मिजोरम में) नागा लोग रहते हैं, तो इसलिए इन क्षेत्रों को नागालैंड के साथ जोडा जाए; परंतु ऐसा करने से मणिपुर और मिजोरम का कुछ क्षेत्र उनके पास आ सकता है । कोई भी सरकार इसे स्वीकार नहीं कर सकती । इन ३ राज्यों के अतिरिक्त भी विविध जनजातियों के समुदाय और लोग अन्य राज्यों में भी फैले हुए हैं । तो इस राज्य के लिए अनुमति दी गई, तो अन्य राज्य भी ऐसी ही मांग करने लगेंगे ।
५. उत्तर-पूर्व भारत के लोगों की प्रगति के लिए वहां शांति स्थापित होना आवश्यक !
तो क्या उत्तर-पूर्व क्षेत्र में असंतोष सुलग रहा है ? तनिक भी नहीं । उत्तर-पूर्व में ७ राज्य हैं, जिन्हें ‘सेवन सिस्टर्स’ कहा जाता है । सिक्किम, असम और अरुणाचल प्रदेश संपूर्ण रूप से शांत हैं । सेना द्वारा गोलाबारी की घटना न होती, तो नागालैंड भी संपूर्ण रूप से शांत था । मिजोरम अथवा मेघालय में भी कुछ नहीं होता । वहां थोडी-बहुत हिंसा होती है । इन राज्यों के युवकों को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए, तो वहां के लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी । आज के समय में उत्तर-पूर्व भारत में सडकें बनाने का काम चल रहा है । उससे वहां आर्थिक क्रांति आ रही है । ब्रह्मपुत्र नदी पर अच्छे पुल बनने के कारण वहां की आर्थिक प्रगति को गति मिली है । तो क्या इन राज्यों में आतंकवाद पुनः सिर उठा रहा है ? तो वैसा नहीं है । वहां का विद्रोह लगभग समाप्त हुआ है । अब कई विद्रोही विद्रोह करने के स्थान पर तस्करी कर रहे हैं । उसके कारण उस क्षेत्र में शांति स्थापित करना अधिक महत्त्वपूर्ण है । उससे उनकी प्रगति हो सकेगी । केवल ऐसे एक प्रसंग के कारण वहां कुछ तो अलग हुआ है, ऐसा कुछ भी नहीं है; इसके प्रति मैं आश्वस्त हूं । आनेवाले समय में इस घटना की जांच होगी । इसमें जो चूकें हुई होंगीं, उनका समाधान निश्चित रूप से निकाला जाएगा । इसके आगे ऐसी चूक पुनः नहीं होगी, इसकी ओर ध्यान दिया जाएगा; परंतु वहां असंतोष और हिंसा बढी है अथवा ‘ए.एफ.एस.पी.ए. एक्ट’ को वापस लेने का समय आ गया है, ऐसा निश्चित रूप से नहीं है ।’
– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे