बांसुरीवादन से संतपद प्राप्त करनेवाले पुणे के विख्यात बांसुरीवादक पू. पंडित केशव गिंडेजी की रामनाथी (गोवा) स्थित सनातन आश्रम को सदिच्छा भेंट !

पू. पंडित केशव गिंडे

     रामनाथी, फोंडा (गोवा) – बांसुरीवादन से संतपद प्राप्त करनेवाले पुणे केविख्यात बांसुरीवादक पू. पंडित केशव गिंडेजी ने २० अक्टूबर को रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम को सदिच्छा भेंट दी । सनातन के सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी ने शॉल, श्रीफल और भेंटवस्तु देकर पू. पंडित केशव गिंडेजी का सत्कार किया । अत्यधिक शारीरिक कष्ट होते हुए भी सत्कार समारोह में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की वंदनीय उपस्थिति थी । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की संगीत समन्वयक और ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद) ने इस समारोह का सूत्रसंचालन किया । पू. पंडित केशव गिंडेजी के साथ उनके शिष्य श्री. सुरेश मयेकर और उनके पुत्र कु. परंतप मयेकर भी उपस्थित थे । (परंतप अर्जुन का नाम है । परंतप का अर्थ होता है ‘योद्धा’ तथा ‘तप द्वारा जो इंद्रियों पर विजय प्राप्त करें ।’)

     पू. पंडित केशव गिंडेजी ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संगीत क्षेत्र के शोधकार्य के विषय में उत्सुकता से जानकारी प्राप्त की ।

पू. पंडित केशव गिंडेजी का सम्मान करते हुए सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी. साथ में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

१. पू. पंडित केशव गिंडेजी को आश्रम के कार्य से अवगत कराते समय अनुभव हुई उनकी गुणविशेषताएं !

अ. पू. गिंडेजी की आयु ८० वर्ष होते हुए भी उन्होंने पूरा आश्रम रुचि से देखा तथा सभी सेवाओं के विषय में जिज्ञासा से जाना ।

आ. पू. गिंडेजी विख्यात बांसुरीवादक होते हुए भी सभी को विनम्रता से हाथ जोडकर नमस्कार कर रहे थे । ‘मैं अभी भी आप से सीख रहा हूं’, ऐसा उन्होंने कहा ।

२. सनातन आश्रम और सनातन के साधकों के विषय में पू. पंडित केशव गिंडेजी द्वारा व्यक्त उद्गार !

अ. ‘आश्रम के आपतत्त्व में वृद्धि होने के कारण कुछ स्थानों की फर्श चिकनी हो गई है’, इस विषय में उन्होंने उत्सुकता से समझ लिया ।

आ. दोष और अहं निर्मूलन के लिए सनातन के सभी साधक स्वयं से अपनी चूकें फलक पर लिखते हैं, यह देख पू. गिंडेजी ने कहा, ‘यहां के सभी साधक सत्यनिष्ठ हैं ।’

३. आश्रम की विशेष आध्यात्मिक घटनाएं देखकर पू. पंडित केशव गिंडेजी द्वारा व्यक्त उद्गार !

अ. आश्रम के स्वागतकक्ष में लगे सनातन-निर्मित भगवान श्रीकृष्ण के चित्र को देखते ही पू. पंडित गिंडेजी ने कहा, ‘‘चित्र में श्रीकृष्ण जीवित हैं । ऐसा लगता है, वे हमसे बात कर रहे हैं !’’ परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने बताया, ‘‘श्रीकृष्ण के इस चित्र में ३१ प्रतिशत श्रीकृष्णतत्त्व है ।’’ (कलियुग में अधिकाधिक ३० प्रतिशत देवता का तत्त्व ही किसी भी चित्र अथवा मूर्ति में आकृष्ट हो सकता है ।)

आ. आश्रम के ध्यानमंदिर में रखी पीतल की श्री दुर्गादेवी की मूर्ति देखते ही पू. पंडित गिंडेजी ने कहा, ‘‘प्रत्यक्ष श्री दुर्गादेवी ही यहां हैं ।’’

इ. आश्रम के ध्यानमंदिर में किए दत्तमाला मंत्रपठन के प्रभाव से ध्यानमंदिर के बाहर के परिसर में गूलर के अनेक पौधे अपनेआप उग आए हैं । उन्हें देख पू. गिंडेजी ने कहा, ‘‘गूलर का वृक्ष अपनेआप कहीं नहीं उगता । आश्रम परिसर में गूलर के अनेक पौधे हैं, यह ईश्वर की कृपा है ।’’ पू. गिंडेजी ने दत्त संप्रदाय के अनुसार दीर्घकाल साधना की है ।

ई. हंगरहळ्ळी (कर्नाटक) की श्री विद्याचौडेश्वरी देवी ने सनातन आश्रम की दीवारों पर अपने मुकुट के सिरे से आशीर्वादस्वरूप वाक्य लिखे हैं । सनातन आश्रम को इस प्रकार के विविध देवताओं के आशीर्वाद प्राप्त हुए हैं, इसका पू. पंडित गिंडेजी को आश्चर्य हुआ । उन्होंने कहा, ‘यह आश्रम भिन्न है ।’

४. पू. पंडित केशव गिंडेजी के साथ आए श्री. सुरेश मयेकर ने आश्रम के साधकों का पू. पंडित गिंडेजी के प्रति भाव देखकर व्यक्त किया अभिमत !

अ. आश्रम में हुए सत्संग में सनातन के दैवी बालकों ने पू. पंडित गिंडेजी को केवल देखकर ही उनकी गुणविशेषताएं बताईं । सनातन के बालसाधक पू. पंडित गिंडेजी से पहले से परिचित न होते हुए भी उनके द्वारा बताई गई गुणविशेषताएं सुनकर श्री. सुरेश मयेकर को आश्चर्य हुआ । उन्होंने कहा ‘वास्तव में ये दैवी बालक हैं ।’

आ. ‘अनेक वर्ष पू. गिंडेजी के साथ रहकर भी हम उन्हें पहचान नहीं पाए । सनातन के साधकों का पू. गिंडेजी के प्रति भाव तथा दैवी बालकों द्वारा बताई गुणविशेषताएं सुनकर अब हम सीखेंगे कि ‘संतों के साथ किस प्रकार आचरण करें ।’ पू. पंडित गिंडेजी के गुरु ने कहा था कि ‘पू. गिंडेजी कृष्ण हैं ।’ उस समय हमारा दृष्टिकोण था कि ‘पू. गिंडेजी बांसुरी बजाते हैं; इसलिए गुरु उन्हें श्रीकृष्ण कहते हैं ।’ साधकों का उनके प्रति भाव देखकर समझ आया कि गुरु बताते थे उस अनुसार वास्तव में वे संत ही हैं ।

५. श्री. सुरेश मयेकर ने कहा, ‘सनातन आश्रम जैसा आश्रम मैंने पूरे विश्व में अन्य कहीं भी नहीं देखा ।’

संकलनकर्ता : होमियोपैथी डॉक्टर (कु.) आरती तिवारी, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२१.१०.२०२१)

‘पू. पंडित केशव गिंडेजी के बांसुरीवादन का उपस्थित श्रोताओं पर क्या परिणाम होता है’, इस विषय में शोधपूर्ण प्रयोग !

     २१ अक्टूबर को ‘पू. पंडित केशव गिंडेजी के बांसुरीवादन का उपस्थित श्रोताओं पर क्या परिणाम होता है’, इस विषय में शोधपूर्ण प्रयोग किया गया । इस प्रयोग के अंतर्गत प्रथम पू. पंडित केशव गिंडेजी ने बांसुरी पर राग तोडी बजाया । उन्होंने अपनी बांसुरी के कुछ छिद्रों में वृद्धि की तथा दूसरे सत्र में वही राग (तोडी) बजाया । उन्होंने स्वयं शोध कर जो १२ छिद्रों की बांसुरी तैयार की, उस पर प्रयोग के तीसरे सत्र में राग यमन बजाया । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के श्री. गिरिजय प्रभुदेसाई (संगीत विशारद (तबला)) ने तबले पर उनके साथ संगत की ।

     बांसुरीवादन के इन तीनों सत्र का उपस्थित श्रोताओं पर अधिकाधिक सकारात्मक परिणाम दिखाई दिया । साधक बांसुरीवादन सुनने में रम गए, साथ ही उन्हें बांसुरीवादन का आध्यात्मिक स्तर पर भी लाभ हुआ । पू. पंडित केशव गिंडेजी ने अपना मनोगत व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘परमेश्वर मुझे शक्ति प्रदान करें । मैं महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के कार्य में अपना पूर्ण योगदान दूंगा ।’’

सनातन के साधकों के विषय में पू. पंडित केशव गिंडेजी द्वारा व्यक्त उद्गार !

     ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिक नियमित विज्ञापन न लेते हुए केवल साधकों की साधना के रूप में चलाएं जाते हैं । ये पू. गिंडेजी को विशेष अच्छा लगा । उन्होंने कहा, ‘यहां के सभी साधक वेतन न लेते हुए निःस्वार्थ भाव से कार्य करते हैं, यह विशेषतापूर्ण है ।’

– होमियोपैथी डॉक्टर (कु.) आरती तिवारी, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा.(२१.१०.२०२१)