सनातन का ‘घर-घर रोपण’ अभियान – लेख क्र. ४
१. सब्जियों के रोपण के लिए आवश्यक घटक
‘वनस्पतियां स्वयं का अन्न स्वयं ही बनाते हैं । इस प्रक्रिया को ‘प्रकाश संश्लेषण (फोटो सिन्थेसिस)’ कहते हैं । इस प्रक्रिया के लिए हवा (कार्बन डाइऑक्साईड), पानी और सूर्यप्रकाश ये बातें आवश्यक होती हैं । इन ३ घटकों के अतिरिक्त आवश्यक घटकों को पेड मिट्टी से खींच लेते हैं । इसलिए पेडों को उर्वरक देने पडते हैं । जिस प्रकार कीडे प्राणियों को कष्ट पहुंचाते हैं अथवा काटते हैं, उस प्रकार वनस्पतियों को भी कीडों से कष्ट होता है । इन हानिकारक कीडों से पेडों की रक्षा होने हेतु पेडों पर कीटनाशक छिडके जाते हैं । जिस प्रकार प्राणियों को जीवाणु (बैक्टेरिया), विषाणु (वाइरस) और फफूंद (फंगस) के कारण रोग होते हैं, उस प्रकार वनस्पतियों को भी रोग होते हैं । उनकी रोकथाम के लिए जीवाणुनाशक, विषाणुनाशक और फफूंदनाशकों का उपयोग करना पडता है । संक्षेप में कहा जाए, तो सब्जियों के रोपण के लिए हवा और सूर्यप्रकाश प्रकृति से उपलब्ध होते हैं, तो मिट्टी, उर्वरक, कीटनाशक, फफूंदनाशक इत्यादि का प्रबंध हमें करना पडता है । ‘सुभाष पाळेकर प्राकृतिक कृषि’ नाम के तंत्र में उपयोग किया जानेवाला जीवामृत और बीजामृत ये पदार्थ संपूर्णरूप से प्राकृतिक और दुष्परिणाम रहित हैं और वे उर्वरकों और फफूंदनाशकों का काम करते हैं । इस पद्धति में बनाय जानेवाला ‘नीमास्त्र’, ‘दशपर्णी अर्क’ जैसे पदार्थ कीटनाशकों का काम करते हैं ।
२. रोपण के लिए बिकाऊ सामग्री की अपेक्षा घर में उपलब्ध सामग्री का उपयोग करें !
२ अ. बाजार में मिलनेवाले गमलों का विकल्प
गमलों के स्थान पर बिना उपयोगवाले प्लास्टिक के डिब्बे, थैलियां और फैले हुए बरतनों का भी उपयोग किया जा सकता है । उनका आकार न्यूनतम २ से ४ इंच मिट्टी अथवा पत्तों के कचरे का स्तर समाएगा, उतना होना चाहिए । अतिरिक्त पानी की निकासी होने हेतु उनके तल में २ से ४ छेद बनाएं । उनमें उपलब्ध मिट्टी, सूखे हुए पत्ते अथवा ‘कंपोस्ट (कचरे से बनाया गया उर्वरक)’ भरकर उस पर पानी, जीवामृत अथवा जूठे बरतन धोए हुए पानी का छिडकाव कर मिट्टी को गीला बनाएं ।
२ आ. बाजार में मिलनेवाले बीज के लिए विकल्प
कुछ पत्तीसब्जियों के बीज घर में ही उपलब्ध होते हैं , उदा. धनिया, मेथी, प्रसवसोया, सरसों (सरसों के पत्तों की सब्जी भी बनाई जा सकती है, जिसे ‘सरसों का साग’ कहते हैं ।) इसके अतिरिक्त छोटे प्याज अथवा लहसून की कलियों को भी मिट्टी में गाड देने से उससे पौधे तैयार होते हैं । सूखी मिर्च के बीज, टमाटर के बीज, चौलिया, पुदीना के तने सहित जडों से भी रोपण किया जा सकता है । इन बीजों को गमलों में अथवा क्यारियों में गहराई में न बोकर बीज की मोटाई जितनी गहराई तक ही बोएं । ये सभी सब्जियां ४ से ८ दिनों में उगती हैं ।
३. पेडों को आवश्यक धूप और पानी मिलने दीजिए !
हम जो रोपण करते हैं, उसे सुबह की २ से ४ घंटे धूप मिले, इसकी ओर ध्यान दें । पेडों का नियमित निरीक्षण करते रहें । मिट्टी यदि सूख गई हो, तो हल्के हाथों से उस पर पानी का छिडकाव करें । पानी का छिडकाव करते समय बोया हुआ बीज खुला न रह जाए, इसकी ओर ध्यान दें । आरंभ में जब पौधे नाजुक होते हैं, तब पानी की एक बडी बूंद से भी वे सपाट हो सकते हैं । उसके लिए प्लास्टिक की बोतल के ढक्कन में छोटा सा छेद बनाकर अभिषेक की धारा की भांति हल्के से पानी दें । अधिक पानी देने से फफूंदजन्य रोग बढ सकते हैं; इसलिए पेडों को उचित मात्रा में ही पानी दें ।’
– एक कृषि विशेषज्ञ, पुणे (२.१२.२०२१)
सब्जियों के रोपण की समय-सारणी
टिप्पणी – कोंकण क्षेत्र में वर्षा ऋतु में मुसलाधार वर्षा से पौधों की रक्षा करनी पडती है । (साभार : सामाजिक जालस्थल)