२० साल पहले के आश्वासन भी शामिल हैं
– श्री. प्रीतम नाचनकर , नागपुर
नागपुर, १५ दिसंबर (न्यूज़) – महाराष्ट्र में बहुमत से चुनी गई महायुति सरकार के नेतृत्व में राज्य में बनी १५ वीं विधानसभा पर ३ हजार २३३ लंबित वादों का बोझ है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इन आश्वासनों में ४-५ साल नहीं, अपितु २० साल से लंबित आश्वासन शामिल हैं । दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के प्रतिनिधि श्री.प्रीतम नाचनकर को यह जानकारी ‘सूचना के अधिकार’ के तहत उपलब्ध करायी गयी है । प्रशासन देरी कर रहा है क्योंकि ये वादे पूरे होने पर राजनीतिक नेताओं की असली प्रकृति सामने आ जाएगी और ये वादे राजनीतिक उद्देश्यों जैसे विभिन्न कारणों से लंबित हैं। इनमें से कुछ वादे तो समाप्त भी हो चुके हैं; लेकिन समय पर नीतिगत निर्णय न लेने और इच्छाशक्ति की कमी के कारण पिछले कुछ वर्षों में लंबित आश्वासनों की संख्या बढ़ती जा रही है। सत्ता में मौजूद सभी राजनीतिक दलों के ये आश्वासन लंबित हैं। मांग की जा रही है कि ‘विधानसभा में नवनिर्वाचित प्रतिनिधि और नई सरकार इस पर गंभीरता से विचार करें और लंबित वादों को पूरा करने के संबंध में रणनीतिक निर्णय लें ।’
राज्य के २८८ निर्वाचन क्षेत्रों से चुने गये जन प्रतिनिधि विधानसभा में जनता के सवाल उठाते हैं । विधानसभा में जन प्रतिनिधियों ने जनता से जुड़े विभिन्न मुद्दे जैसे अस्पतालों में मरीजों की कमी, स्कूलों में बुनियादी ढांचे की कमी, फर्जी (झूठे) दिव्यांग (विकलांग) प्रमाण पत्र आदि को उठाया और संबंधित विभागों के मंत्रियों की ओर से सरकार उन पर कार्यवाही का आश्वासन देता है । विधानमंडल के सदन में मंत्री द्वारा आश्वासन दिये जाने के बाद ९० दिनों के भीतर इसे पूरा किया जाना बाध्य है ; लेकिन लंबित आश्वासनों की संख्या को देखते हुए न तो सरकार और न ही विपक्ष इसे लेकर गंभीर दिख रहा है । यदि न तो सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष इस पर गंभीर है, तो कम से कम विधानसभा अध्यक्ष और विधान परिषद के अध्यक्ष से यह अपेक्षा की जाती है कि वे वर्षों से लंबित वादों को पूरा करने के लिए समय सीमा निर्धारित करके इस मुद्दे को सुलझाएं; लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है । ये सभी मामले विधायिका की कार्यप्रणाली पर असर डालते हैं यानी उसकी कार्यकुशलता पर सवाल खड़े करते हैं ।
कुछ महत्वपूर्ण विभागों के लंबित आश्वासन !
विधान परिषद में १ हजार ६७२ आश्वासन लंबित है !
विधानसभा समेत विधान परिषद के ३३ प्रभागों के १ लाख ६७२ आश्वासन लंबित हैं । इसमें स्कूल शिक्षा के २०८ , शहरी विकास के १९५ , गृह के ११७ , राहत एवं पुनर्वास के ११३ , चिकित्सा शिक्षा के ७५ , राजस्व के ६९ और अन्य विभागों के ८९५ आश्वासन लंबित हैं ।
विधानमंडल सत्र का महत्व !
सत्ता स्थापित होने के बाद सत्ताधारी दल राज्य हित में अनेक निर्णय लेता है। कैबिनेट बैठक में होते हैं ये निर्णय ; यानी ये निर्णय शासकों द्वारा लिए जाते हैं । इसमें विपक्षी दल का कोई सीधा संबंध नहीं है । हालाँकि , विधानसभा में गैर-निर्वाचित यानी विपक्ष को भी सत्ता पक्ष के कामकाज पर टिप्पणी करने का संवैधानिक अधिकार मिलता है। इसके लिए विपक्ष के नेता को चुना जाता है और उसे मंत्री पद का दर्जा दिया जाता है, जिसका अर्थ है कि विधायिका की कार्यप्रणाली लोकतंत्र को मजबूत रखने में अहम भूमिका निभाती है। इसलिए, सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वे सदन में दिए गए आश्वासनों के प्रति संवेदनशील रहें, यह मानते हुए कि इस बोर्ड की स्थिति बनी रहे, यानी लोकतंत्र कायम रहे।
लोगों के अधिकारों का हनन !यदि किसी को लगता है कि ‘इस रिपोर्ट ने विधानमंडल का अपमान किया है’ तो हम विधानमंडल के बारे में उनकी भावनाओं का सम्मान करते हैं; लेकिन हम विनम्रतापूर्वक निवेदन करते हैं कि यदि लंबित प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए सम्मान की यह भावना दिखाई जाती है तो यह वास्तव में समाज और लोकतंत्र के हित में है। सरकार विधानमंडल के सत्र पर करोड़ों रुपये खर्च करती है । सम्मेलन स्थल पर राज्य के सभी विभागों के प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहते है । विधानसभा में वादों का लंबित रहना और उन्हें पूरा करना एक प्रशासनिक प्रक्रिया है । यह स्वाभाविक है कि इसमें कुछ आश्वासन लंबीत रहते है ; लेकिन आश्वासनों का वर्षों तक अटके रहना और जब तक उनकी संख्या सहस्राब्दी से ऊपर न हो जाए, तब तक उन पर नीतिगत निर्णय न लेना विधानमंडल के कामकाज पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न है। इसलिए सरकार को इस संबंध में रणनीतिक निर्णय लेने की जरूरत है । (विधानमंडल में किये गये वादों को वर्षों तक लंबित रखना विधानमंडल का अपमान है ! – संपादक) |
जनवरी तक अधिकारियों की बैठक कर लंबित मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करेंगे ! – डॉ. नीलम गोरे, उपाध्यक्ष, विधान परिषद
दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के प्रतिनिधि ने जब विधान परिषद में लंबित आश्वासनों के बारे में पूछा तो उपसभापति डॉ. नीलम गोरे ने कहा, मैं विनम्रतापूर्वक स्वीकार करती हूं कि आश्वासन लंबित है। आश्वासन समितियों की बैठक न होने, मुद्दों के लटके रहने आदि के कारण आश्वासन लंबित रह जाते हैं। कुछ विधायक सदन में प्रश्न उठाते हैं; लेकिन ऐसा भी होता है कि वे चीजों की स्थिति का निर्धारण नहीं करते हैं। हालांकि, बड़ी संख्या में आश्वासन लंबित हैं,यह वास्तविक स्थिति है । हम आश्वासन के मुद्दे को सुलझाने का प्रयास करेंगे । जनवरी २०२५ तक हम संबंधित अधिकारियों से मिलकर लंबित प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का प्रयास करेंगे।