लगभग २ सदियों पूर्व तक ‘सोने की चिडिया’ के नाम से भारत की प्रशंसा की जाती थी । विश्व के कुल ‘जीडीपी’ में से (सकल घरेलू उत्पाद) ३५ प्रतिशत भाग केवल भारत का था । ‘धर्माधारित भारत’ का आर्थिक क्षेत्र का बडा हिस्सा इस से ध्यान में आता है । दुर्भाग्य से आज मनुष्य के चार पुरुषार्थाें में से ‘अर्थ’ को अनन्य साधारण महत्त्व दिया जा रहा है । प्रत्येक क्षेत्र, फिर वह राजनीति हो, या क्रीडा, कला हो या शिक्षा का क्षेत्र हो, सभी अर्थार्जन (पैसा कमाने के) इर्द-गिर्द ही घूम रहे हैं । धर्म को भूलने के कारण स्वत्व का नाश होकर मनुष्य मायावी आडम्बर से घिर गया है । यह है उसके पीछे का कारण ! इसलिए किसी प्रकार से स्वयं का आर्थिक हित कैसे साध्य होगा ? इसके पीछे केवल राजनीतिज्ञ ही नहीं, अपितु अधिकतर जनता मग्न है । सर्वत्र अनाचार बढा है, उसके पीछे भी यही कारण है ! इसलिए पाश्चात्यों की दु:स्थिति देखने की आवश्यकता नहीं है, क्यूंकि वही हाल अपने भारत का हो गया है । प्राचीन भारत का महत्त्व यहाँ ध्यान में आता है । प्राचीन भारत ने विश्व में व्यावहारिक क्षेत्रों में जो उँचाइयाँ प्राप्त कीं, वे थीं धर्म एवं अध्यात्म के आचरण के बल पर ! यही ध्येय सामने रखकर ‘द जयपुर डायलॉग्ज’ नामक हिन्दुत्वादी संगठन ने इस बार ‘रिक्लेमिंग भारत’ (भारतीयत्व पुन: लाना), यह विषय लेकर ३ दिनों की परिषद का आयोजन किया था । इसलिए इस संगठन का अभिनन्दन करना प्रत्येक धर्मप्रेमी और राष्ट्रप्रेमी भारतीय का कर्तव्य है ।
ज्ञान एवं संगठन !
‘द जयपुर डायलॉग्ज’ द्वारा इस प्रकार का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दुओं का विचारसत्र आयोजित करने का वैसे यह है नौवाँ वर्ष ! कार्यक्रम का आरम्भ राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे के करकमलों द्वारा किया गया । उन्होंने कहा,‘भारत की प्राचीन परम्परा, इतिहास तथा संस्कृति समृद्ध रही है । भारतीय ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमेशा से ही तत्पर रहे हैं और हमें भी इसके लिए निरन्तर बढते रहना चाहिए ।’ यहाँ ‘विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीन: पशु: ।।’, इस प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक का स्मरण होता है, जिसका अर्थ है कि राज्य दरबार में ज्ञान हमेशा से ही पूज्य रहा है – इतना कि ज्ञानरूपी पशु की तुलना में धन को भी महत्त्व नहीं है । कार्यक्रम में महाराष्ट्र के लाडले वरिष्ठ पत्रकार भाऊ तोरसेकर विशिष्ट अतिथि के रूप में उद्घाटन सत्र में मन्च पर उपस्थित थे । उन्होंने राष्ट्रनिष्ठों को हिन्दू ‘इकोसिस्टम’ बनाने के लिए सशक्त होने का आवाहन किया । आज अपना देश ‘डीप स्टेट’, ‘वोकिजम के रूप में साम्यवाद’, इस्लाम, ईसाई पंथ आदि से घिरा रहते हुए वैश्विक ‘हिन्दू इकोसिस्टम’ के लिए भगीरथ प्रयत्न करने की समय की मांग है । भाऊ तोरसेकरजी के अनुभवों का लाभ इसीलिए हिन्दू समाज को लेना चाहिए । ‘द जयपुर डायलॉग्ज’ के अध्यक्ष संजय दीक्षित द्वारा लिखी हुई पुस्तकों ‘कृष्ण गोपेश्वर’ एवं ‘सब पन्थ एक समान नहीं हैं’, का उद्घाटन भी इसी समय किया गया ।
‘फेक नरेटिव’ से दो – दो हाथ !
‘फेक नरेटिव’ याने असत्य कथानक बनाकर हिन्दुओं की सारे संसार में हँसी उडाई जा रही है । इसका सामना करने के लिए हिन्दू जागृति आवश्यक है । हिन्दुओं द्वारा” ‘अनलर्न’ (झूठी बातें भूलना) तथा ‘री-लनॅ’ (योग्य जानकारी सिखाना) होना चाहिए। विश्व भर में हिन्दू विरोधी वातावरण निर्माण करने वाले बीबीसी का पर्दाफाश करने वाली बहु प्रतीक्षित डॉक्यूमेन्ट्री ‘बीबीसी ऑन ट्रायल’ के माध्यम से यही साध्य होगा । उसका प्रसारण सर्वप्रथम इस कार्यक्रम के मन्च से किया गया । इसके लिए ‘ग्लोबल हिंदु फेडरेशन’ के अध्यक्ष पंडित सतीश शर्मा लन्दन से भारत आए हुए हैं । उनके साथ भारत विरोधी अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्रों को ‘विडियोज’ के माध्यम से बेनकाब करने वाले, अपितु ‘राष्ट्रनिष्ठों के ध्रुव राठीॅ ऐसा जिनका गौरव हो सकेगा ऐसे ‘स्ट्रांग जिओ’ के विनोद कुमार भी उपस्थित थे । हिन्दू धर्म के लिए सही रूप से एवं प्रभावी कार्य करने के लिए भगीरथ प्रयत्नों की आवश्यकता है, इसका यह डॉक्यूमेन्ट्री अच्छा उदाहरण है ।
‘काशी मथुरा हिंदू नॅरेटिव्ह’ सत्र में सर्वाेच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा, ‘मन्दिर गिराने से मूर्ति का आस्तित्व समाप्त नहीं होता । भगवान वहाँ अप्रत्यक्षरूप में रहते हैं । मस्जिद का स्थानांतरण किया जा सकता है, परन्तु मन्दिर का नहीं ।’ इससे, मन्दिर हिन्दुओं के लिए सर्वस्व हैं, ऐसा ही श्री. जैन को सुझाना है । हिन्दू रक्षण करने के लिए उन्हें चैतन्य की महाशक्ति का कवच देने वाले मन्दिरों का रक्षण करना होगा । इन मन्दिरों पर आक्रमण करने वालों का सत्य उजागर करते समय डॉ. कुलदीप दत्ता ने कहा,‘अधिकतर मुसलमानों को उर्दू या फारसी नहीं आती. कुरान भी पढना नहीं आता. वे केवल मौलवी का ही कहना सत्य मानते हैं ।
सरकारसुधार
कार्यक्रम का एक अत्यन्त महत्त्व का सूत्र था, ‘डिकोलोनायझिंग इंडिया माईंड’, यानि कि भारतीय मनों को ‘औपनिवेशिक विचारधारा’ से बाहर निकालना ! इस में संक्रांत सानू ने अत्यन्त मार्मिक रूप से कहा,‘हम पिछले डेढ सौ वर्षाें से अपने ही समाज को सुधारने के लिए प्रयत्नशील हैं । सच कहें तो, अपना समाज पाश्चात्यों से अत्यधिक आगे है । हमें समाज सुधारने की नहीं, अपितु सरकार सुधारने की आवश्यकता है ।’ धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दुओं के विरुद्ध सभी स्तरों पर जो उथल-पुथल निर्माण की गई है, उसका नष्ट होना आवश्यक है । इसके लिए हिन्दुओं को सरकारी कानूनों में हिन्दूहितरक्षक सुधार करा लेने चाहिए ।
कानून एवं सुव्यवस्था के सन्दर्भ में राज्य सरकारों के अलग-अलग विचार हो सकते हैं; परन्तु देश की अन्तर्गत सुरक्षा के लिए केन्द्र सरकार को हस्तक्षेप करना ही होगा । हिन्दुओं को शुतुरमुर्गी मानसिकता से बाहर आकर शत्रुबोध के द्वारा देशद्रोहियों एवं घुसपैठियों को बाहर का रास्ता दिखाना पडेगा, ऐसे महत्त्वपूर्ण विचार अन्तिम दिन हिन्दुत्वनिष्ठ विचारकों ने व्यक्त किए ।
मूलत: ‘जयपुर डायलॉग्ज’ जैसे कार्यक्रमों के उद्बोधक विचार हिन्दू सुनकर भूल तो नहीं जाते, यह देखना आवश्यक है । ये विचार कृति में लाए गए, तो ही इन कार्यक्रमों का ध्येय साध्य होगा । प्रत्येक हिन्दू को अपनी क्षमता, प्रकृति एवं दिलचस्पी के अनुसार धर्मरक्षण के लिए तैयार होना चाहिए । सर्वसाधारण हिन्दुओं के प्रयत्नों के साथ हिन्दू संगठन भी ऐसे कार्यक्रमों के आयोजनों तक ही मर्यादित न रहते हुए हिन्दू रक्षण के लिए सर्वत्र ऐसे ‘हिंदु इकोसिस्टम’ की दिशा में निर्णायक कदम बढाएं, ऐसी अपेक्षा !
हिन्दू धर्मरक्षण के लिए हिन्दूवादी विचारकों के वैचारिक उद्बोधन को सर्वत्र हिन्दू कृति में लाएं, ऐसी अपेक्षा ! |