Uniform Civil Code In Uttarakhand : उत्तराखंड राज्य में समान नागरिकता कानून लागू !

देहरादून (उत्तराखंड) – उत्तराखंड में २७ जनवरी से समान नागरिकता कानून लागू किया गया है । राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यह घोषणा की है । इस कानून से संबंधित जालस्थल का उद्घाटन मुख्यमंत्री ने किया । ucc.uk.gov.in यह जालस्थल का पता है । यह कानून लागू करनेवाला उत्तराखंड स्वतंत्र भारत का प्रथम राज्य है । इससे पूर्व केवल गोवा में यह कानून था; परंतु वह पुर्तगालियों के समय से लागू है ।

मुख्यमंत्री धामी ने कहा ‘यह बहुत भावनात्मक क्षण है । ३० वर्षों पूर्व राज्य की जनता को दिया हुआ वचन हमने पूर्ण किया है । हमारे दल ने इस हेतु कठोर परिश्रम किए । समान नागरिकता कानून प्रवर्तन से समाज में एकरूपता आएगी । राज्य के सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार एवं दायित्व होगा ।’

समान नागरिकता कानून के कुछ नियम !

१. बेटा एवं बेटी दोनों को संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा ।

२. यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो समान नागरिकता कानून उस व्यक्ति की संपत्ति को जीवनसाथी एवं बच्चों में समान बांटने का अधिकार देता है । साथ ही उस व्यक्ति के अभिभावकों को भी संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा । पूर्व के कानून में यह अधिकार केवल मृत व्यक्ति की माता को ही उपलब्ध था ।

३. पति एवं पत्नी का विवाहविच्छेद तभी सम्मत किया जाएगा, जब दोनों के पास समान कारण होंगे । यदि एक ही पक्ष कारण रखता है, तो विवाहविच्छेद नहीं होगा । ‘हलाला’ (मुसलमान महिला को तलाक देने के पश्चात यदि उसे पुनः उसी व्यक्ति से विवाह करना हो, तो उससे पूर्व स्त्री को अन्य व्यक्ति से शारीरिक संबंध रखना पडता है ।) जैसी पद्धतियां बंद होंगी । महिला को पुनर्विवाह करने हेतु किसी भी तरह के बंधन पर प्रतिबंध होगा ।

४. यदि उत्तराखंड में निवासी युगल ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ में (विवाह किए बिना पुरुष एवं स्त्री साथ रहते हैं) रहते होंगे, तो उनको पंजीकरण करना पडेगा । यह स्वयं घोषणा करने जैसा होगा, तब भी अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को इस नियम में छूट दी गई है ।

५. ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ में यदि संतान का जन्म होता है, तो उसका दायित्व ‘लिव-इन’ युगल का होगा । उन दोनों को उस संतान को नाम देना पडेगा । इसलिए राज्य के प्रत्येक बालक को पहचान मिलेगी । यह युगल, पंजीकरण की रसीद देकर ही घर अथवा वसतीगृह भाडे से ले सकेंगे अथवा ‘पेईंग गेस्ट’ के रूप में रह सकेंगे ।

६. लिव-इन रिलेशनशिप में रहेनेवालों को विवाहविच्छेद का पंजीकरण भी अनिवार्य होगा । पंजीकरण न करने से ६ माह कारावास अथवा २५ सहस्र रुपए दंड अथवा दोनों दंड दिए जाएंगे ।

७. सभी धार्मिक समुदायों में विवाह, विवाहविच्छेद, निर्वाह-निधि एवं विरासत के लिए समान कानून ।

८. प्रत्येक युगल को विवाहविच्छेद एवं विवाह पंजीकरण करना अनिवार्य होगा । पंजीकरण न किया, तो अधिक से अधिक २५ सहस्र रुपयों का दंड एवं सरकारी सुविधाओं से वंचित रखा जाएगा ।

९. विवाह हेतु न्यूनतम आयु लडके के लिए २१ वर्ष, तो लडकी के लिए १८ वर्ष होगी ।

१०. यदि कोई सम्मति के बिना धर्मांतरण करता है, तो अन्य व्यक्ति को उस व्यक्ति से विवाहविच्छेद करने का एवं निर्वाह निधि प्राप्त करने का अधिकार होगा ।

११. पति-पत्नी दोनों के जीवित होते हुए दुसरा विवाह करना पूर्णतः निषिद्ध है । पति-पत्नी में विवाहविच्छेद अथवा घरेलू विवाद के समय ५ वर्ष आयु तक के बच्चे का नियंत्रण उसकी माता के पास ही रहेगा ।

१२. कानूनी अथवा अवैध बच्चों में कोई भेदभाव नहीं होगा । गैर-कानूनी बच्चे भी युगल के जैविक संतान माने जाएंगे । सरोगेट माता (अन्य व्यक्ति के लिए अथवा दंपति के लिए बच्चे को जन्म देनेवाली स्त्री । इसके अंतर्गत सरोगेट माता के गर्भाशय में भ्रूण रखा जाता है ।) एवं सहायक पुनरुत्पादक तंत्रज्ञान द्वारा जन्म हुई दत्तक संतान जैविक संतान होंगे ।

संपादकीय भूमिका 

अब अन्य भाजपशासित राज्यों में ऐसा कानून करने की अपेक्षा केंद्र सरकार को ही यह कानून लागू करना चाहिए, ऐसी हिन्दुओं की अपेक्षा है !