स्वतंत्रता के ७४ वर्ष उपरांत सर्वदलीय राजकर्ताओं द्वारा जनता को अनुशासित न किए जाने का यह परिणाम है ! भारतीयों के लिए यह लज्जाप्रद है ! – संपादक
नई देहली – प्रतिवर्ष भारतीय रेल प्रशासन को यात्रियों की थूंकने की आदत के कारण आए दागों की, और अन्य नियमित स्वच्छता करने के लिए लाखों लिटर पानी का उपयोग करना पडता है । कुल मिलाकर इस स्वच्छता के लिए प्रतिवर्ष १ सहस्र २०० करोड रूपयों का खर्चा करना पडता है । इसमें विशेष बात यह कि पान मसाला और तंबाकू खाकर थूकने की यात्रियों की आदत के कारण रेल के डिब्बे, रेल की स्वामित्ववाली भूमि और संपत्ति में जो गंदगी होती है, उस गंदगी को स्वच्छ करने के लिए यह खर्चा करना पड रहा है ।
Read on to find out how much Indian Railways spends each year to clean those stains. (@RailMinIndia)https://t.co/bCrcBWe8fw
— IndiaToday (@IndiaToday) October 10, 2021
रेल प्रशासन का यात्रियों को परिसर में थूकने के लिए यात्रियों को स्पिटॉन का उपयोग करने का सुझाव !
(‘स्पिटॉन’ का अर्थ थूकने के लिए कपास से बनाया जानेवाला विशिष्ट प्रकार का गोला !)
यदि यात्री ही अनुशासनहीन होंगे, तो थूकने के लिए स्पिटॉन का उपयोग करनेसहित कहीं पर भी थूकनेवालों से कठोर आर्थिक दंड वसूल किया गया, तो ऐसी घटनाएं रुकेंगी !– संपादक
थूकने के कारण होनेवाल गंदगी, साथ ही संक्रमण के रोकने हेतु रेल प्रशासन से यात्रियों को स्पिटॉन का उपयोग करने का सुझाव दिया जा रहा है । स्पिटॉन का मूल अर्थ थूकने के लिए उपयोग किया जानेवाला बरतन; परंतु रेल प्रशासन द्वारा निर्मित स्पिटॉन थूकने के लिए कपास से बनाया गया विशिष्ट प्रकार का गोला है । इन गोलियों में पेड का बीज भी होता है । उपयोग के उपरांत इन गोलों को फेंका जा सकता है । रेल प्रशासन ने ४२ रेल स्थानकों पर स्पिटॉन पाऊच (पैसे डालने के उपरांत संबंधित वस्तु बाहर निकाल देनेवाला यंत्र) लगाने की अनुमति दी है । यह स्पिटॉन ५ से १० रुपए में उपलब्ध होनेवाला है । इसके संपूर्ण उपयोग के उपरांत इस पाऊच को मिट्टी में फेंका जा सकता है । ये पाऊच मिट्टी में संपूर्णरूप से घुल जाते हैं, जिससे प्रदूषण की समस्या नहीं आएगी । स्पिटॉन बनाने के लिए विशेष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया गया है । इस माध्यम से थूक में निहित विषाणु इस स्पिटॉन में फंस जाते हैं और उससे संक्रमण को टाला जा सकता है ।