परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी के ओजस्वी विचार

 

हिन्दू (ईश्‍वरीय)राष्ट्र की शिक्षाप्रणाली कैसी होगी ?, यह प्रश्‍न कुछ लोग पूछते हैं । उसका उत्तर है, जिस प्रकार नालंदा और तक्षशिला विश्‍वविद्यालयों में १४ विद्याएं और ६४ कलाएं सिखाए जाते थे,उसी प्रकार की शिक्षा दी जाएगी; परंतु उनमें इस माध्यम से ईश्‍वरप्राप्ति कैसे करनी है ?, यह भी सिखाया जाएगा ।

हिन्दू राष्ट्र में सब कानून धर्म पर आधारित होंगे । अतः उनमें संशोधन की आवश्यकता नहीं होगी । इनके पालन से समाज अपराध-मुक्त होकर साधनारत होगा !

राजनीतिक क्षेत्र के कार्यकर्ताआें के विषय माया के होने से उनका लेखन लंबी अवधि तक नहीं टिकता । इसके विपरीत आध्यात्मिक क्षेत्र का लेखन लंबे समय अथवा युगों-युगों तक टिकता है, उदा. वेद, उपनिषद, पुराण इत्यादि ।

जो हिन्दू धर्म पर टीका-टिप्पणी करते हैं,उनके जैसा अज्ञानी इस जगत में कोई नहीं हैं !

युग-युग से संस्कृत का व्याकरण वही है । उसमें किसी ने कुछ भी परिवर्तन नहीं किया । इसका कारण यह कि वह पहले से ही परिपूर्ण है । इसके विपरीत जगत की सभी भाषाआें का व्याकरण परिवर्तित होता रहता है ।

प्रवचन, व्याख्यान और वर्तमान विषयों पर ग्रंथ-लेखन में जिनका जीवन जाता है,उनके नाम और कार्य उनके जीवित होने तक रहते हैं । इसके विपरीत शोध करनेवालों के नाम और कार्य आनेवाली अनेक पीढियों को ज्ञात होते हैं ।

निर्गुण ईश्‍वरीय तत्त्व से एकरूप होने पर ही खरी शांति अनुभव कर सकते हैं। ऐसा होने पर नेता जनता को साधना न सिखाकर, ऊपरी तौर के मानसिक स्तर के उपाय करते हैं, उदा. जनता की अडचनें दूर करने हेतु ऊपरी तौर के प्रयत्न करना, मानसिक चिकित्सालय स्थापित करना आदि । -(परात्पर गुरु)डॉ.आठवले