‘वर्तमान समय में छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित फिल्म ‘छावा’ सर्वत्र प्रदर्शित हुई है । इस विषय में कुछ लोगों के मन में निम्न प्रश्न उठ रहे हैं, ‘अंतकाल में छत्रपति संभाजी महाराज को इतनी तीव्र शारीरिक यातनाएं क्यों सहन करनी पडी ? इससे उन्हें कौनसा आध्यात्मिक लाभ हुआ ? शत्रुओं के चंगुल से छूटने हेतु उन्हें ईश्वर की सहायता क्यों नहीं मिली ?’ इस विषय में ईश्वर की कृपा से सूक्ष्म से मुझे प्राप्त ज्ञान आगे दिया है –
१. छत्रपति संभाजी महाराज को शत्रु के द्वारा तीव्र शारीरिक यातनाएं भोगनी पडीं, उसका आध्यात्मिक कारण : प्रजा के द्वारा घटित अच्छे अथवा बुरे कर्माें के कारण राज्य का प्रारब्ध निर्माण होता है । प्रजा जब साधना एवं धर्म से दूर चली जाती है, तब उसका कुछ पाप उस राज्य के राजा को भोगना पडता है । ‘छत्रपति संभाजी महाराज को अंतकाल में स्वराज एवं धर्म के लिए तीव्र शारीरिक यातनाएं भोगनी पडीं’, यह उनका समष्टि प्रारब्ध था ।

२. छत्रपति संभाजी महाराज ने धर्म के लिए जो सर्वस्व का त्याग किया, उससे उन्हें मिला आध्यात्मिक लाभ : छत्रपति संभाजी महाराज के शत्रु के चंगुल में फंसने से पूर्व उनका आध्यात्मिक स्तर ५१ प्रतिशत था । शत्रु के चंगुल में फंसने पर छत्रपति संभाजी महाराज ने शत्रु के द्वारा अनेक दिन तक बहुत शारीरिक यातनाएं सहन की । उन्होंने ‘स्वराज एवं धर्म’ के लिए यह त्याग किया था । इस त्याग के कारण कुछ ही दिनों में उनकी आध्यात्मिक प्रगति हुई । उनकी मृत्यु से पूर्व उनका आध्यात्मिक स्तर ५९ प्रतिशत हुआ । (साधक का आध्यात्मिक स्तर १ वर्ष में औसतन १-२ प्रतिशत बढता है ।) मृत्यु के उपरांत उन्हें सद्गति प्राप्त हुई ।
३. राष्ट्र एवं धर्म का कार्य करने के लिए ईश्वरी अधिष्ठान आवश्यक होना : राष्ट्र एवं धर्म का कार्य करते समय अनेक स्थूल एवं सूक्ष्म बाधाएं आती हैं । उससे बाहर निकलने हेतु साधक की स्वयं की साधना तथा गुरुकृपा होना आवश्यक होता है । उसके कारण साधक सुरक्षितरूप से राष्ट्र एवं धर्म का कार्य कर सकता है तथा उसमें उसे सफलता मिलती है ।’
– श्री. राम होनप (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (६.३.२०२५)