‘जोधपुर (राजस्थान) के सनातन के साधक श्री. बंकटलाल मोदी (बाबूजी) (आयु ७५ वर्ष) का आषाढ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी (२२.७.२०२१) को सवेरे ४.३० बजे उनके घर पर निधन हुआ । उनके संदर्भ में उनकी पत्नी पू. (श्रीमती) सुशीला मोदीजी (सनातन संस्था की ६३ वीं समष्टि संत) (आयु ७१ वर्ष) को उनके पति की ध्यान में आई कुछ गुणविशेषताएं आगे दी हैं ।
१. पति पर आर्य समाज का प्रभाव होते हुए भी सनातन संस्था द्वारा बताए अनुसार विविध नामजप स्वीकार कर, नामजप करना
‘हमारे विवाह के समय मेरे ससुराल पर आर्य समाज का प्रभाव था । इसलिए घर में ‘देवतापूजन करना और मंदिर जाना’, ऐसे नहीं होता था । एक बार हमें व्यवसाय में अत्यधिक क्षति पहुंची । इस घटना के कुछ समय पूर्व ही हम सनातन संस्था के संपर्क में आए थे । संस्था में बताए अनुसार हमने ‘कुलदेवता’ और ‘भगवान दत्तात्रेय’ का नामजप करना प्रारंभ किया । तदुपरांत कालानुसार विविध नामजप बताए गए; फिर भी आर्य समाज का प्रभाव होने के उपरांत भी यजमान ने उसे स्वीकार कर, विविध नामजप किए ।
२. सहनशीलता
उन्हें अनेक शारीरिक व्याधियां थीं । एक रोग पर उपाय करने पर, उसका परिणाम दूसरे रोग पर होता था; परंतु यजमान कभी भी उस विषय में कुछ नहीं कहते । वे कहते, ‘‘हे विष्णु, बचाओ ।’’ तब मैंने उन्हें बताया, ‘‘ऐसे कहो कि ‘हे विष्णु, अपनी शरण में लीजिए ।’’ फिर उनकी अंतिम बीमारी के समय वे बताए अनुसार ही कहते थे । अंतिम समय में उन्हें कोई यातना नहीं हुई, यह गुरुकृपा ही थी ।
३. सेवा की लगन
सोजत (राजस्थान) में साधना संबंधी शिविर हुए । तब उन्होंने अपनी प्रकृति (स्वास्थ्य) का विचार न कर, ५ दिन सतत सेवा की ।
४. सनातन संस्था के प्रति भाव
अ. एक बार उन्होंने मुझसे कहा था, ‘‘मेरी एक भूमि है । उसकी बिक्री होने के पश्चात वे पैसे मैं संस्था को अर्पण करूंगा ।’’
५. निधन से पूर्व श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी का सत्संग मिलना और उनके बताए अनुसार प्रतिदिन ‘इंद्राक्षी स्तोत्र’ कहना
१२.७.२०२१ को श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी जोधपुर आई थीं । उनके हवन करते समय वे वहां बैठे ओर उनके बताए अनुसार प्रतिदिन ‘इंद्राक्षी स्तोत्र’ कहने लगे ।
‘पति का नामजप और त्याग होना, बीमारीरूपी प्रारब्ध सहन करने की शक्ति मिलना और अंततः सहजता से प्राण छोडना’, यह सबकुछ गुरुकृपा से ही संभव हुआ ।
६. पति के निधन के उपरांत हुई अनुभूति
अ. पति के निधन के उपरांत आर्य समाज की पद्धति अनुसार घर में यज्ञ किया गया । उस यज्ञ में अनेक बार मोरपंखी ज्वालाएं दिखाई दे रहीं थीं ।
आ. निधन के उपरांत १२ वें दिन हुए यज्ञ में त्रिशूल के दर्शन हुए । साथ ही श्रीकृष्ण और अर्जुन के रथ के दर्शन भी यज्ञ में हुए ।
इ. निधन के उपरांत पति के घर में रखा छायाचित्र १२ वें दिन पश्चात सभी को ऐसा लगा कि वह सजीव हो गया है ।
इस दुःखद घटना के पश्चात भी संपूर्ण कुटुंब शांत और स्थिर है । इससे साधना का महत्त्व ध्यान में आता है । गुरुदेव ने साधना करवा ली और साधना का संस्कार सभी के मन पर किया । ऐसे श्रीविष्णुस्वरूप गुरुदेव के चरणों में शतशः कृतज्ञ हूं ।’
– पू. (श्रीमती) सुशीला मोदी (आयु ७१ वर्ष), जोधपुर, राजस्थान. (२०.९.२०२१)
‘पति के निधन की ओर साक्षीभाव से देखकर आए हुए रिश्तेदारों को सत्संग प्राप्त हो’, ऐसी तीव्र लगनवालीं पू. (श्रीमती) सुशीला मोदीजी !
‘बाबूजी के निधन के ११ वें अथवा १२ वें दिन जो रिश्तदेर आए, उनके लिए भी पू. भाभी ने सत्संग रखा । संस्था की कुछ दृश्यश्रव्य-चक्रिकाएं दिखाकर पू. भाभी ने उन्हें नामजप और साधना का महत्त्व बताया । इससे ‘प्रत्येक क्षण सेवा में व्यतीत करना और लोग भी भूतकाल की घटनाओं में समय न गंवाएं, उन्हें कुछ सत्संग मिले’, ऐसी पू. मोदीभाभी की लगन दिखाई दी । उन्होंने रिश्तेदारों को सनातन संस्था का ‘धर्मशिक्षा फलक’, ग्रंथ भेंट देकर अध्यात्मप्रसार भी किया ।’ – श्री. आनंद जाखोटिया (आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत) हिन्दू जनजागृति समिति के मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्य समन्वयक (२१.९.२०२१)
पति की मृत्यु समान कठिन प्रसंग में भी अत्यंत स्थिर रहकर अध्यात्मप्रसार करनेवालीं सनातन की संत पू. (श्रीमती) सुशीला मोदीभाभी ! ‘श्री. बंकटलाल मोदी के निधन के उपरांत मैंने उनकी पत्नी पू. मोदीभाभी एवं उनके परिवार से चल-दूरभाष द्वारा संवाद किया । उस समय ध्यान में आया कि पति के निधन जैसे कठिन प्रसंग में भी पू. भाभी अत्यंत स्थिर थीं । उस समय उनमें तिलमात्र भी भावनिकता नहीं थी । पू. भाभी ने यही बताया कि ‘उस प्रसंग में प्रतिक्षण परात्पर गुरुदेवजी की कृपा कैसे अनुभव की ।’ इससे उनका कृतज्ञभाव ध्यान में आ रहा था । ऐसे प्रसंग में इतना स्थिर और आध्यात्मिक स्तर पर रहना प्रशंसनीय है । इतने वर्षाें में ऐसा उदाहरण मैंने पहली बार ही अनुभव किया ! – श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी (१६.१०.२०२१) |