१७ वी शताब्दि में एक संत ने तपश्चर्या करने पर ग्रामवासियों से लिया था वचन
सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) – जिले के मिरगपुर गांव का नाम ‘एशिया बुक ऑफ रेकॉर्ड्स’ में प्रविष्ट (दाखिल) किया गया है । सहारनपुर से केवल ८ किलोमीट की दूरी पर यह गांव है । यहां गत अनेक पीढियों से किसी ने भी मद्यपान नहीं किया है । इस गांव में मद्य की एक भी दुकान नहीं है । विशेष बात यह कि पीछले ४०० वर्षों में यहां बलात्कार ही नहीं; किंतु यौन उत्पीडन की एक भी घटना नहीं घटी है । यहां सभी लोग शाकाहारी हैं । इसी कारण काली नदी के किनारे बसा मिरगपुर देश का सबसे पवित्र गांव माना जाता है ।
१. इस गांव की जनसंख्या १० सहस्र है । यहां प्याज-लहसुन खाने पर भी प्रतिबंध है । कुल २६ प्रकार के तामसिक व्यंजन पूर्णत: निषिद्ध हैं ।
२. सहारनपुर जिला प्रशासन ने भी इस गांव को ‘नशामुक्त गाव’ घोषित किया है ।
३. विशेष यह कि इस गांव की लडकियां विवाह पश्चात किसी अन्य गांव में जाने पर उनके वैवाहिक जीवन में बाधाएं न आए; इसलिए उन्हें गांव की इस प्रतिज्ञा से मुक्त किया जाता है । ऐसा होते हुए भी गांव में आनेवाले दामाद को यह बंधनकारी होता है और उसे मांसाहार का सदा के लिए त्याग करना पडता है ।
गुरु-शिष्य परंपरा से एकनिष्ठ ग्रामवासी !
गुरु-शिष्य परंपरा, मिरगपुर गांव की अन्य एक विशेषता है । गांव का प्रत्येक व्यक्ति इसका पालन करता है । ग्रामवासी बताते हैं कि, ‘हमें अपना जीवन गुरु के चरणों में समर्पित करना चाहिए’, ऐसा भाव गांव के प्रत्येक व्यक्ति के मन में होता है ।
४०० वर्ष पहले एक संत की तपश्चर्या के उपरांत गांव की सभी समस्याएं सुलझ गई !मिरगपुर की सीमा पर बाबा फकीरदास का मंदिर है । मंदिर के महंत कालुदास बताते हैं कि १७ वी शताब्दि में राजस्थान के पुष्कर से एक सिद्धपुरुष बाबा फकीरदास ने गांव में आकर तपश्चर्या की थी । ग्रामवासियों की समस्याएं उन्होंने अपने आध्यात्मिक सामर्थ्य से दूर की थी । यहां से जाते समय उन्होंने ग्रामवासियों से नशा और मांसाहार न करने का वचन लिया था । तब से इस परंपरा का पालन किया जा रहा है । |
संपादकीय भूमिकाआध्यात्मिक सामर्थ्य क्या होता है ?, यह इस उदाहरण से ध्यान में आता है । शारीरिक और मानसिक स्तर पर प्रयत्न करने के साथ आध्यात्मिक स्तर पर प्रयत्न होने पर अर्थात जनता यदि साधना आरंभ करेगी तो राष्ट्र की सभी समस्याएं सदा के लिए सुलझ जाएगी ! |