१. उच्च शिक्षा हेतु १२ लाख भारतीय छात्र बंसते हैं विदेश में !
‘वर्तमान समय में उच्च शिक्षा लेने हेतु ११ से १२ लाख भारतीय छात्र विदेश में रह रहे हैं । उनमें अधिकतर छात्रों का झुकाव अमेरिका के विश्वविद्यालयों की ओर है । अमेरिका ने लगभग १.२५ लाख भारतीय छात्रों को ‘वीजा’ दिया है । ‘अमेरिका में रहना प्रतिष्ठा का माना जाता है । वहां अच्छी शिक्षा मिलती है, शिक्षा समाप्त होते ही उन्हें वहीं ‘करियर’ करना संभव होता है तथा उन्हें अच्छी नौकरी मिलती है’, इन सभी बातों का विचार कर भारतीय छात्र शिक्षा लेने विदेश जाते हैं । उनके अभिभावक भी अपनी पूंजी लगाकर अथवा विभिन्न बैंकों अथवा आर्थिक संस्थाओं से बडी मात्रा में ऋण लेकर बच्चों को अमेरिका अथवा अन्य देशों में भेजते हैं । वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व से शिक्षा लेने जितने छात्र गए, उनमें से २५ प्रतिशत भारतीय छात्र हैं । वहां छात्रों को शिक्षा लेने हेतु लगभग ३ लाख से ४ लाख रुपए तक वार्षिक शुल्क चुकाना पडता है । अतः शिक्षा शुल्क के रूप में भारत ‘९ बिलियन डॉलर्स’ (७५ सहस्र १०१ करोड रुपए से अधिक) पैसा अमेरिका को देता है ।
२. वर्ष २०२४ में अमेरिका में ११ भारतीय छात्रों की मृत्यु
वर्तमान वर्ष २०२४ में विदेश में अनेक भारतीय छात्रों की मृत्यु की घटनाएं हुईं । ये घटनाएं संदेहजनक हैं । उनमें से कुछ छात्रों का अनेक दिन तक अपहरण किया गया था । उनके शव जंगल के निकट मिले अथवा उनके साथ दुर्घटना हुईं, ऐसा दिखाया गया । पिछले ४ महिनों में इस प्रकार ११ छात्रों की मृत्यु हुई । उनमें बोस्टन विश्वविद्यालय में शिक्षा ले रही २५ वर्षीय लक्ष्मी थलंका नामक लडकी थी । उसकी मृत्यु संदेहजनक पद्धति से हुई । उसके उपरांत १६.१.२०२४ को पश्चिम जॉर्जिया विश्वविद्यालय में विवेक सैनी, इस छात्र पर ज्युलियन फॉल्कनर इस छात्र ने आक्रमण किया, जिसमें सैनी की मृत्यु हुई । २८.१.२०२४ को २२ वर्षीय नील आचार्य नामक भारतीय छात्र मृत पाया गया । उसके २ दिन उपरांत ही अंकुल दिवाण नामक छात्र की मृत्यु हुई । इसके १० दिन उपरांत ही श्रेयस रेड्डी नामक १९ वर्षीय छात्र की मृत्यु हुई । ४.२.२०२४ को सईद मजहर अली की मृत्यु हुई तथा उसके अगले ही दिन समीर कामत की मृत्यु हुई ।
३. भारतीय छात्रों की मृत्यु के पीछे हिन्दू एवं भारतद्वेष
‘फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडिया डिग्सपोरा स्टडीज’ संगठन के पदाधिकारियों ने बताया कि भारतीय छात्रों की हत्याओं के पीछे हिन्दूद्वेष एवं भारतद्वेष, ये प्रमुख कारण हैं तथा अमेरिका के अन्वेषण विभाग इस बात का स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं । ‘हिन्दू अमेरिकन फाउंडेशन’ के सुहाग शुक्ला ने बताया, ‘भारतीय छात्रों पर चुन-चुन कर आक्रमण किए जा रहे हैं अथवा उनकी संदेहजनक मृत्यु हो रही हैं । कभी-कभी उन्हें मादक पदार्थ देकर भी मारा जाता है ।’ अमेरिका के श्री. तेजल शाह ने बताया, ‘‘अमेरिका में हिन्दू मंदिरों पर आक्रमण की घटनाएं बढी हैं । अमेरिका में रह रहे भारतीय छात्रों को व्यसनाधीन बनाना भी इसी षड्यंत्र का एक अंश है । अमेरिका के अन्वेषण विभाग इन सभी कारणों को अस्वीकार करते हैं । उमा सत्यसाई गुड्डे, मुहम्मद अली अराफत एवं अन्य छात्रों की पिछले ३ महिनों में हुई मृत्यु की घटनाएं संदेहजनक एवं लक्षणीय हैं ।’’ भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने बताया कि इस वर्ष अप्रैल के पहले सप्ताह तक अर्थात ३.२५ महिनों में ११ छात्रों की संदेहजनक पद्धति से मृत्यु हुई । इसी अवधि में कनाडा में चिराग नामक छात्र पर आक्रमण हुआ, जिसमें उसकी मृत्यु हुई ।
४. विदेश में रह रहे भारतीय छात्रों पर हो रहे आक्रमणों को रोकने हेतु देश के विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता बढाना आवश्यक !
कुल मिलाकर यह विषय छात्रों तथा उनके अभिभावकों के लिए चिंता का विषय है । वर्तमान समय में भारतीय हिन्दुओं का एक ही बच्चा होता है अथवा कभी-कभी २ बच्चे होते हैं । उनके लिए प्राणों से प्रिय इन बच्चों को अभिभावकों की क्षमता न होते हुए भी शिक्षा लेने हेतु विदेश भेजे जाते हैं । इसलिए उनका अंत इस दुखद पद्धति से होना गंभीर है । अर्थात भारत सरकार ने अपने स्तर पर इस विषय को लिया है, इसमें कोई संदेह नहीं है; परंतु इतनी बडी संख्या में भारतीय छात्रों की हत्याएं होना गंभीर है । बडी संख्या में भारतीय छात्र विदेश में उच्च शिक्षा लेने जाते हैं । उसमें बडी मात्रा में उनका पैसा खर्च होता है । इसे टालना हो, तो भारतीय विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विद्यालयों का शैक्षिक स्तर बढाना आवश्यक है । ‘मेक इन इंडिया’ एक महत्त्वपूर्ण विषय है । उसके अंतर्गत सरकार इस विषय पर भी ध्यान दे, ऐसा सामान्य लोगों को लगता है ।
पहले भारत देश अनेक शताब्दियों तक विश्वगुरु था । देश में नालंदा, तक्षशिला, काशी जैसे अनेक विश्वविख्यात विश्वविद्यालय थे । वहां विदेश से छात्र शिक्षा लेने आते थे । उसके साथ ही वहां की गुरुकुल शिक्षा पद्धति भी अत्यंत लोकप्रिय थी । उसके कारण अभी के तथा आनेवाले चुनाव के उपरांत सत्ता में आनेवाली केंद्र सरकार को भारतीय महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों की शैक्षिक गुणवत्ता बढाने हेतु प्रयास करने चाहिए, ऐसा सामान्य लोगों की भावना है । इससे भारत के छात्र देश में ही शिक्षा लेंगे, उससे देश का पैसा देश में ही रहेगा तथा उन पर आक्रमण होकर उससे प्राणहानि होने का प्रश्न ही नहीं उठेगा ।’
श्रीकृष्णार्पणमस्तु !
– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, मुंबई उच्च न्यायालय (२६.४.२०२४)
वर्ष २०१९ से २०२१ की अवधि में भारत में ३५ सहस्र ५०० से अधिक छात्रों ने की आत्महत्या !
‘भारत में भी उच्च शिक्षा लेने हेतु राजस्थान के कोटा सहित अन्य शहरों में छात्र रहते हैं । वहां उनकी दिनचर्या महाविद्यालय तथा अध्ययन तक ही सीमित होती है । उन्हें अल्पायु में ही उनके परिजनों से अलग रहना पडता है । उन्होंने अपने जीवन के लिए एक ध्येय सामने रखा होता है, साथ ही उनके अभिभावकों को भी उनके बच्चे बडे अभियंता अथवा डॉक्टर बनें, ऐसा लगता है । ऐसी स्थिति में अध्ययन का तनाव सहन न कर पाने से पिछले कुछ समय में छात्रों ने आत्महत्याएं की हैं । ‘वर्ष २०१९ से २०२१, इन २ वर्षाें की अवधि में ३५ सहस्र ५०० से अधिक छात्रों ने आत्महत्याएं की हैं । केंद्रीय मंत्री नारायण स्वामी ने फरवरी के महिने में लोकसभा में यह जानकारी दी ।
‘राष्ट्रीय आपराधिक प्रविष्टि विभाग’ के ब्योरे के अनुसार सामान्यतः वर्ष २०१९ में १० सहस्र छात्रों ने आत्महत्या की । वर्ष २०२० में यह संख्या १२ सहस्र से अधिक हुई तथा वर्ष २०२१ में १३ सहस्र छात्रों ने आत्महत्या की हैं । यह विषय केवल आत्महत्याओं तक ही सीमित नहीं है, अपितु छात्रालय को आग लगने जैसी भी घटनाएं हुई हैं । उसके लिए शिक्षा लेने हेतु दर-दर भटकनेवाले छात्रों के हितों की रक्षा होना,एक महत्त्वपूर्ण समस्या है । इसलिए केंद्रीय एवं राज्य सरकारों को इस संबंध में ध्यान देकर इस समस्या का समाधान करना आवश्यक है ।’
– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी