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नई देहली – राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एन.सी.ई.आर.टी.) का राजनीति विज्ञान का ११ वां संशोधित पाठ्यक्रम ‘भारत में वोट बैंक की राजनीति’ अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण से संबंधित है। इसके माध्यम से कहा गया है कि ‘सभी राजनीतिक दल नागरिकों की समानता को नजरअंदाज करते हैं और केवल अल्पसंख्यकों के हितों को प्राथमिकता देते हैं।’ यह पाठ ‘वोट बैंक की राजनीति’ अध्याय में प्रकाशित किया गया है।
वोट बैंक की राजनीति के कारण चुनाव की राजनीति विकृत हो गई है !
पाठ्यपुस्तक का नया संस्करण कहता है कि वोट बैंक की राजनीति में कुछ भी गलत नहीं है; लेकिन इस वोट बैंक की राजनीति के कारण जब चुनाव के दौरान कोई विशेष उम्मीदवार किसी समूह या समुदाय को दिया जाता है या किसी समुदाय या समूह को किसी राजनीतिक दल के लिए एक किया जाता है, तो चुनावी राजनीति विकृत हो जाती है। क्या आप ऐसे उदाहरण सोच सकते हैं ? इस प्रकार की राजनीति में मतदान के समय एक पूरा समूह मिलकर काम करता है। यद्यपि वे विविध हैं, फिर भी वे कुछ खास व्यक्तियों या पार्टियों को वोट देते हैं। उस समय वोट बैंक की राजनीति करने वाली पार्टियाँ या नेता केवल उसी समूह के बारे में सोचते हैं। या ‘हम उस एक समूह के लिए काम करने का प्रयास करेंगे’, वे उस समूह के लोगों के बीच एक विश्वास पैदा करते हैं।
राजनीतिक दल अल्पसंख्यक समूहों और उनके हितों को प्राथमिकता देते हैं !
अध्याय में आगे कहा गया है कि भारत में राजनीतिक दलों ने अक्सर महत्वपूर्ण मुद्दों की उपेक्षा की है। उन्होंने चुनावी लाभ के लिए भावनात्मक सूत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है। ऐसा करते समय उन्होंने समाज की वास्तविक समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया है। इसका मतलब यह है कि राजनीतिक दल नागरिकों की समानता के सिद्धांतों की उपेक्षा करते हैं और अल्पसंख्यक समूहों और उनके हितों को प्राथमिकता देते हैं; लेकिन ऐसा करते समय अल्पसंख्यक समूह अलग-थलग रहता है और अल्पसंख्यक गुट में से विविधता पर दुर्लक्ष होता है,उनके सामाजिक सुधार का सूत्र पीछे रहता है ।