१. ‘भारत की संसद श्रीराम, श्रीकृष्ण, साथ ही रामायण, महाभारत को भारतीय संस्कृति के मुख्य स्रोत और राष्ट्रीय धरोहर घोषित करे’, ऐसा न्यायालय द्वारा सुझाया जाना
६ अक्टूबर २०२१ को प्रयागराज उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्ति शेखर यादव हाथरस के आकाश जाटव की प्रतिभू (जमानत) आवेदन पर निर्णय दे रहे थे । आकाश जाटव ने सामाजिक माध्यमों पर श्रीराम और श्रीकृष्ण के विषय में अपमानजनक अश्लील टिप्पणियां की थीं । इसलिए उसके विरोध में फौजदारी अपराध प्रविष्ट किया गया । इस प्रकरण में कनिष्ठ न्यायालय ने तत्काल प्रतिभू अस्वीकृत की । इसलिए उसने प्रतिभू प्राप्त करने के लिए उच्च न्यायालय में आवेदन किया ।
इस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति शेखर यादव ने कहा, ‘‘भारतीय संविधान ने प्रत्येक को भगवान पर श्रद्धा रखनी है या नहीं, इसकी स्वतंत्रता दी है; परंतु जिनकी व्यक्ति, भगवान, धर्म, अन्यों के श्रद्धाकेंद्र और आदर्शाें पर श्रद्धा नहीं, वे अन्यों की इन कृतियों पर टिप्पणी नहीं कर सकते । संविधान इसकी अनुमति नहीं देता । ऐसी टिप्पणी करने से श्रद्धावान लोगों की श्रद्धाओं का अपमान हुआ, तो सामाजिक शांति के लिए संकट निर्माण होकर हिंसाचार फैल सकता है, जिससे वातावरण बिगड सकता है ।’’
इसी निर्णय में न्यायमूर्ति ने आगे कहा कि ‘वास्तव में भारत के विधिमंडल को श्रीराम, श्रीकृष्ण, साथ ही रामायण, महाभारत जैसे पवित्र ग्रंथों को भारतीय संस्कृति का मुख्य स्रोत और राष्ट्रीय धरोहर अथवा राष्ट्रीय चिन्ह कह सकते हैं’, ऐसा घोषित करना चाहिए । न्यायाधीश यादव के ऐसे कहते ही हिन्दूद्रोहियों के पेट में दर्द होने लगा; परंतु ‘आरोपी १० माह से कारागृह में है, फौजदारी अभियोग कब आरंभ होगा ? और कब समाप्त होगा ? यह निश्चित नहीं’, ऐसा कारण बताकर न्यायमूर्ति ने आकाश जाटव की प्रतिभू (जमानत) को स्वीकार किया ।
२. हिन्दू संस्कृति, देवता और श्रद्धाकेंद्र का अपमान रोकने के लिए ‘राष्ट्रीय स्तर पर संसद में कानून बनाएं’, ऐसा न्यायमूर्ति द्वारा सुझाव दिया जाना
न्यायमूर्ति शेखर यादव ने आगे कहा कि ‘‘श्रीराम, श्रीकृष्ण, साथ ही रामायण, श्रीमद्भागवत कथा लिखनेवाले महर्षि व्यास और रामायण लिखनेवाले महर्षि वाल्मिकी भारतीय सांस्कृतिक वर्ष का अविभाज्य अंग हैं । इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर उनका सम्मान करने के लिए संसद द्वारा कानून बनाना चाहिए । आकाश जाटव ने सामाजिक माध्यमों पर जो आपत्तिजनक विधान किया, उससे बहुसंख्यक नागरिकों की श्रद्धा आहत हुई है । न्यायालय द्वारा ढीली-ढाली भूमिका लेने पर ऐसे व्यक्तियों के साहस में वृद्धि होगी ।’’
न्यायालय के निर्णय से एक बात ध्यान में आती है कि अभिव्यक्ति स्वतंत्रता की तुलना में धार्मिक स्वतंत्रता अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है । दुर्भाग्य से भारत में ईशनिंदा अथवा कठोर कानून न होने से अपराधियों को कठोर दंड नहीं दिया जाता । इस कारण बडी संख्या में हिन्दू देवताओं का अपमान हो, इस पद्धति से विज्ञापन दिए जाते हैं, उदा. महाशिवरात्रि के समय शिव को ‘गॉगल’ पहने हुआ दिखाना, गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी के काल में श्री गणेश के हाथ में विविध उत्पाद दिखाए जाना इत्यादि । अन्य त्योहारों के समय भी हिन्दू देवताओं का अपमान और टीका-टिप्पणी हो, इस पद्धति से सामाजिक माध्यम, समाचारवाहिनी एवं समाचारपत्रों में विज्ञापन प्रकाशित होते हैं । अनेक बार विरोध करने पर भी महाराष्ट्र पुलिस गणेशोत्सव के काल में श्री गणेश के माध्यम से जनता को यातायात के नियम सिखाते हैं । क्या अन्य पंथियों के संदर्भ में वे ऐसा कर सकते हैं ?
जब तक भारत में ईशनिंदा का कानून नहीं बनता, आरोपियों पर कठोर धाराएं नहीं लगाई जातींऔर उन्हें कठोर दंड नहीं दिया जाता, तब तक यह नहीं रुकेगा । अनेक देशों में ईशनिंदा के विरोध में अत्यधिक कठोर दंड है; परंतु भारत में उसके लिए अत्यधिक अल्प दंड है । इस कारण धर्मद्रोही लोग कानून से न डरते हुए हिन्दू देवताओं के विरोध में सामाजिक माध्यमों पर टिप्पणी करते हैं । इसके लिए केंद्र सरकार और संसद को न्यायालय के सुझावानुसार उपाययोजना करना आवश्यक है ।
३. ‘केंद्र सरकार गोमाता को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के संदर्भ में कानून बनाए’, ऐसा न्यायमूर्ति द्वारा सुझाना
हाल ही में एक कसाई की प्रतिभू (जमानत) अस्वीकार करते हुए न्यायाधीश यादव ने कहा था कि कसाई ने गोहत्या की है । इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार के कानून अनुसार उसे प्रतिभू (जमानत) नहीं दे सकते ।
इस समय गोहत्या की वास्तविकता देखकर न्यायाधीश यादव ने व्यथित होकर कहा, ‘‘केंद्र सरकार और विधिमंडल गोमाता को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के संदर्भ में कानून बनाए ।’’ गोमाता का शास्त्रीय महत्त्व बताते हुए न्यायमूर्ति यादव ने कहा, ‘‘अनेक वैज्ञानिकों ने प्रमाणसहित सिद्ध किया है कि केवल गोमाता ही एकमात्र ऐसी प्राणी है, जो कार्बन वायु ग्रहण करती है और प्राणवायु छोडती है । गोमाता के साथ रहने पर हमारे अनेक दुर्धर रोग नष्ट होते हैं ।’’
४. गाय मानवजाति के लिए अत्यधिक उपयुक्त होने से न्यायालय के बताए अनुसार केंद्र सरकार उसे ‘राष्ट्रीय पशु’ घोषित करे !
पहले चिकित्सा विज्ञान इतना प्रगत नहीं था और रोग संक्रमण बहुत बडी मात्रा में था । उस समय छोटी माता, चिकनपॉक्स, मलेरिया, प्लेग जैसे संक्रामक रोग होते थे । इन रोगों की महामारी में लाखों लोगों की हानि होती थी । गांव के गांव नष्ट होते थे । १०० वर्ष पूर्व प्लेग के भय से लोग घर छोडकर खेतों में रहने लगे । चूहे के मरने पर उसके पिस्सुओं से वह रोग अधिक फैलता था । प्लेग के समक्ष पूरी चिकित्सीय व्यवस्था हतबल हो गई थी ।
एक कथा है । चरवाहे पशुओं को चराने के लिए ले जाते थे । किसान और चरवाहों के बच्चों को लगता था कि ‘गाय के संग रहने से हमें देवी का रोग नहीं होगा ।’ वैज्ञानिकों ने इस पर विचार किया कि देवी का रोग किस कारण फैलता है ? क्या यह सत्य है कि गोमाता संग हो, तो यह रोग नहीं होगा ? विशेषज्ञों के शोध से सिद्ध हुआ कि ‘गाय के संग रहने से देवी अथवा संबंधित रोग नहीं हो सकते ।’ उस समय देवी रोग का प्रकोप आरंभ था । लाखों लोगों को वह रोग हुआ था । ‘देवी’ रोग के कारण रोगी व्यक्ति की दृष्टि नष्ट होने की संभावना होती थी । इसलिए लोग इस रोग से बहुत घबराते थे । यह सब प्रमाण सहित हजारों वर्षाें से सिद्ध हुआ है । इसलिए यदि न्यायाधीश यादव केंद्र सरकार से कहें, ‘‘गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करें’’, तो इन आधुनिकतावादियों के पेट में दर्द नहीं होना चाहिए ।
श्रीकृष्णार्पणमस्तु !’
– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, संस्थापक सदस्य, हिन्दू विधिज्ञ परिषद और अधिवक्ता, मुंबई उच्च न्यायालय. (१४.१०.२०२१)
सर्वोच्च और उच्च न्यायालय के विविध न्यायमूर्तियों द्वारा हिन्दू धर्म के विषय में व्यक्त किए गए अभिमत !१. रामजन्मभूमि प्रकरण में निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने स्पष्ट शब्दों में बताया, ‘श्रीराम और राम जन्मभूमि प्रत्येक की आस्था एवं संस्कृति है । प्रत्येक के हृदय में श्रीराम बसे हैं । इसलिए भारतीयों के लिए राम जन्मभूमि अत्यंत संवेदनशील निर्णय है ।’ २. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति माननीय अनिलकुमार आर. दवे ने एक निर्णय में कहा, ‘‘विद्यार्थी जब शिशुवर्ग और प्राथमिक वर्ग में पढ रहे हों, तभी उन्हें भगवद्गीता, रामायण एवं महाभारत सिखाना चाहिए; क्योंकि ये संस्कार ही हमारी संस्कृति और हमारी धरोहर है । विद्यार्थी अवस्था में बच्चों को गीता, रामायण और महाभारत सिखाई, तो शाला के विद्यार्थी सत्शील एवं सुसंस्कारी होंगे ।’’ न्यायाधीश दवे के ऐसा कहते ही धर्मद्रोहियों के पेट में दर्द होने लगा । उन्होंने न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे पर टिप्पणी की । न्यायाधीश काटजू ने कहा, ‘‘भारत धर्मनिरपेक्ष देश है और न्यायमूर्ति द्वारा केंद्र सरकार को इस प्रकार के सुझाव देना, यह अनुचित परंपरा है ।’’ ३. एक बार एक सार्वजनिक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा उपस्थित थे । वहां न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने सभी के सामने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश प्रगति कर रहा है तथा सुरक्षित है ।’’ इस कथन के उपरांत आधुनिकतावादियों ने न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा पर विषैली टिप्पणियां की । ४. वर्ष २०१८ में मेघालय उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुदीप रंजन सेन ने एक प्रकरण की सुनवाई के समय कहा, ‘‘भारत के विभाजन के उपरांत दो देश निर्माण हुए हैं । इसलिए वर्ष १९४७ में स्वतंत्रता के उपरांत भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करना चाहिए था ।’’ न्यायाधीश सेन के कथन से भी अनेक धर्मद्रोहियों और आधुनिकतावादियों को कष्ट हुआ । न्यायाधीश सेन के निवृत्त होने पर मेघालय के द्विसदस्यीय न्यायालय ने अर्थात न्यायाधीश मोहम्मद याकूब मीर और न्यायाधीश एच.एस. ने वह निर्णय निरस्त किया । – (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी (१४.१०.२०२१) |