१. तालिबान द्वारा युद्ध हेतु सहायता करनेवाले पाकिस्तान, चीन और ईरान को शपथविधि समारोह हेतु निमंत्रित करना
‘वर्तमान में अफगानिस्तान में तीव्र गति से घटनाक्रम हो रहा है । पाकिस्तान और चीन ने तालिबान को युद्ध हेतु सहायता की थी । इसीलिए तालिबान ने पाकिस्तान और चीन को शपथविधि समारोह का निमंत्रण भेजा । अर्थात तालिबान द्वारा उन्हें निमंत्रित करना स्वाभाविक ही था । इन देशों ने तालिबान को नियोजन बनाकर दिया, गुप्त सूचनाएं दीं, बारूद और शस्त्र प्रदान किए । इतना ही नहीं, अपितु उत्कृष्ट उपग्रह और छायाचित्र भी दिए । वर्तमान में अफगानिस्तान भूवेष्टित (भूप्रदेशवाला) देश है । उन्हें समुद्र नहीं मिला है । इसीलिए पेट्रोल और डिजल प्राप्त करने के लिए उन्हें ईरान की सहायता आवश्यक है । अत: उन्होंने ईरान को भी शपथविधि समारोह में निमंत्रित किया था ।
२. तालिबान का सर्वाेच्च नेता और अफगानी धर्मगुरु मुल्ला मुहम्मद अखुंदजादा !
मुल्ला मुहम्मद अखुंदजादा तालिबान का सर्वोच्च नेता है । (मुहम्मद अखुंदजादा की हत्या किए जाने का समाचार प्रसारमाध्यमों में प्रसारित हुआ; परंतु इस समाचार की अधिकृत पुष्टि नहीं की गई है । – संकलनकर्ता) तालिबान की सरकार में अनेक आतंकवादी हैं । वे अल् कायदा और इसिस जैसे विविध आतंकवादी संगठनों की सहायता कर रहे हैं । अल् कायदा ने पहले ही बताया है कि वे ३० देशों में आतंकवादी कार्यवाही करनेवाले हैं । केवल चेचेन्या और चीन के शिंनजियांग ही नहीं, भारत का नाम भी उस सूची में समाविष्ट है । इसलिए तालिबान विश्व हेतु सिरदर्द बननेवाला है ।
मुल्ला मुहम्मद अखुंदजादा सैनिकी नेता नहीं है, वह अफगानी धर्मगुरु है । उसे युद्धों का अनुभव नहीं है । धर्म और आतंकवाद की नीति निश्चित करने में उसका प्रधान सहभाग रहता है । उससे वरिष्ठ नेताओं की मृत्यु होने से उसकी पदोन्नति होकर वह प्रमुख नेता बन गया । वर्ष २००१ में अखुंदजादा तालिबान की सरकार में उपराष्ट्रपति था । जब तालिबान की स्थापना हुई, तब वह संस्थापक सदस्यों में से एक था । मुल्ला उमर का बेटा क्रमांक एक का नेता था और हक्कानी गुट का सिराजुद्दीन क्रमांक दो का नेता था । हक्कानी का पाक समर्थित गुट है । इसीलिए अखुंदजादा समझौते के प्रत्याक्षी के रूप में आगे आया है ।
३. वैश्विक स्तर पर अपने महत्त्व में वृद्धि करने के लिए तालिबान द्वारा गौतम बुद्ध की मूर्ति ध्वस्त करना और मूर्ति ध्वस्त करने के लिए किए प्रयास
अफगानिस्तान सरकार ने निरंतर तालिबान नेताओं को मारने का प्रयास किया है । मुल्ला अखुंदजादा पर भी अनेक आक्रमण हुए; परंतु वह उनसे बच निकला । बामियान घाटी में अतिशय प्राचीन बुद्ध मूर्ति थी । उसे ध्वस्त करने का आदेश अखुंदजादा ने दिया था । उस समय आतंकवादी संगठनों में स्पर्धा थी तथा अल् कायदा को अधिक प्रसिद्धि मिल रही थी । इसीलिए प्रसिद्धि पाने के लिए तालिबान ने बुद्ध मूर्ति को ध्वस्त करने का फतवा निकाला । वह मूर्ति पत्थरों में उकेरी गई थी । इसीलिए वह इतनी शक्तिशाली थी कि अनेक प्रयास करने पर भी तालिबान को उसे ध्वस्त करना संभव नहीं हुआ । उन्होंने मूर्ति पर तोप और टैंक द्वारा बम दागे, तब भी वह मूर्ति ध्वस्त नहीं हुई । अंतत: उन्होंने मूर्ति में यंत्र की सहायता से छेद किए और उनमें विस्फोट किया । तदुपरांत उन्हें मूर्ति ध्वस्त करने में सफलता प्राप्त हुई । इस घटना के उपरांत विश्व में तालिबान का महत्त्व एकदम बढ गया ।
४. तालिबान के गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी भारत के लिए संकट !
तालिबान की सरकार भारत हेतु बडा संकट है । इस सरकार में ‘हक्कानी’ नेटवर्क के सिराजुद्दीन को गृहमंत्री नियुक्त किया गया है । सिराजुद्दीन पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था ‘आईएसआई’ की कठपुतली है । हक्कानी नेटवर्क ने इससे पहले भी भारत में आतंकवाद की वृद्धि हेतु पाकिस्तान को सहायता दी है । इसलिए हक्कानी तालिबानी आतंकवादियों को भारत में भेजने का प्रयास करेंगे । हक्कानी की लष्कर-ए-तोएबा, जैश-ए-महंमद, अल् बदर जैसे आतंकवादी गुटों से मित्रता है । कुछ दिनों पहले ही जैश-ए-महंमद का प्रमुख मौलाना मसूद आतंकवाद में वृद्धि करने के लिए हक्कानी से मिलने गया था । अनेक आतंकवादी कश्मीर में घुसने की तैयारी में हैं । इसलिए भारत को सावधान रहना होगा ।
५. अफगानिस्तान के लोगों में पाकिस्तान के विरोध में असंतोष !
अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार स्थापित हुई है । दूसरी ओर अफगानिस्तान के लोगों में पाकिस्तान के विषय में तीव्र असंतोष है । अनेक नागरिक हजारों की संख्या में काबूल में आए हैं । उत्तरीय प्रांत में भी असंतोष फैल रहा है । पाकिस्तान और आईएसआई के कारण अफगानिस्तान के हजारों लोगों को पलायन करना पडा । अनेक लोग मारे गए तथा कुछ घायल भी हुए हैं । उनकी स्थिति अत्यंत बुरी है । महिलाओं पर अत्यधिक अत्याचार किए जा रहे हैं । इसलिए वहां के लोग पाकिस्तान के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं ।
६. अमेरिका निष्क्रिय होने से आंदोलनों के द्वारा भी कुछ फलोत्पत्ति न होना
तालिबान के विरोध में अमेरिका में आंदोलन आरंभ है; परंतु आंदोलन करके भी कुछ लाभ नहीं होगा । अमेरिकी सेना अफगानिस्तान छोडकर निकल गई है और अमेरिका वहां कुछ भी करने की मनःस्थिति में नहीं है । इस स्थिति में अमेरिका एक अत्यंत निष्क्रिय लष्करी शक्ति बन गई है । इसलिए वहां कितने भी प्रदर्शन किए, तो भी उनकी कुछ भी फलोत्पत्ति होने की संभावना अल्प है ।
७. तालिबान विरोधी युद्ध का मुख्य केंद्र पंजशीर होगा
अमेरिका और रशिया को भी पंजशीर घाटी पर नियंत्रण करना संभव नहीं हुआ था । वह ‘नॉर्दन एलायन्स’ का मुख्य कार्यालय था । पंजशीर में कुजबेकी, ताजिकी और तुर्कमेनिस्तान के लोग एकत्रित हुए हैं, अर्थात वहां पश्तुन और जो पठान नहीं है, ऐसे लोगों का गठबंधन निर्माण किया गया है । उनका नेता अहमद मसूद अहमदशाह मसूद का बेटा है । उसने अनेक वर्ष तालिबान और सोविएत युनियन के विरुद्ध युद्ध लडा है । इस घाटी के आस-पास के पहाडों पर युद्ध करना कठिन है । इसलिए पंजशीर पर नियंत्रण पाने के लिए तालिबान को बहुत समय लगेगा । तालिबान के विरोध में किया जानेवाला प्रतिकार का युद्ध यहीं से लडा जाएगा ।’
– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे