नई देहली – मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने कुछ दिन पूर्व एक बाल यौन शोषण के प्रकरण में निर्वस्त्र न करते हुए स्तनों को स्पर्श करना अत्याचार नहीं है, यह निर्णय दिया था, तथापि लैंगिक उद्देश्य से किया गया किसी भी प्रकार का स्पर्श यौन शोषण ही है, ऐसा बताते हुए सर्वाेच्च न्यायालय ने बाल यौन शोषण के प्रकरण के आरोपी को पुनः पॉक्सो कानून के अंतर्गत की धाराओं के अंतर्गत दोषी प्रमाणित किया है । सर्वाेच्च न्यायालय ने कहा है कि स्पर्श कपडों के उपर से है अथवा स्कीन टू स्कीन (शरीर का शरीर से सीधा स्पर्श होना) इस पर ही हम मंथन करते बैठे, तो उससे पॉक्सो कानून का मूल उद्देश्य ही बाजू में हो जाएगा ।
#SC set aside a judgment of the Bombay High Court while observing that 'skin-to-skin' contact was not necessary for the offence of sexual assault under #POCSO.https://t.co/iB9DOLOggn
— IndiaToday (@IndiaToday) November 18, 2021
मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा था कि किसी छोटी लडकी का हाथ पकडने अथवा उसकी पैन्ट की चेन खोलने के कृत्य यौन शोषण के अंतर्गत नहीं आते । ‘पॉक्सो’ अंतर्गत इन कृत्यों को यौन शोषण नहीं कहा जा सकता । बाल यौन अत्याचार प्रमाणिथ होने हेतु शरीर को सीधा स्पर्श होना आवश्यक है । केवल शरीर के साथ कुछ गतिविधियां करना अथवा अज्ञानवश शरीर को किया गया स्पर्श यौन अत्याचार में नहीं आता । इस प्रकरण में न्यायालय ने आरोपी को दिया गया दंड भी रद्द किया था । केंद्र सरकार ने नागपुर खंडपीठ के इस निर्णय को सर्वाेच्च न्यायालय को चुनौती दी थी ।