अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्‍ड ट्रम्‍प तथा भारत के हितसंबंध

अमेरिका के ४७ वें राष्ट्रपति के रूप में डॉनल्‍ड ट्रम्‍प ने शपथ ली तथा तब से अमेरिका में ‘ट्रम्‍प-२’ के पर्व का आरंभ हुआ । उनका यह दूसरा कार्यकाल भारत के लिए कैसा रहेगा, इसके प्रति बहुत उत्सुकता है । ‘विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र’ अमेरिका तथा ‘विश्व का सबसे बडा लोकतंत्र’ भारत, इन दोनों देशों के मध्य शीतयुद्ध के समय अनेक विषयों पर तनावपूर्ण संबंध थे । इन दोनों देशों का विश्व की राजनीति की ओर देखने का दृष्टिकोण भिन्‍न था । अमेरिका एवं भारत के आपस में हितसंबंधों की दृष्टि से इस लेख में विवरण दिया गया है ।

लेखक : डॉ. शैलेंद्र देवळाणकर, विदेश नीति के विश्‍लेषक, पुणे

१. अमेरिका का भारत की ओर देखने के दृष्टिकोण में परिवर्तन आने के तीन कारण थे ।

भारत आदर्शवादी था, जबकि अमेरिका इन हितसंबंधों के दृष्टिकोण से तथा यथार्थवादी दृष्टिकोण से विश्व की राजनीति की ओर देखता था । उसके कारण संबंधों में तनाव था; परंतु पिछले एक दशक में अमेरिका के इस दृष्टिकोण में परिवर्तन आया । भारत में हुईं प्रमुख ३ गतिविधियां इस परिवर्तन का कारण हैं ।

अ. इनमें से एक है ‘आधार क्रांति’ ! वर्तमान में आधारकार्ड के माध्यम से भारत के ९० प्रतिशत नागरिकों की पहचान प्रमाणित हुई है ।

आ. दूसरी है ‘दूरसंचार क्रांति !’ इंटरनेट के ‘५-जी’ प्रौद्योगिकी का उपयोग करते-करते भारत ने अब ‘६-जी’ प्रौद्योगिकी का ‘ब्‍ल्‍यू प्रिंट’ (प्रारूप) तैयार किया है ।

इ. तीसरी क्रांति है ‘संसाधनों के विकास की क्रांति !’ यह क्रांति मूलभूत सुविधाओं के क्षेत्र के विकास से अवतरित हुई है । पिछले ९ वर्षाें में भारत में सडकें, रेलमार्ग, जलमार्ग, जल यातायात, हवाई यातायात, हवाई अड्डे, बंदरगाह तथा राष्ट्रीय महामार्ग, इन मूलभूत क्षेत्रों में प्रचंड विकास हुआ है । इससे भारत में ‘लॉजिस्टिक कॉस्‍ट’ (माल भाडे का व्यय) बहुत ही अल्प होनेवाला है  ।

२. अमेरिका द्वारा भारत के साथ किए हुए महत्त्वपूर्ण तथा संवेदनशील समझौते

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्‍ड ट्रम्‍प

पिछले कुछ समय से भारत-अमेरिका के संबंध एक प्रकार से खरीदार तथा विक्रेता, इस प्रकार के थे; परंतु भारत-अमेरिका के मध्य हुए विभिन्न समझौतों को देखा जाए, तो भारत जैसा देश अमेरिका के साथ होना उसके के लिए अनिवार्य हो गया है, यह स्पष्ट होता है । उसके कारण ही भारत-अमेरिका के मध्य केवल आर्थिक निवेश के ही समझौते नहीं हुए हैं, अपितु इसमें अद्यत संवेदनशील प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण से संबंधित समझौतों का भी समावेश है । दो वर्ष पूर्व अमेरिका की सुरक्षा परिषद तथा भारत की सुरक्षा परिषद के मध्य एक महत्त्वपूर्ण समझौता हुआ, उसमें ‘क्रिटिकल इमर्जिंग टेक्नोलॉजी’ में (महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी में) भारत एवं अमेरिका सहउत्पादन करेंगे’, यह सुनिश्चित किया गया । ‘मायक्रोचिप्‍स’ से लेकर अंतरिक्ष शोध कार्य तथा रक्षा प्रौद्योगिकी का भी इसमें समावेश होगा । अमेरिका ने इससे पूर्व किसी भी देश के साथ इस प्रकार के समझौते नहीं किए हैं ।

३. अमेरिका की दृष्टि से भारत का अनन्‍यसाधारण महत्त्व

पिछले दो दशकों से अमेरिका ने चीन के पर्याय के रूप में भारत का विचार करना आरंभ किया था । अमेरिका चाहता है कि ‘भारत हमारा ‘सहयोगी भागीदार बने’; परंतु इस विषय में भारत की भूमिका बहुत ही स्पष्ट है । भारत अमेरिका से घनिष्‍ठ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करेगा; परंतु ‘सहयोगी भागीदार’ नहीं बनेगा । यह बहुत ही संवेदनशील सूत्र है । अमेरिका के इंग्लैंड एवं जापान से जैसे संबंध हैं, वैसे संबंध अमेरिका को भारत के साथ स्थापित करने हैं । इंग्लैंड एवं जापान अमेरिका के ‘सहयोगी भागीदार’ हैं ।

डॉ. शैलेंद्र देवळाणकर

प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष २०१४ से ही अमेरिका के साथ संबंधों की ओर विशेष ध्यान दिया है, ऐसा दिखाई देता है । वर्तमान में ये संबंध इतने घनिष्ठ हो गए हैं कि ४ वर्ष पूर्व लद्दाख में चीन की शरारत के उपरांत गलवान का संघर्ष उत्पन्न हुआ था । उस समय अमेरिका के तत्कालीन विदेश मंत्री ने एक महत्त्वपूर्ण वक्तव्य दिया था कि ‘चीन ने यदि भारत पर आक्रमण किया, तो उसे अमेरिका पर किया गया आक्रमण माना जाएगा ।’ अमेरिका को उसके दीर्घकालीन उद्देश्यों की तथा हितसंबंधों की पूर्ति के लिए भारत की आवश्यकता है । वर्तमान में अमेरिका के हितसंबंधों के लिए सबसे बडा संकट है ‘चीन’ ! इस दृष्टि से ट्रम्‍प के पहले कार्यकाल को देखा जाए, तो विश्व की राजनीति में उनकी प्रतिमा ‘चीनविरोधी’ ही रही; परंतु जो बाइडेन के कार्यकाल में रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन को अरबों डॉलर की सहायता, हथियारों की आपूर्ति, रूस पर आर्थिक प्रतिबंध; इन सबके कारण अमेरिका का ध्यान अन्यत्र मुडा; परंतु ट्रम्‍प का प्रमुख लक्ष्य ‘चीन’ है । इसके परिणामस्वरूप कदाचित आनेवाले समय में रूस-यूक्रेन युद्ध का समाधान निकल सकता है ।

रूस एवं चीन अमेरिका के २ प्रमुख प्रतिस्‍पर्धी हैं । वर्तमान समय में रूस यूक्रेन के साथ युद्ध में व्यस्त है । जब तक रूस संपूर्णत: आर्थिक रूप से दुर्बल नहीं होता, तब तक अमेरिका इस युद्ध को जारी रखेगा; परंतु चीन बहुत ही कडा प्रतिस्पर्धी है । अमेरिका के सामर्थ्य के जो पारंपरिक क्षेत्र हैं, उन सबको हथियाने का चीन प्रयास कर रहा है । उसके कारण एशिया उपमहाद्वीप की रक्षा तथा व्यापारिक हितसंबंधों पर संकट मंडरा रहा है । इसका सामना कैसे किया जाए, यह अमेरिका के लिए बडी समस्या है । उसके लिए अमेरिका को भारत के ‘ऑपरेशनल कोलैबोरेशन की (कार्यरत सहयोगी की) आवश्यकता है । ट्रम्प के कार्यकाल में ये प्रयास बढ सकते हैं । कोरोना महामारी के उपरांत के काल में अथवा उसके पहले से ही अमेरिका एवं चीन के मध्य संबंध तनावपूर्ण बन गए हैं । इसलिए अमेरिका चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के प्रयास में है तथा इसके लिए विकल्प के रूप में अमेरिका भारत को प्रधानता दे रहा है । विश्व आपूर्ति शृंखला में भारत का स्थान बडा हो तथा उसके कारण भारत चीन का सक्षम विकल्प बने; इसके लिए अमेरिका प्रयासरत है । अर्थात उसमें अमेरिका का हित समाया हुआ है; क्योंकि भारत का आर्थिक विकास अमेरिका के लिए पूरक, जबकि चीन का आर्थिक विकास उसके लिए हानिकारक है ।

४. भारत एवं अमेरिका के मध्य महत्त्वपूर्ण निर्णय

इसके कारण इस वर्ष की ‘स्टेट विजिट’ में (मेजबान देश के प्रमुख के द्वारा आमंत्रित किया जाना) भारत एवं अमेरिका के मध्य महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए । उनमें से –

अ. पहला निर्णय यह है कि अमेरिका में ‘जेट इंजिन’ बनानेवाले प्रतिष्ठान ‘जनरल इलेक्ट्रिकल्‍स’ ने भारत के प्रतिष्ठान ‘हिन्दुस्थान एरोनॉटिकल्स’ के साथ समझौता किया है । उसके कारण भविष्य में भारत में जेट इंजिन बनाए जाएंगे ।

आ. दूसरा निर्णय यह है कि भारत अमेरिका से ‘प्रिडेटर’ जाति के ३० अति आधुनिक ‘ड्रोन्स’ लेगा । उनमें से कुछ ड्रोन्स का उत्पादन भारत में होगा । उसके लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी का भारत को हस्तांतरण किया जाएगा ।

इ. संवेदनशील प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के लिए अमेरिका द्वारा दर्शाई गई तैयारी महत्त्वपूर्ण है । इसका कारण यह है कि अमेरिका को भारत से बडी अपेक्षाएं हैं । विश्व आपूर्ति शृंखला में चीन का विकल्प तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ‘ऑपरेशनल कोलैबोरेशन’ के लिए भारत महत्त्वपूर्ण है । वर्तमान में अमेरिका भारत को केवल हथियार ही नहीं, अपितु उसकी प्रौद्योगिकी भी दे रहा है । सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि ‘जेट इंजिन’ तथा ‘प्रिडेटर ड्रोन’ का उत्पादन अब भारत में होगा । भविष्य में अमेरिका इन दोनों की प्रौद्योगिकी भारत को हस्तांतरण करेगा ।

५. डॉनल्‍ड ट्रम्‍प का दूसरा कार्यकाल आर्थिक एवं व्यापारिक दृष्टिकोण से कैसा रहेगा ?

डॉनल्‍ड ट्रम्‍प के दूसरे कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में आर्थिक एवं व्यापारिक दृष्टिकोण से कुछ समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं । राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार में ट्रम्‍प ने यह आश्वासन दिया था कि यदि वे सत्ता में आएंगे, तो आयात शुल्क १० प्रतिशत से बढाया जाएगा । इससे भारत से अमेरिका को जो निर्यात होता है, वह प्रभावित हो सकता है । दूसरी बात यह कि ट्रम्प ने यह मांग की है कि अमेरिकी वस्तुएं भारतीय बाजार में बेची जाएं; इसके लिए भारत आयातशुल्क घटाए । उसके लिए ट्रम्‍प आग्रही रहेंगे । इसके अतिरिक्त भारत-अमेरिका व्‍यापार संबंधों में वाणिज्यिक घाटा बहुत है तथा वह भारत के लिए अनुकूल है । उसे अल्प करने की दृष्टि से ट्रम्‍प की ओर से आग्रही नीति अपनाने की तथा सौदेबाजी किए जाने की संभावना है ।

(साभार : डॉ. शैलेंद्र देवळाणकर का फेसबुक तथा दैनिक ‘महाराष्‍ट्र टाइम्‍स’का जालस्थल)