(टिप्पणी : ‘डीप स्टेट’ अर्थात एक छुपी यंत्रणा जो किसी देश को चलानेवालों पर (वहां की सरकार) पर प्रभाव डालकर, स्वयं को अपेक्षित ऐसे नीति-नियम कार्यान्वित करने के लिए सरकार को विवश करती है । संक्षेप में, वहां की सरकार देश चलाती है ऐसा दिखता है; परंतु उससे हित इस यंत्रणा का होता है, न कि उस देश का !)
‘पूरे विश्व पर अपनी प्रभुता होनी चाहिए’, इस महत्त्वाकांक्षा से ग्रस्त कुछ निरंकुशतावादी शक्तियां विश्व में कार्यरत हैं । अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपनी इच्छा के अनुसार कभी खुले बलप्रयोग से, तो कभी आक्रमणों के द्वारा, तो कभी गुप्त षड्यंत्रों के द्वारा निरंतर भूराजनीतिक परिवर्तन कराना ही इन निरंकुशतावादी शक्तियों की कार्यशैली होती हैं । ये शक्तियां अर्थात,
अ. अमेरिका का वर्चस्व संजोनेवाली ‘एंग्लो-सैक्सन डीप स्टेट’ ।
आ. एक सांस्कृतिक मार्क्सवाद की विचारधारा, जो संपूर्ण मानव सभ्यता को नष्ट करने तथा उसके स्थान पर साम्यवादी विचार प्रणाली स्थापित करने हेतु प्रतिबद्ध है, विश्व की उभरती महाशक्ति चीन बहुत ही चतुराई से उसका उपयोग कर रही है ।
इ. ‘संपूर्ण विश्व ईसाई धर्म के प्रभाव में होना चाहिए’, इसके लिए सभी प्रकार के प्रयास करनेवाले चर्च ।
ई. ‘संपूर्ण विश्व पर इस्लाम का ध्वज फहराने हेतु आतुर जिहादी इस्लाम !’
ये चारों शक्तियां कभी एक-दूसरे के सहयोग से, तो कभी एक-दूसरे के विरुद्ध अपना ‘एजेंडा’ (कार्ययोजना) आगे बढाती रहती हैं । उसके कारण अंतरराष्ट्रीय कूटनीति एक बहुस्तरीय तथा जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कौन किसके साथ है और कौन विरोधी है; यह वास्तविकता निरंतर परिवर्तित होती रहती है । इसे समझ पाना कठिन होता है; परंतु कुछ विषयों में उनके ‘एजेंडे’ इतने मेल खाते हैं कि वे आपसी समन्वय से कार्य करने लगते हैं । ‘भारत के टुकडे करना’ भी ऐसा ही एक ‘एजेंडा’ है, जो इन सभी का लक्ष्य है ।
१. ईसाईयों तथा साम्यवादियों द्वारा आरंभ की गई युद्ध की नई नीति
चीनी दार्शनिक सुन त्जू ने २ सहस्र वर्ष पूर्व ही यह बता रखा है कि युद्धभूमि पर एक-दूसरे के सामने हथियारों से युद्ध करने की नीति अब पुरानी हो चुकी है । वास्तविक युद्ध वह होता है, जिसमें शत्रु के प्रदेश के ही लोगों को साथ लेकर उसे भीतर से खोखला करते हुए इतना शक्तिहीन बना दिया जाए, जिससे वह स्वयं ही गिर जाए । इस लेख में उल्लेखित सभी निरंकुशतावादी शक्तियों को इस नीति का महत्त्व ध्यान में आया है तथा उन्होंने उसका उपयोग करना आरंभ कर दिया है । उसके लिए उन्होंने अपने वैश्विक वर्चस्व के लक्ष्यों पर तथा सद्गुणों का संकेत करनेवाले (वर्च्यु सिग्नलिंग) आकर्षक मुखौटे चढाकर उसके पीछे से अपनी विध्वंसक गतिविधियां आरंभ रखी हैं । सर्वप्रथम ईसाई चर्च को इस तंत्र का महत्त्व ध्यान में आया ! उसके कारण उन्होंने अपने धर्मप्रसार का लक्ष्य रख दीनदलितों को शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सेवाएं देने का मुखौटा चढा लिया । साम्वयादियों ने ‘बंदूक की नली से आनेवाली रक्तरंजित क्रांति’ की भूमिका छोडकर संस्कृति को बल देनेवाली संस्थाओं को भीतर से दीमक की भांति खोखला करनेवाली सांस्कृतिक मार्क्सवाद की संकल्पना अपनाई ।
२. ‘डीप स्टेट’ की योजना तथा उसके अनुरूप कराए गए घातक सत्ता परिवर्तन
अमेरिका का स्वार्थ संजोनेवाले ‘डीप स्टेट’ को इस तंत्र का महत्त्व थोडे विलंब से समझ में आया; परंतु उसके तुरंत उपरांत उन्होंने अत्यंत प्रभावीरूप से उसका उपयोग करना आरंभ कर दिया । उसके पूर्व ‘सीआईए’ (अमेरिका का गुप्तचर संगठन) जैसे सर्वशक्तिमान गुप्तचर संगठन के द्वारा विश्व में अपनी इच्छा के अनुसार उथल-पुथल कराने का खेल खेला जाता था; परंतु इस भूमिगत पद्धति से, अर्थात गुप्त पद्धति से तथा आवश्यकता पडने पर हिंसा का उपयोग कर की जानेवाली गतिविधियों के कारण ‘उदारवादी लोकतंत्र प्रणेता’, अमेरिका की प्रतिमा मलिन होती थी । इसे ध्यान में लेकर अमेरिका ने ‘नेशनल एंडोमेंट फॉर डेमोक्रेसी’ (एन.ई.पी.), जिसके पीछे अमेरिकी सरकार तथा ‘सीआईए’ की संपूर्ण शक्ति खडी है; परंतु सार्वजनिक रूप से निजी मानी जानेवाली संस्था खडी की । ‘पूरे विश्व में लोकतंत्र का समर्थन करना’, इस आकर्षक मुखौटे के पीछे ‘उनकी दृष्टि में चुभनेवाली विभिन्न देश की सरकारों का तख्ता पलटना’ ही इस संस्था का प्रमुख कार्य होता है । इसके लिए जिनपर उनका ध्यान होता है, उस देश में शिक्षा, पर्यावरण, लोकतंत्र की स्थापना जैसे आकर्षक विषय लेकर उसके आधार पर सरकार के विरुद्ध जनमत तैयार करना, आंदोलन खडे करना, समाज में विभाजन कर संघर्ष भडकाना, अराजकता जैसी स्थिति उत्पन्न कर सरकार का तख्ता पलटने जैसी नीतियों से कार्य करते हैं । उस देश में यदि पहले से लोकतंत्र का अस्तित्व हो, तो ऐसी स्थिति में लोकतंत्र दुर्बल करने का वातावरण बनाया जाता है । इन योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए उन्होंने प्रचंड आर्थिक शक्तिवाले फाउंडेशन्स, माध्यम, कार्यकर्ता एवं स्वयंसेवी संस्थाओं का एक प्रचंड विश्वव्यापी जाल बना रखा है । उनके द्वारा चलाए जानेवाले आंदोलनों के पीछे इसी जाल की आर्थिक शक्ति तथा प्रचारतंत्र पर उनकी प्रभुता निश्चित ही दिखाई देती है ।
‘डीप स्टेट’ की योजना के अनुसार ‘भारत के चुनावों में वर्तमान सरकार को सत्ता से बाहर करने में उन्हें सफलता नहीं मिली’, ऐसा कहे जाने पर योगेंद्र यादव का ‘इसके आगे संविधान की रक्षा चुनावों के कारण नहीं; अपितु जन-आंदोलनों के कारण होगी’, ऐसा कहना दर्शता है कि आगे जाकर हमारे लिए क्या परोस रखा हैै । इजिप्त तथा ट्युनीशिया जैसे देशों में वर्ष २०११ में चलाया गया ‘अरब स्प्रिंग’ अभियान, यूक्रेन में वर्ष २००४ में चलाया गया ‘ऑरेंज रिवॉल्यूशन’ अभियान, जबकि वर्ष २०१३-१४ में ‘यूरोमेडन प्रोटेस्ट्स’, वर्ष २०२४ में बांग्लादेश में किया गया सत्ता परिवर्तन जैसे अनेक प्रयोगों के अनुभव से उनके लिए अप्रिय सरकारों का तख्ता पलट देनेवाले ‘रेजीम चेंज एक्स्पर्ट्स’ (सरकारों का तख्ता पलटने में विशेषज्ञ) तैयार हुए हैं । कुछ दिन पूर्व ऐसी ही एक विशेषज्ञ विक्टोरिया न्यूलैंडस को ‘एन.ई.पी.’ की निदेशक नियुक्त किया गया । पहले ‘सीआईए’ जो काम गुप्तरूप से करता था, वही काम अब ‘एन.ई.पी.’ सार्वजनिक रूप से तथा स्वयं को नीतिमान दिखाकर करता है । अमेरिका के दबाव में न आकर ‘देशहित की नीतियां बनानेवाली सरकारें कैसे ‘लोकतंत्र-विरोधी’ हैं तथा उनका तख्ता पलटना कैसे पवित्र कार्य है’, इसका जोरदार प्रचार कर उनका ‘इकोसिस्टम’ (तंत्र) इस कार्य में महत्त्वपूर्ण सहायता करता है । इन आंदोलनों से आज तक विभिन्न देशों में लोकतंत्र नहीं; अपितु अराजकता, हिंसा एवं विध्वंस ने उपद्रव मचा रखा है ।
३. आकर्षक व्यक्तित्व ‘डीप स्टेट’ का नया खेल !
सामाजिक न्याय, लोकतंत्र, पर्यावरण जैसे आकर्षक मुखौटों सहित वे कुछ आकर्षक व्यक्तित्व भी गढते हैं, जो उनकी विनाशकारी गतिविधियों के स्वीकार्य चेहरे होंगे । विभिन्न मान-सम्मान तथा पुरस्कार देकर उन्हें एक ‘आइकॉन’ के रूप में सामने लाया जाता है । इन लोगों को ‘मैगसेसे’ पुरस्कार तो निश्चित ही मिलता है । अनेक बार नोबेल पुरस्कार के लिए भी उनका चयन होता है । बांग्लादेश में थोपी गई, किसी भी प्रकार की प्रामाणिकता अथवा संवैधानिक अधिकार रहित सरकार के ‘सलाहकार’ मोहम्मद यूनूस भी इसी प्रकार से ‘डीप स्टेट’ के द्वारा संजोया हुआ चेहरा है ! भारत में भी ऐसे अनेक चेहरे तैयार करने का प्रयास हुआ । उनमें से एक चेहरा है अरविंद केजरीवाल ! अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए केजरीवाल कितने उपयुक्त सिद्ध होंगे, इसकी आश्वस्तता न होने के कारण अब नए चेहरों की खोज आरंभ हो चुकी है । उनमें से एक नाम है सोनम वांगचुक !
४. अभिनेता आमीर खान, कांग्रेस, चीन एवं सोनम वांगचुक का एक-दूसरे से संबंध
अभिनेता अमीर खान के ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म के ‘रैंचो’ का चरित्र सोनम वांगचुक पर आधारित है’, ऐसा बताया गया है तथा उसके इर्द-गिर्द सद्गुणों का एक वृत्त तैयार किया गया है । फिल्म में रैंचो को एक निर्धन माली का लडका दिखाया गया है; परंतु सोनम वांगचुक एक उच्च पदस्थ, धनवान तथा सत्ताधारी परिवार में जन्मे हैं, यह नहीं बताया गया । उनके पिता सोनम वांग्याल कांग्रेस के नेता तथा जम्मू-कश्मीर सरकार में मंत्री थे । वर्ष २००८ में कांग्रेस ने चीन की ‘कम्युनिस्ट पार्टी’ से गुप्त समझौता किया, जिसका विवरण अभी भी उजागर नहीं किया गया है । उसके उपरांत चीन में अकस्मात ही आमीर खान की फिल्म को सहस्रों करोड रुपए की कमाई होने लगी । वर्ष २००९ में कांग्रेस सरकार के तत्कालीन रक्षामंत्री ए.के. एंटनी ने लोकसभा में बताया, ‘हमारे द्वारा बनाए जानेवाले पुलों तथा सडकों का उपयोग कर चीन हमपर ही आक्रमण न करे; इसके लिए हम भारत-चीन सीमा पर किसी भी प्रकार की मूलभूत सुविधाएं ही नहीं बनाते ।’ अब सोनम वांगचुक ने यह मांग करते हुए कहा है, ‘लद्दाख के पर्यावरण पर दुष्परिणाम न हो; इसलिए मोदी सरकार सीमा पर मूलभूत सुविधाएं रोके ।’ यह एक ओर जहां संपूर्ण लद्दाख को निगलने की चीन की खुली महत्त्वाकांक्षा है, तो ऐसे में भारतीय सेना गतिविधियां न कर पाए, इसके लिए भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयासों पर रोक लगाने की ही यह योजना है’, जिस पर कांग्रेस एवं सोनम वांगचुक दोनों ही सहमत हैं तथा और भी अनेक सूत्र सिद्ध किए जा सकते हैं !
५. सोनम वांगचुक को विदेशों से मिलनेवाली आर्थिक सहायता तथा कांग्रेस से संबंध
वर्ष १९८८ में वांगचुक ने लद्दाख में ‘स्टूडेंट्स एज्युकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट’ तथा वर्ष १९९५ में ‘ऑपरेशन न्यू होप’, ये अभियान आरंभ किए । उसकी सभी परियोजनाओं को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ तथा ‘डैन चर्च एड’ से आर्थिक सहायता मिलती थी । वर्ष १९९० के दशक के आरंभ में ही उसने अमेरिकी युवती रिबेका नॉर्मन से विवाह किया । उसकी शिक्षा अमेरिका के विदेश विभाग से निकट संबंध रखनेवाले ‘स्कूल फॉर इंटरनेशनल ट्रेनिंग (एस.आई.टी.)’ एवं हार्वर्ड विश्वविद्यालय में हुई थी । ‘एस.आई.टी.’ को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ तथा अंतरराष्ट्रीय उद्योगपति जॉर्ज सोरोस के ‘ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ से आर्थिक सहायता मिलती थी । रिबेका के साथ विवाह होने के उपरांत वांगचुक को विदेशों से बडी मात्रा में पैसा मिलने लगा । वर्ष २००२ में उन्हें ‘अशोका फेलोशिप’ (छात्रवृत्ति) मिली, जो ‘स्कोल फाउंडेशन’, ‘श्वैब फाउंडेशन’ तथा ‘रॉकफेलर फाउंडेशन’ की ओर से दी जा रही थी ।
वर्ष २००४ में कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा सरकार सत्ता में आने के उपरांत वांगचुक को बडे स्तर पर नए अवसर के साथ सहायता मिलने लगी । लद्दाख का ‘विजन डॉक्युमेंट’ बनाने हेतु (भविष्य का लद्दाख कैसा होना चाहिए, इसकी योजना) गठित समिति पर, साथ ही लद्दाख की शिक्षा एवं पर्यटन नीति तैयार करने हेतु गठित समितियों पर उनकी नियुक्ति की गई । कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय के ‘नेशनल गवर्निंग काउंसिल फॉर एलिमेंटरी एज्युकेशन’ पर भी उन्हें नियुक्त किया गया । वर्ष २००७ से २०१० तक डेनमार्क का एक स्वयंसेवी संगठन भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के लिए काम कर रहा था । सोनम वांगचुक उसके सलाहकार थे । विभिन्न संबंधों के जाल के माध्यम से कांग्रेस के साथ उनकी निकटता थी, यह स्पष्ट है ।
६. सोनम वांगचुक को कथित आदर्श बनाने हेतु कांग्रेस तथा ‘डीप स्टेट’ द्वारा किए गए प्रयास !
वर्ष २०१६ में सोनम वांगचुक को स्विट्जर्लैंड के ‘इंटरनेशनल युनियन फॉर कांजर्वेशन ऑफ नेचर’ की ओर से ‘फ्रेड एम. पैकर्ड’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया । उसका फंडिंग (आर्थिक सहायता) ‘रॉकफेलर फाउंडेशन’ के द्वारा हुआ था । वर्ष २०१७ में ‘फोर्ड फाउंडेशन’ की ओर से उन्हें ‘टी.एन. कोशू मेमोरियल एवॉर्ड’ प्रदान किया गया । वर्ष २०१८ में वांगचुक को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ का सर्वाेच्च ‘मैगसेसे पुरस्कार’ प्रदान किया गया । प्रतिवर्ष एक महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्रदान कर उन्हें ‘आइकॉन’ (आदर्श व्यक्तित्व) बनाया जा रहा था । जिस ‘लीड इंडिया’ संगठन से वांगचुक संबंधित हैं, उसे भी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ की ओर से ही चंदा दिया जाता है । वांगचुक से संबंधित एक और संगठन ‘इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर लद्दाख स्टडीज’ ने लद्दाख की संस्कृति पर आधारित ४ खंड प्रकाशित किए । इस परियोजना के लिए चंदा कहां से मिला ? अर्थात ‘फोर्ड फाउंडेशन’ की ओर से ! इस पूरी जानकारी से सोनम वांगचुक की कांग्रेस तथा ‘डीप स्टेट’ की अर्थशक्ति का जिनके द्वारा उपयोग किया जाता है, उन फाऊंडेशंस के साथ उनकी कितनी निकटता है, यह स्पष्ट होता है । इससे उन्होंने सोनम वांगचुक को एक ‘आइकॉन’ के रूप में प्रस्तुत करने के लिए कितना निवेश किया है, यह भी छिपा नहीं रहता । लगता है कि अब इस निवेश को चुकाने का समय आ चुका है; इसीलिए अनुच्छेद ३७० (जम्मू-कश्मीर को विशेष श्रेणी प्रदान करनेवाला अनुच्छेद) रद्द करने के उपरांत पहले उसका स्वागत करनेवाले सोनम वांगचुक ने कुछ दिन उपरांत अपनी नीति बदलकर इस निर्णय का विरोध करना आरंभ कर दिया । उसका लाभ उठाकर पाकिस्तान ने ‘इस निर्णय के लिए लद्दाख का भी विरोध है’, ऐसा दुष्प्रचार आरंभ किया । चीन एवं पाकिस्तान के लिए लाभकारी सिद्ध हों, ऐसे अभियान चलाने का कौन सा बलप्रयोग वांगचुक पर किया जा रहा है ?, उनसे यह प्रश्न पूछना आवश्यक है ।
७. तथाकथित आदर्श व्यक्तित्वों को समय रहते ही पहचानना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य !
अब २१ वीं शताब्दी के गांधी होने का नाटक कर वांगचुक ने देहली में अनशन आरंभ कर दिया है । उसके आधार पर भारत-विरोधी प्रचार को शीर्ष तक ले जाया जाएगा । बांग्लादेश के उपरांत अब ‘रेजीम चेंज’ के लिए (सरकार को अपदस्थ करनेवाले विशेषज्ञ) अब भारत को लक्ष्य बनाने की ‘डीप स्टेट’ की इच्छा छिपी नहीं है । इसलिए पर्यावरण, लोकतंत्र तथा संविधान जैसे महान विषयों पर आंदोलन करनेवाले अनेक प्रतीक हमें देखने को मिलेंगे । समय रहते ही उन्हें पहचान लेना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है !’
– श्री. अभिजित जोग, ‘जगाला पोखरणारी डावी वाळवी’ (अर्थात विश्व को खोखला बनानेवाला वामपंथी दीमक), इस मराठी पुस्तक के लेखक, पुणे (७.१०.२०२४)