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नई दिल्ली – सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है कि, ‘यदि यह प्रमाणित नहीं होती है कि रेल गाडियों के विलंब का कारण रेलवे प्रशासन के नियंत्रण से बाहर था, तो विलंब से चलने वाली रेल गाडियों के लिए रेलवे द्वारा संबंधित यात्रियों को क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिए ।’
Supreme Court has held that the railways will have to cough up and pay passengers compensation for deficiency of service for late running of trains if they cannot establish or prove that the delay occurred due to reasons beyond its control. https://t.co/C1xnJt2J3o
— The Hindu (@the_hindu) September 8, 2021
१. अलवर, राजस्थान के संजय शुक्ला ने १० जून २०१६ को अजमेर-जम्मू एक्सप्रेस के ४ टिकट लिए थे । निर्धारित समय के अनुसार, यह रेल गाडी प्रातः ८ बजे आने वाली थी । वह दोपहर १२ बजे, अर्थात ४ घंटे विलंब से अजमेर पहुंची । इसलिए, शुक्ला को जम्मू-श्रीनगर का हवाई जहाज नहीं मिला । उन्हें श्रीनगर के लिए टैक्सी लेनी पडी ।
२. तदुपरांत, संजय शुक्ला ने रेलवे के विरुद्ध अलवर ग्राहक मंच में शिकायत प्रविष्ट की, जिसमें टैक्सी किराए के लिए ९ सहस्र रुपए, हवाई जहाज के किराए के लिए १५ सहस्र रुपए एवं बोट हाऊस (नौका गृह) के किराए के लिए १० सहस्र रुपए मांगे गए ।
३. अलवर ग्राहक मंच ने २५ सहस्र रुपए क्षतिपूर्ति के लिए एवं प्रकरण के व्यय के लिए २० सहस्र रुपए का भुगतान स्वीकृत कर दिया । राज्य एवं राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने इस आदेश को यथावत रखा । रेलवे ने इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी ।
४. रेलवे ने दावा किया, ‘रेल गाडी विलंब से चलने के अनेक कारण होते हैं । रेलवे नियमों के अनुसार, विलंब से पहुंचने पर रेलवे कोई क्षतिपूर्ति देने के लिए बाध्य नहीं है । रेल विलंब से पहुंचना, यह सेवा में त्रुटि नहीं है ।’ इन सभी तर्कों को निरस्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने जनपद मंच का आदेश यथावत रखा ।
निर्णय के समय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त किए गए अभिमत :
१. प्रत्येक यात्री का समय मूल्यवान है ।
२. नीजी संस्थानों की प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए, रेलवे को अपने कार्य में सुधार करना ही होगी । यह प्रतिस्पर्धा का युग है । इसमें दायित्व निर्धारित किया जाना चाहिए ।
३. नागरिक एवं यात्री, प्रशासन अथवा अधिकारियों की दया पर निर्भर नहीं रह सकते ।