पेट की समस्याएं, दोष लक्षण एवं ऋतु के अनुसार पथ्यकारक पदार्थ !

आम्लपित्त से ग्रस्त रोगियों की पाचन संबंधी समस्याओं को ध्यान में लेकर कहते हैं, ‘आप तो कुछ भी न खाएं । मिर्च न खाएं, पनीर न खाएं; मैदा, रवा, पोहा, बेकरीजन्य पदार्थ, ब्रेड, आलू आदि न खाएं ! तो मैं खाऊं तो क्या खाऊं ?’, अनेक बार यह प्रश्न उठता है । नीचे कुछ पथ्यकारक तथा चलनेवाले पदार्थों की सूची दे रही हूं । ये सभी पदार्थ मिर्च, प्याज-लहसुन का उपयोग किए बिना बनाए जा सकते हैं तथा त्योहारों के समय में भी रोगी को दिए जा सकते हैं । तब भी प्रत्येक व्यक्ति के पेट की समस्या तथा दोष, लक्षण एवं ऋतु के अनुसार थोडा-बहुत परिवर्तन कर निम्न कुछ पदार्थ खाए जा सकते हैं ।

वैद्या (श्रीमती) स्वराली शेंड्ये, यशप्रभा आयुर्वेद, पुणे

१. अल्पाहार के लिए पदार्थ

खीर, गेहूं का उपमा, चावल भूनकर उसका रवा बनाकर उसका उपमा, चावल की सिवैयों का उपमा, मूंग एवं चावल को भिगोकर उसे मिक्सर से निकालकर उसके चीले, चावल-नारियल का उपयोग कर बनाया जानेवाला नीर दोसा, चावल के चीले; शकरकंद, प्याज एवं गाजर का कटलेट, सब्जियों का पराठा, ताजे चावल को बघारकर बनाया चावल, रागी की अंबिल, रागी का दोसा, आटा बनाकर उसकी रोटी, चटनी

वैद्या (श्रीमती) स्वराली शेंड्ये

२. सूखे पदार्थ

जवार/धान का चिवडा, खाकरा, मखाना, लड्डू, रामदाना की खली, दूध के साथ खली का आटा, मुनक्का, अनार, अंजीर

३. भोजन में अंतर्भूत पदार्थ

मूंग दाल और धनिया डालकर लौकी की सब्जी, छाछ में बनी पत्तेवाली सब्जियां, परवल, लौकी तथा कुम्हडे की सब्जी (दाल डालकर/मूंग दाल एवं आटा मिलाकर, नारियल पीसकर), भिंडी, तुरई, मूंग, मसूर, मूली, गाजर, कुम्हडा, (लाल कद्दू) चावल, माठ, चावल-दाल, पुलाव घी, मक्खन, फुलका, रोटी

४. पीने हेतु

सोंठ का पानी, अजवायन का पानी, खली का पानी, मुनक्का पानी, छाछ में जीरा एवं सेंधा नमक डालकर, फल तथा सब्जियों का सूप, मूंग का उबला हुआ पानी, दाल, फल तथा सब्जी का सूप, कुलथी का बेसन (व्यक्ति की स्थिति के अनुरूप), मूंग की दाल का आटा अथवा जवार के आटे से बनाई गई कढी

५. मसाले

अदरक, लहसुन, जीरा/काली मिर्च/धनिया पाउडर; जीरा, धनिया एवं तील से बनाया हुआ मसाला; नींबू, धनिया पत्ती, पीसा हुआ गीला मसाला

६. पेट की बीमारियां बढने के कारण

पेट के विकार जटिल होते हैं; क्योंकि,

अ. बहुत दिनों तक उनकी अनदेखी की गई होती है ।

आ. सबकुछ संभालते हुए आहार-नियमों की ओर थोडी सी अनदेखी हो जाती है ।

इ. पाचन पर मानसिक तनाव का परिणाम, इन सभी में यह सबसे बडा कारण दिखाई देता है ।

ई. स्वस्थ रहने हेतु पेट को पूरा बंद नहीं रखा जा सकता । उसका कार्य निरंतर चलता रहता है ।

थोडा संयम एवं जीभ पर नियंत्रण, विशेषकर पाचन की समस्याओं को स्थायी रूप से दूर करना बहुत आवश्यक है । अपनी प्रकृति के अनुसार उपरोक्त खाद्यपदार्थों पर थोडी रचनात्मकता का उपयोग करना भी महत्त्वपूर्ण है, साथ ही बीमारी पुरानी होने परचिकित्सकीय सुझाव से उक्त पदार्थों के विषय में विचार करनामहत्त्वपूर्ण है ! (५.९.२०२४)

(वैद्या [श्रीमती] स्वराली शेंड्ये के फेसबुक खाते से साभार)