प्रदूषण पर उपाय !

     देहली भारत की राजधानी है तथा विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर के रूप में कुप्रसिद्ध है । शासनकर्ता, प्रतिष्ठान और स्थानीय जनता को इसकी चिंता है, ऐसा दिखाई नहीं देता । क्योंकि चिंता होती, तो सभी संगठित होकर प्रदूषण रोकने के लिए, न्यून (कम) करने के लिए प्रयास करते और उसका परिणाम भी दिखता; परंतु वैसे विशेष प्रयास होते हुए दिखाई नहीं देते । देहली में कुछ स्थानों पर प्रदूषित वायु खींचनेवाले यंत्र लगाए गए हैं । उनकी संख्या अत्यधिक अल्प है । प्रदूषण अल्प करने के लिए ऐसे हजारों यंत्र देहली में लगाने होंगे । ये यंत्र विगत वर्ष भी थे । तब भी सरकार ने विगत पूरे वर्ष अधिकाधिक यंत्र लगाने के लिए प्रयास क्यों नहीं किए ? केवल देहली ही नहीं, अपितु देश के सभी प्रमुख महानगर और कुछ अन्य नगरों में भी बडी मात्रा में प्रदूषण है । प्रदूषण का मुख्य कारण है उद्योग और वाहन । भारतीय चिकित्सा शोध परिषद द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि कोयला द्वारा बिजली निर्मिति प्रकल्प के कारण देश में सर्वाधिक प्रदूषण है । कोयले द्वारा होनेवाला बिजली का उत्पादन अल्प करना आवश्यक है, साथ ही उद्योग और घरों में होनेवाला कोयले का उपयोग अल्प होना चाहिए । वाहनों द्वारा निकलनेवाले धुएं के कारण प्रदूषण होता है, ऐसा भी इसमें बताया गया है । इस ब्योरे से स्पष्ट होता है कि प्रदूषण का मुख्य कारण क्या है ? इसलिए अब सरकार, जनता और उद्योगों को इस ओर गंभीरता से देखकर तत्काल कृति करना अपेक्षित है । क्योंकि इस प्रकार के प्रदूषण के कारण वर्ष २०१९ में देश में ९ लाख ७ हजार लोगों की मृत्यु हुई । यह संख्या वर्ष २०१५ की मृत्यु की तुलना में ९ प्रतिशत अधिक है । इसमें से १७ प्रतिशत अर्थात १ लाख ५७ हजार लोगों की मृत्यु केवल बिजली निर्मिति के प्रकल्प से निकलनेवाले कोयले के धुएं के कारण हुई है । कोयले पर नियंत्रण करने के लिए अब पूरे विश्व में भी प्रयास किए जा रहे हैं । इस हेतु भारत पर भी दबाव डाला जा रहा है; परंतु भारत को अन्य सुलभ विकल्प देने की आवश्यकता है । वर्तमान स्थिति में ऐसा पर्याय उपलब्ध होना कठिन है ।

कठोरता की आवश्यकता !

     भारत में बिजली की कमी रहती है और अब तो कोयले की भी कमी है । कोयले की कमी के कारण कुछ राज्यों में बिजली आपूर्ति बाधित होने की संभावना निर्माण हुई है । ऐसी परिस्थिति में औष्णिक पद्धति से बिजली निर्मिति करने की प्रक्रिया शीघ्रता से करने की आवश्यकता है; परंतु भारत जैसे कूर्मगति कार्यवाले देश में यह होना संभव नहीं । साथ ही गांव के लोगों और उद्योगों को अन्य विकल्प देना होगा, जो अभी उपलब्ध नहीं । पेट्रोल और डीजल की गाडियों के स्थान पर इलेक्ट्रिक गाडियां बाजार में आई हैं । ‘इनसे प्रदूषण नहीं होगा’, ऐसा कहा जा रहा है । तब भी ऐसी गाडियों को प्रभारित (चार्जिंग) करने के लिए अब पहले की तुलना में अधिक बिजली की आवश्यकता होगी । यह बिजली निर्मिति अंतत: कोयले द्वारा ही होगी । अर्थात प्रदूषण की समस्या और अनेक वर्ष रहेगी । प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार विकसित देश इस विषय में जागृत हुए है । कुछ वर्षाें पूर्व फ्रान्स की राजधानी पैरिस में हवा की गुणवत्ता का निर्देशांक १०० से अधिक था । सामान्यत: वह ५० के भीतर होना चाहिए । इसलिए फ्रान्स सरकार ने कुछ दिन पैरिस में कठोर संचारबंदी लागू की और प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किए । इस कारण कुछ ही दिनों में हवा की गुणवत्ता का निर्देशांक ३५ पर आया, तब सरकार ने संचारबंदी हटाई; परंतु प्रदूषण पर नियंत्रण रखने के लिए कठोर नियम बनाए । ऐसा प्रयास अब पूरे भारत में करना आवश्यक है; क्योंकि हिमालय की हवा का निर्देशांक भी १०० हो गया है । देहली में वह ५०० तक गया है, जो अत्यधिक संकटजनक है । अन्य महानगरों की स्थिति भी लगभग ऐसी ही है । सभी प्रकार के प्रदूषण विज्ञान की ‘भेंट’ है । अत: उस विषय में कठोरता रखना भी संभव है । यूरोप में लगभग डेढ-दो शतक पूर्व औद्योगिक क्रांति हुई । तब एक महिला वैज्ञानिक द्वारा दी गई प्रदूषण की चेतावनी की पूरी अनदेखी की गई । उसका परिणाम आज केवल भारत नहीं, अपितु पूरा विश्व भोग रहा है । विगत डेढ-दो शतकों में मानव की वैज्ञानिक प्रगति के कारण पृथ्वी विनाश की कगार पर खडी है । अब किए जा रहे प्रयास प्यास लगने पर कुआं खोदने जैसे हैं । इसका कितना परिणाम होगा ? यह आनेवाला काल बताएगा ।

प्रकृति के नियमानुसार आचरण आवश्यक !

     प्रदूषण पर पूरी मात करने के लिए डेढ-दो शतक पहले जैसी स्थिति थी, कम से कम वैसी स्थिति अब निर्माण करनी चाहिए । वह अब संभव नहीं; परंतु उस दिशा में प्रयास करना चाहिए । अर्थात निसर्ग नियमों के अनुसार मनुष्य को आचरण करना चाहिए । वैसे ही उपकरण, साहित्य, दिनक्रम, उद्योग, वस्तु, औषधियों का उपयोग करना चाहिए । संभवत: भविष्य में होनेवाले तीसरे विश्वयुद्ध के उपरांत कुछ भी शेष न रहने पर इसी स्थिति में मनुष्य को रहना पडेगा और तब प्रदूषण समाप्त होगा ।