वी.एन्. रमना ने सांसदों के खींचे कान !
आपराधिक प्रवृत्तिवाले लोग यदि जनप्रतिनिधियों के रूप में चुने गए, तो इससे अलग क्या होगा ? इसके लिए अबतक के सभी राजनीतिक दल उत्तरदायी हैं । उन्होंने लोकतंत्र को धराशाई कर दिया है । अब मुख्य न्यायाधीश को ही इस स्थिति में परिवर्तन लाने हेतु प्रयास करने चाहिएं, यह जनता की उनसे अपेक्षा है ! – संपादक
नई देहली – आज के समय में प्रचालित कानूनों में बहुत संदिग्धता है तथा उनमें स्पष्टता का अभाव है । कोई कानून क्यों बनाया गया, यह हमें भी ज्ञात नहीं होता । उसके कारण जनता को भी कष्ट सहन करना पडता है और न्यायालयों में भी अभियोगों की सुनवाई को विलंब होता है । जब बुद्धिजीवी एवं अधिवक्तागण सदन में नहीं होते, तब ऐसा होता है । बहुत पहले सदन में कानूनों के संदर्भ में नीतिगत चर्चा अथवा वाद-विवाद होते थे; परंतु आज के समय में स्थिति दयनीय है । इन शब्दों में भारत के मुख्य न्यायाधीश वी.एन्. रमणा ने संसद में हंगामा करनेवाले और अभ्यासहीन सांसदों के कान खींचे । देश के ७५वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में वे ऐसा बोल रहे थे । मुख्य न्यायाधीश रमणार ने यह भी कहा कि अब ‘विधि समाज’ को (लीगल कम्युनिटी को) नेतृत्व करने और सामाजिक क्षेत्रों में भाग लेने का समय आ चुका है ।
'Sorry state of affairs': CJI NV Ramana expresses concern over lack of debate in #Parliament https://t.co/qIRtw47pgZ
— Zee News English (@ZeeNewsEnglish) August 15, 2021
मुख्य न्यायाधीश रमणा ने आगे कहा कि,
१. हमने यह देखा है कि स्वतंत्रतासंग्राम का नेतृत्व करनेवाले अनेक राष्ट्रीय नेता और स्वतंत्रता सैनिक भले ही वे गांधी, नेहरू अथवा सरदार पटेल हों; वे अधिवक्ता थे । उन्होंने केवल अपने व्यवसाय का ही नहीं, अपितु अपने परिवार एवं धन का भी त्याग कर देश को स्वतंत्रता दिलाई । (गांधी एवं नेहरू भारत के विभाजन को मान्यता देकर १० लाख हिन्दुओं के संहार के कारण बने, यह भी जनता को नहीं भूलना चाहिए ! – संपादक)
२. मुझे अभी भी इंडस्ट्रियल डिस्प्युट एक्ट के संशोधन विधेयक पर हुई चर्चा का स्मरण होता है । तमिलनाडू के माकपा के एक सदस्य रामामूर्ति ने इस कानून पर प्रस्तावित संशोधन के क्या परिणाम होंगे, इसकी विस्तृत चर्चा की थी । तब इसी प्रकार से विभिन्न कानूनों पर विस्तृत एवं व्यापक चर्चा होती थी ।
३. ऐसी चर्चाओं के कारण हमारे सामने यह स्पष्ट चित्र होता था कि सांसदों ने निश्चितरूप से कौनसा विचार किया है और उन्हें इस कानून के द्वारा क्या संदेश देना है अथवा उन्होंने यह कानून क्यों पारित किया है ! उसके कारण कानूनों का क्रियान्वयन करते समय अथवा उन कानूनों का अर्थ लगाते समय न्यायालयों पर आनेवाला तनाव न्यून होता था ।