Madras HC On Caste Claim On Temple : कोई भी जाति मंदिर के स्वामित्व का दावा नहीं कर सकती ! – मद्रास उच्च न्यायालय

चेन्नई (तमिलनाडु) – कोई भी जाति मंदिर के स्वामित्व का दावा नहीं कर सकती और मंदिर प्रशासन का गठन जातीय आधार पर करना, भारतीय संविधान के अनुसार संरक्षित धार्मिक प्रथा नहीं है । यह बात मद्रास उच्च न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई के समय कही । अरुलमिघू पोंकलियाम्मन मंदिर का प्रशासन अरुलमिघू मरीअम्मन, अंगलाम्मन और पेरुमल इन मंदिरों के समूह से अलग रखने की परंपरा को जारी रखने के लिए ‘हिन्दू धार्मिक और धर्मार्थ दान विभाग’ को निर्देश देने की मांग से संबंधित याचिका को निरस्त करते हुए न्यायालय ने यह बात कही ।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अन्य ३ मंदिर अनेक जाति के लोगों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं । परंतु, पोंकलियाम्मन मंदिर की देखरेख ऐतिहासिक दृष्टि से केवल उन्हीं के जाति के सदस्यों द्वारा की जाती थी । न्यायालय ने याचिकाकर्ता के तर्क से तीव्र असहमति जताते हुए कहा कि ऐसे दावे जातिभेद को बढ़ावा देते हैं और जाति विहीन समाज के संवैधानिक ध्येय के विरुद्ध हैं । याचिकाकर्ता की विनती दूसरों के प्रति जातिभेद और द्वेष की भावना उत्पन्न करती है ।

न्यायमूर्ति भरत चक्रवर्ती ने कहा,

१. जाति के आधार पर अपनी पहचान दिखाने वाले सामाजिक वर्गों को पारंपरिक पूजा पद्धति जारी रखने का अधिकार है; परंतु जाति ‘संरक्षित धार्मिक संप्रदाय’ नहीं है ।

२. जातिगत भेदभाव में विश्वास करने वाले लोग ‘धार्मिक संप्रदाय’ की आड में दूसरी जातियों के प्रति अपना द्वेष और असमानता छुपाने का प्रयत्न करते हैं । वे अलगाववादी प्रवृत्तियों को पोषित करने और समाज में अशांति उत्पन्न करने के लिए लिए मंदिरो को ‘उपजाऊ भूमि’ के रूप में देखते हैं ।

३. अनेक सार्वजनिक मंदिर एक विशिष्ट ‘जाति’ के हैं, ऐसा दिखाने का प्रयत्न किया जाता है । परंतु, भारतीय संविधान के अनुच्छेद २५ और २६ में केवल आवश्यक धार्मिक प्रथाओं और धार्मिक संप्रदायों के अधिकारों का ही संरक्षण किया है ।

४. मंदिर सार्वजनिक स्थल होते हैं । इसलिए, सब श्रद्धालु उनकी पूजा और प्रबंधन कर सकते हैं ।