ढाका (बांग्लादेश ) – बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने ‘जमात-ए-इस्लामी’ पक्ष पर लगा प्रतिबंध हटा दिया । तत्कालिन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने १ अगस्त को इस पक्ष पर प्रतिबंध लगाया था । छात्रों के आंदोलन में दंगा भडकाने का आरोप ‘जमात’ पर लगाया गया था ।
बांग्लादेश के गृहमंत्रालय ने नोटिस प्रसारित की है जिसमें कहा है कि जमात-ए-इस्लामी पक्ष तथा उससेे संलग्न संगठनों का आतंकवादी कार्यवाहियों में सम्मिलित होने का कोई प्रमाण नहीं मिला । इसलिए उस पर लगा गया प्रतिबंध हटाया जा रहा है ।
जमात-ए-इस्लामी पक्ष पर वर्ष २०१३ से चुनाव लडने पर प्रतिबंध !
वर्ष २०१३ में उच्च न्यायालय ने ‘ जमात-ए-इस्लामी पक्ष का घोषणापत्र राज्य संविधान का उल्लंघन करनेवाला है’, ऐसा कहकर इस पक्ष पर चुनाव लडने पर प्रतिबंध लगाया । वर्ष २०१८ में चुनाव आयोग ने जमात का पंजीकरण भी निरस्त किया था। यद्यपि वर्तमान की अंतरिम सरकार ने जमात पर लगाया प्रतिबंध हटाया है, तब भी उस पर चुनाव लडने पर प्रतिबंध स्थायी है । जमात-ए-इस्लामी पक्ष के अधिवक्ता शिशिर मोनीर ने कहा कि पक्ष पर चुनाव लडने पर प्रतिबंध हटाने हेतु अगले सप्ताह में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट (दाखिल) करेंगे ।
कट्टरपंथी संगठन के नेता की पेरोल पर मुक्तता
अंतरिम सरकार ने अन्सारुल्ला बांग्ला टीम (ए.बी.टी.) कट्टरपंथी संगठन प्रमुख जशीमुद्दीन रहमानी को पेरोल पर (अच्छे आचरण के लिए बंदीवान को शर्ताें पर कुछ दिनों के लिए बाहर छोडना) मुक्तता की है । इस गुट के आतंकवादी संगठन अल् कायदा से भी संबंध हैं । शेख हसीना सरकार ने वर्ष २०१५ में ‘अन्सारुल्ला बांगला टीम’ पर प्रतिबंध लगाया था । इस संगठन पर भारत में भी आतंकवाद फैलाने का आरोप है । संगठन के अनेक कार्यकर्ताओं को भारत में बंदी बनाया गया है । जशीमुद्दीन काे हत्या के लिए प्रेरित करने के विषय में ५ वर्ष का दंड सुनाया गया था । इस वर्ष जनवरी में इसकी मुक्तता हुई; परंतु दूसरे एक प्रकरण में उसे बंदी बनाया गया था ।
संपादकीय भूमिकाजिहादी पक्ष पर लगा प्रतिबंध हटाने का अर्थ बांग्लादेश में हिंसा करनेवालों का समर्थन करने का ही दर्शक है ! इसलिए भविष्य में यदि बांग्लादेश में हिंदू नष्ट हुए, तो आश्चर्य प्रतीत नहीं होगा ! |