अभिव्यक्ति की तुलना में धार्मिकता महत्त्वपूर्ण !

     इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में कहा कि ‘धार्मिक भावना, प्रतीक, श्रद्धाकेंद्रों का सम्मान करना आवश्यक है, वहां अभिव्यक्ति स्वतंत्रता लागू नहीं होती ।’ एक व्यक्ति ने राम-कृष्ण के विषय में एक अश्लील ‘पोस्ट’ सामाजिक माध्यमों पर प्रकाशित की थी । उस अभियोग की सुनवाई के समय न्यायलय में आरोपी ने कहा, ‘ऐसी ‘पोस्ट’ करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है ।’ इस पर रोष प्रकट करते हुए न्यायालय ने कहा ‘राम-कृष्ण के बिना भारत अपूर्ण है । जिस देश में रहते हैं, वहां की संस्कृति, महापुरुषों का सम्मान करना आवश्यक है । हमारी संस्कृति ‘वसुधैव कुटुम्बकम् ।’ (पूरी पृथ्वी एक कुटुंब है ।) माननेवाली है । हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव को देवता बनने का मार्ग दिखाया है । रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा कि ‘रामायण और महाभारत में भारत की आत्मा के दर्शन होते हैं ।’ राम और कृष्ण का अपमान पूरे देश का अपमान है, इसलिए उनके विरुद्ध अश्लील टिप्पणी क्षमा योग्य नहीं है ।’

बहुसंख्यकों के धर्म का अपमान !

     उच्च न्यायालय का यह प्रतिपादन बहुत कुछ कहता है । ‘बहुसंख्यक हिन्दुओं की अस्मिता का सम्मान किया जाना चाहिए’, यही न्यायालय ने इस निर्णय द्वारा बताया । विविध प्रकार की स्वतंत्रता, संविधान के नाम पर भारत के बहुसंख्यक सहिष्णु हिन्दू समाज के श्रद्धाकेंद्रों का अपमान किया जाता है । हिन्दुओं का प्रभावी संगठन तथा धर्माभिमान के अभाव में अपमान करनेवालों का विरोध नहीं होता । विश्व के इस्लामी देशों में इस्लामी प्रथा, परंपरा अथवा इस्लामी प्रतीकों के अपमान हेतु कठोर कानून है, जिनके अंतर्गत तत्काल कठोर दंड दिया जाता है ।

     भारत में कुछ वर्षों पूर्व मकबूल फिदा हुसेन नामक हिन्दूद्वेषी चित्रकार ने हिन्दुओं के देवी-देवता और भारतमाता के नग्न और अश्लील चित्र बनाए थे । हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आवाज उठाने पर तथाकथित विद्वानों ने ‘क्या आपको कला का ज्ञान है ?’, ऐसा कहकर इस विरोध का उपहास किया । तब हिन्दू जनजागृति समिति ने हुसेन का हिन्दूद्वेष सामने लाया, जिस कारण उसके विरोध में पूरे भारत में १ सहस्र २०० से अधिक परिवाद (शिकायत) तथा अपराध प्रविष्ट किए गए । इसके फलस्वरूप हुसेन को देश छोडकर भागना पडा और वहीं उनकी मृत्यु हुई ।

     वर्तमान में अनेक जन्महिन्दू, साथ ही अहिन्दुओं द्वारा हिन्दुओं के देवता, श्रद्धाकेंद्रों पर टीका-टिप्पणी करने के प्रकरणों में वृद्धि हुई है । तनिष्क ज्वेलरी का विज्ञापन, नवरात्रि में देवी के ८ अथवा १० हाथों में आयुधों की जगह उत्पाद दिखाना, इस प्रकार हिन्दुओं के देवताओं का उपयोग विज्ञापन हेतु कर उनका अपमान किया जाता है । सामाजिक माध्यमों के विशिष्ट गुटों द्वारा हिन्दू धर्म के विषय में द्वेषयुक्त, आधारहीन, संदर्भहीन लेख प्रकाशित किए जाते हैं । तब भी वे कानून से, पुलिस से छूटकर स्वतंत्र घूमते हैं । हिन्दू धर्म एवं हिन्दू देवताओं की निंदा कर ईसाई पाद्री धर्मांतरण करते हैं । नास्तिक व्यक्ति केवल हिन्दू धर्म पर टिप्पणी करता है, ईसाई अथवा इस्लाम के विरुद्ध नहीं । चप्पल, पोंछा, कमोड जैसे उत्पाद पर जानबूझकर हिन्दू देवताओं के चित्र बनाए जाते हैं । विरोध होने पर केवल क्षमायाचना करना, उत्पाद हटाना इतना ही होता है । कठोर दंड नहीं दिया जाता ।

धर्मशिक्षा और कठोर कानून ही उपाय !

     भारत में बहुसंख्यक हिन्दुओं के श्रद्धाकेंद्रों के अपमान के विरुद्ध ईशनिंदा का कठोर कानून आवश्यक है । अन्य पंथीय उनके पंथ का अपमान होने के संशय पर भी कानून हाथ में लेकर संबंधित के संपत्ति की हानि करना, धमकी देना और हत्या करना जैसी हिंसक कृति करते हैं । इसलिए कोई उनके धर्म का अपमान करने का साहस नहीं करता । इसके विपरीत हिन्दू हैं । भारत में हिन्दुओं की जनसंख्या ७० प्रतिशत से भी अधिक है, तब भी हिन्दुओं के श्रद्धाकेंद्रों का अपमान क्यों होता है ? इसका भी उत्तर न्यायालय ने अपने निर्णय में दिया है । न्यायालय ने कहा कि अपमान रोकने हेतु संसद में कानून बनाना चाहिए तथा शालाओं में संस्कृति पढाई जानी चाहिए । राम, कृष्ण, गीता के विषय में बच्चों को सिखाना चाहिए । हिन्दुओं में धर्माभिमान का अभाव ही मुख्य कारण है । ‘हिन्दू धर्म क्या है ?’ यह भी स्वतंत्रता के उपरांत जिनकी अनेक पीढियों को सिखाया नहीं गया, वे हिन्दू धर्म के विषय में कैसे सजग रहेंगे ? इसलिए भारत में हिन्दू धर्म की शिक्षा अनिवार्य की जाए । हिन्दू धर्म के उत्थान हेतु कार्यरत ऐसे न्यायालय और न्यायमूर्ति देश के लिए अनमोल हैं ।