गुजरात में काली फफूंद (ब्लैकफंगस) से संक्रमित रोगियों पर प्रभावी हो रहे हैं आयुर्वेदिक उपचार !

७० रोगियों में से किसी की भी मृत्यु  नहीं हुई या उनके नेत्र नहीं निकालने पडे  !

यदि आयुर्वेदिक औषधियों का कोरोना, काली फफूंद  आदि रोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ रहा है तो हिन्दुओं को लगता है कि केंद्र सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए और इस पर अधिक शोध करना चाहिए तथा  पूरे देश में इसके आधिकारिक उपयोग की अनुमति देनी चाहिए!

सूरत (गुजरात) – यद्यपि गुजरात में कोरोना रोगियों की संख्या में कमी आ रही है, किन्तु  काली फफूंद से संक्रमित रोगियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है । अब तक सात हजार से अधिक लोग इस बीमारी से ग्रसित हो चुके हैं।इनमें से २०० से अधिक रोगियों की मृत्यु हो चुकी है, जबकि ३५० से अधिक रोगियों के नेत्र निकाले जा चुके हैं । इसबीमारी  के रोगी को प्रतिदिन ३०,०००  रुपये का इंजेक्शन देने पर  भी उस पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता । वहीं दूसरी ऒर चित्र ऎसा भी  है कि काली फफूंद  पर आयुर्वेदिक औषधियों  का अच्छा प्रभाव  पडता है। सूरत के आयुर्वेदिक चिकित्सक रजनीकांत पटेल ने काली फफूंद से संक्रमित ७० रोगियों का उपचार  किया, इनमें  ७०  रोगियों में से किसी की भी मृत्यु नहीं हुई एवं  किसी की भी शल्यचिकित्सा नहीं करवानी पड़ी, इसके साथ साथ उनके  क्षतिग्रस्त नेत्र व  जबड़े भी ठीक हो गए ।   अनेक लोगों को दिखना बंद होगया था किन्तु  अब वे देख सकते हैं।

१. आयुर्वेद में इस रोग को ‘ब्लैक फंगस’ नहीं कहा गया है। इसे ‘कृमि’, ‘कुष्ठ’, ‘अस्थि मज्जा गति कुष्ठ’, ‘घातक कुष्ठ रोग’ के नाम से जाना जाता है। यह बीमारी बहुत पुरानी है और आयुर्वेद ३००० वर्षों  से इसका उपचार  कर रहा है। आयुर्वेदिक औषधि  लेते समय पथ्य का पालन करना अति आवश्यक है। इस बीमारी का उपचार  करते समय ऊंट का दूध न पीना, कच्चा केला न खाना, चिचिंडा की सब्जी न खाना, लाल चावल न खाना, साथ ही मीठा और खट्टा भोजन न करने  जैसे पथ्य का पालन करना नितांत  आवश्यक  है।

२. डॉ. रजनीकांत पटेल ने कहा काली फफूंद को नष्ट करने के लिए , “विदांग, भल्लाटक, उसिर, फलास, सिगरू, चित्रा आदि जैसी वनस्पतियों  का उपयोग  किया जाता है। इन वनस्पतियों  के चूर्ण के धुंएं को  नासिका छिद्रों से अंदर लेकर  मुंह से बाहर निकाला जाता है तथा मुहं से अंदर लेकर नासिका से बाहर निकाला जाता है। इसी प्रकार अन्य वनस्पतियों से निर्मित औषधियों को भी नाक में डाला जाता है। अन्यऔषधियों को मुख से लेना होता है । औषधियों के सेवन से ५० प्रतिशत एवं शेष ५०  प्रतिशत लाभ  पथ्य पालन से होता  है।”